वोट के बदले नोट के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने बड़ा फैसला सुनाया है। 7 सदस्यों वाली खंडपीठ ने सोमवार को शीर्ष अदालत के ही पुराने फैसले को पलटते हुए नया आदेश सुनाया।
Source link
सुप्रीम कोर्ट
आनंद मोहन की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, रिहाई के खिलाफ कल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई – India TV Hindi
बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई पर अब तलवार लटकने लगी है, क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर कल सुनवाई करने वाली है। बता दें कि गोपालगंज जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी जी.कृष्णैया की 1994 में हुई हत्या हुई थी। इस हत्याकांड में लोकसभा के पूर्व सदस्य आनंद मोहन उम्र कैद काट रहे थे लेकिन कुछ महीने पहले बिहार सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया और उन्हें इस बिनाह पर रिहाई मिल गई। अब आमंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने वाला है।
जेल नियमावली में बदलाव के बाद हुए रिहा
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ दिवंगत अधिकारी की पत्नी उमा कृष्णैया की याचिका पर सुनवाई करेगी। आनंद मोहन के 14 साल से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद, उन्हें पिछले साल अप्रैल में बिहार के सहरसा जेल से रिहा किया गया था। इससे पहले, बिहार जेल नियमावली में राज्य सरकार ने संशोधन कर, ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवक की हत्या में संलिप्तता रखने वालों की समय पूर्व रिहाई पर लगी पाबंदी हटा दी गई थी। आलोचकों का दावा है कि सरकार ने राजपूत समुदाय से आने वाले आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त करने के लिए बिहार जेल नियमावली में संशोधन किया।
1994 में हुई थी कृष्णैया की हत्या
गौरतलब है कि पूर्व सांसद को निचली अदालत ने 5 अक्टूबर, 2007 को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे पटना हाई कोर्ट ने 10 दिसंबर, 2008 को सश्रम आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2012 को इसकी पुष्टि की थी। तेलंगाना के रहने वाले कृष्णैया की 1994 में भीड़ ने पीटकर हत्या कर दी थी। यह घटना उस वक्त हुई थी, जब उनके वाहन ने मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शव यात्रा से आगे निकलने की कोशिश की थी। आनंद मोहन, जो उस समय विधायक थे, शव यात्रा का नेतृत्व कर रहे थे और उनपर भीड़ को कृष्णैया की हत्या के लिए उकसाने का आरोप था।
आनंद मोहन समेत 97 दोषियों की हुई थी रिहाई
शीर्ष अदालत ने 6 फरवरी को आनंद मोहन की सजा माफी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व सांसद को अपना पासपोर्ट जमा करने और हर पखवाड़े स्थानीय पुलिस थाने में हाजिरी देने को कहा था। पिछले साल 11 अगस्त को शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार से पूछा था कि पूर्व सांसद के साथ ऐसे कितने दोषियों को सजा में छूट दी गई है, जिन्हें ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवकों की हत्या के मामलों में दोषी ठहराया गया था। बिहार सरकार ने अदालत को बताया था कि आनंद मोहन समेत कुल 97 दोषियों को एक साथ समय से पहले रिहा किया गया।
याचिका में कृष्णैया की पत्नी ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता उमा कृष्णैया ने दलील दी है कि आनंद मोहन को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा का मतलब मृत्यु होने तक कारावास है और इसकी व्याख्या केवल 14 सालों की जेल के रूप में नहीं की जा सकती है। कृष्णैया की पत्नी ने अपनी याचिका में कहा है, ‘‘मौत की सजा के विकल्प के रूप में जब आजीवन कारावास की सजा दी जाती है, तो उसे अदालत के निर्देशानुसार सख्ती से लागू किया जाना होता है और यह सजा माफी दिये जाने से परे होगी।’’
ये भी पढ़ें-
ये क्या याचिका है, लोगों पर चिप नहीं लगा सकते, प्राइवेसी नाम की भी कोई चीज होती है; क्यों भड़के CJI चंद्रचूड़
ऐप पर पढ़ें
CJI Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों पर डिजिटली तौर पर निगरानी करने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर नाराजगी जताई। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी। हालांकि, बाद में बिना जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
सांसदों और विधायकों की डिजिटली निगरानी वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ भड़क गए और कहा कि हम लोगों पर चिप नहीं लगा सकते हैं। यह क्या याचिका है, हम डिजिटली निगरानी कैसे कर सकते हैं? प्राइवेसी नाम की भी कोई चीज होती है। हम आपसे जुर्माना भरने को कहेंगे। यह जनता का समय है, हमारा ईगो नहीं है। अगर याचिका खारिज होती है तो आपको पांच लाख रुपये भरने होंगे।
अदालती सुनवाइयों पर रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट ‘लाइव लॉ’ के अनुसार, सीजेआई की जुर्माना लगाने की चेतावनी के बाद वकील ने कहा कि मैं आपको कन्विंस कर लूंग। ये वेतनभोगी प्रतिनिधि मिसबिहेव करना शुरू कर देते हैं। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने जवाब दिया कि यह हर सांसदों और विधायकों के मामले में ऐसा नहीं होता। हम अधिकार का हनन नहीं कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो लोग कहने लगेंगे कि हमें जजों की जरूरत नहीं है और हम खुद ही फैसला करेंगे। यदि कोई जेबकतरा पकड़ा जाता है तो हम उसे मार देंगे।
मामले की सुनवाई करते हुए आगे सीजेआई चंद्रचूड़ ने वकील से कहा कि आप जो बहस कर रहे हैं, उसकी गंभीरता का अहसास है? सांसदों और विधायकों की भी निजी जिंदगी होती है। इस पर वकील ने जवाब दिया कि जो अपनी प्राइवेसी को लेकर इतने चिंतित हैं, उन्हें ऐसी नौकरियों के लिए अप्लाई नहीं करना चाहिए। संविधान में कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं, जोकि बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ हैं। इसके बाद सीजेआई ने कहा कि हमने याचिका को नोटिस पर रखा है। कोई जुर्माना नहीं लगा रहे, लेकिन हम इसे खारिज करते हैं। इस तरह सांसदों और विधायकों को डिजिटली तौर पर मॉनिटर किए जाने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
Supreme Court: ‘नीतियां लागू करना कार्यपालिका का अधिकार, अदालतें निर्देश नहीं दे सकतीं’, SC की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार की नीतियों और योजनाओं की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित होता है और अदालतें सरकार को कोई नीति या योजना लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को निर्देश दे कि देशभर में भुखमरी और कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए जगह-जगह सामुदायिक रसोई बनाई जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देने से किया इनकार
याचिका में दावा किया गया है कि देश में हर दिन पांच साल से कम उम्र के कई बच्चों की भुखमरी और कुपोषण से मौत हो जाती है और यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। साथ ही ये भोजन के अधिकार का भी उल्लंघन है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने ऐसा कोई भी निर्देश देने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि भुखमरी और कुपोषण से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें पहले ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और अन्य कल्याणकारी योजनाएं लागू कर चुकी हैं। पीठ ने कहा कि ‘यह सर्वविदित है कि नीतिगत मामलों की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है। अदालतें किसी नीति या योजना की उपयुक्तता की जांच नहीं करती हैं और न ही कर सकती हैं। न ही अदालतें नीति के मामलों में कार्यपालिका की सलाहकार हैं।’ पीठ ने कहा कि ‘नीतियां लागू करने का अधिकार कार्यपालिका के पास है।’
Chandigarh Mayor Polls: 8 वोटों को वैध मान कर दोबारा की जाए गिनती- सुप्रीम कोर्ट – India TV Hindi
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में विवाद को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में बड़ी सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने न्यायिक अधिकारी से उन आठ मतपत्रों को दिखाने के लिए कहा जिन्हें चुनाव के दौरान अमान्य कर दिया गया था। मतपत्रों को देखने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अवैध करार दिए गए 8 बैलेट पेपर पर कुलदीप कुमार का नाम हैं। इन पर एक लाइन लगाई गई थी। सुनवाई के आखिर में कोर्ट ने आदेश दिया कि मेयर चुनाव के वोटों की गिनती दोबारा होनी चाहिए और इन 8 वोटों को वैध मानकर गिनती में शामिल किया जाना चाहिए। उसके बाद नतीजे घोषित किए जाने चाहिए।