बिना नाम लिए वकीलों के एक वर्ग पर निशाना साधा गया है और आरोप लगाया गया है कि वे दिन में राजनेताओं का बचाव करते हैं और फिर रात में मीडिया के माध्यम से न्यायाधीशों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
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CJI Chandrachud
ये क्या याचिका है, लोगों पर चिप नहीं लगा सकते, प्राइवेसी नाम की भी कोई चीज होती है; क्यों भड़के CJI चंद्रचूड़
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CJI Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों पर डिजिटली तौर पर निगरानी करने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर नाराजगी जताई। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी। हालांकि, बाद में बिना जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
सांसदों और विधायकों की डिजिटली निगरानी वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ भड़क गए और कहा कि हम लोगों पर चिप नहीं लगा सकते हैं। यह क्या याचिका है, हम डिजिटली निगरानी कैसे कर सकते हैं? प्राइवेसी नाम की भी कोई चीज होती है। हम आपसे जुर्माना भरने को कहेंगे। यह जनता का समय है, हमारा ईगो नहीं है। अगर याचिका खारिज होती है तो आपको पांच लाख रुपये भरने होंगे।
अदालती सुनवाइयों पर रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट ‘लाइव लॉ’ के अनुसार, सीजेआई की जुर्माना लगाने की चेतावनी के बाद वकील ने कहा कि मैं आपको कन्विंस कर लूंग। ये वेतनभोगी प्रतिनिधि मिसबिहेव करना शुरू कर देते हैं। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने जवाब दिया कि यह हर सांसदों और विधायकों के मामले में ऐसा नहीं होता। हम अधिकार का हनन नहीं कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो लोग कहने लगेंगे कि हमें जजों की जरूरत नहीं है और हम खुद ही फैसला करेंगे। यदि कोई जेबकतरा पकड़ा जाता है तो हम उसे मार देंगे।
मामले की सुनवाई करते हुए आगे सीजेआई चंद्रचूड़ ने वकील से कहा कि आप जो बहस कर रहे हैं, उसकी गंभीरता का अहसास है? सांसदों और विधायकों की भी निजी जिंदगी होती है। इस पर वकील ने जवाब दिया कि जो अपनी प्राइवेसी को लेकर इतने चिंतित हैं, उन्हें ऐसी नौकरियों के लिए अप्लाई नहीं करना चाहिए। संविधान में कुछ ऐसे अनुच्छेद हैं, जोकि बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ हैं। इसके बाद सीजेआई ने कहा कि हमने याचिका को नोटिस पर रखा है। कोई जुर्माना नहीं लगा रहे, लेकिन हम इसे खारिज करते हैं। इस तरह सांसदों और विधायकों को डिजिटली तौर पर मॉनिटर किए जाने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
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‘न बच्चा गोद लेने का अधिकार, न शादी की इजाजत…’, समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के 4 फैसले
Same Sex Marriage: समलैंगिक जोड़ों के लिए मंगलवार (17 अक्टूबर) का दिन काफी अहम रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला पढ़ा. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने मई के महीने में 10 दिनों तक इस मामले पर सुनवाई की. इसके बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और आज इस फैसले को सुनाया गया है.
सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा शामिल हैं. जस्टिस हिमा कोहली को छोड़कर बाकी के चार जजों ने फैसले को पढ़ा. सुप्रीम कोर्ट ने कुल मिलाकर चार फैसले दिए हैं. आइए इन फैसलों की बड़ी बातों को जानते हैं.
सीजेआई चंद्रचूड़ के फैसले की बड़ी बातें
- चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिकता एक ऐसा विषय है, जो सिर्फ शहर के उच्च तबके तक सीमित नहीं है. इस समाज के लोग हर जगह हैं. उन्होंने सरकार से इस शादी को कानूनी मान्यता देने को कहा.
- सीजेआई ने बताया कि सरकार का काम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है. विवाह कानूनी दर्जे वाला है, लेकिन इसे मौलिक अधिकार नहीं कहा जाता है. उन्होंने कहा कि पिछले 200 सालों में विवाह में कई तरह के बदलाव आए हैं.
- चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट को समलैंगिक विवाह के लिए निरस्त कर देना गलत है. लेकिन ये जरूरी है कि सरकार इस तरह के संबंधों को कानूनी दर्जा दे, ताकि उन्हें उनके जरूरी अधिकार मिल सकें.
- सीजेआई चंद्रजूड़ ने कहा कि हर किसी को अपना साथी चुनने का अधिकार है. जिस तरह से दूसरों को ये अधिकार मिला है, ठीक वैसे ही समलैंगिक तबके को भी अपने साथी के साथ रहने का अधिकार है. ये अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है.
- फैसले में सीजेआई ने कहा कि अविवाहित जोड़े को बच्चा गोद लेने से रोकने वाला प्रावधान गलत है, जिसकी वजह से समलैंगिक जोड़े को भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. ये अनुच्छेद 15 का हनन है.
- सीजेआई ने कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव नहीं किया जाए. ऐसे जोड़े के खिलाफ एफआईआर तभी दर्ज की जाए, जब शुरुआत जांच पूरी हो जाए. पुलिस को समलैंगिक जोड़ों की मदद करनी चाहिए.
- चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में सिफारिश की कि केंद्र सरकार को एक कमिटी बनानी चाहिए, जिसका काम एक ऐसी व्यस्था बनाना हो, जिसमें राशन कार्ड, बैंक में नॉमिनी, मेडिकल जरूरतों के लिए फैसला लेने, पेंशन जैसे लाभ समलैंगिक जोड़े को मिल सके.
जस्टिस संजय किशन कौल ने अपने फैसले में क्या कहा?
- जस्टिस कौल ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिकता प्राचीन काल से मौजूद है. समलैंगिक जोड़ों को कानूनी अधिकार भी मिलने चाहिए. सरकार को इसके लिए एक कमेटी बनाना चाहिए. हालांकि, मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ऐसी शादियों को मान्यता नहीं मिल सकती.
- फैसले में जस्टिस कौल ने कहा कि वक्त आ गया है कि समलैंगिक तबके के साथ हुए ऐतिहासिक भेदभाव को दूर किया जाए. इनकी शादी को मान्यता देना भी उसमें से एक कदम हो सकता है. मगर इससे सहमत नहीं हूं कि एक कमिटी बना कर समलैंगिक जोड़ों को कानूनी अधिकार देने पर विचार करना चाहिए.
- जस्टिस कौल ने कहा कि मैं चीफ जस्टिस से पूरी तरह सहमत हूं कि एक भेदभाव-विरोधी कानून की जरूरत है. यही वजह है कि मेरा मानना है कि समलैंगिकों के साथ भेदभाव के खिलाफ कानून बनना चाहिए.
- फैसले में जस्टिस का कहना रहा कि भेदभाव-विरोधी कानून के लिए मेरे सुझाव इस प्रकार है कि इसे पारस्परिक भेदभाव को संबोधित करना चाहिए. समलैंगिक जोड़े को शादी के लिए मान्यता देना समानता की दिशा में पहला कदम है.
जस्टिस एस रविंद्र भट्ट के फैसले की ये रहीं बड़ी बातें
- जस्टिस भट्ट ने अपने फैसले में कहा कि मैं चीफ जस्टिस की इस बात से सहमत हूं कि शादी कोई मौलिक अधिकार नहीं है. लेकिन मैं इस बात सहमत हूं कि संबंध बनाना एक अधिकार है.
- फैसले में जस्टिस भट्ट ने कहा कि हम सरकार को कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकते हैं. हालांकि, हम यह मानते हैं कि समलैंगिकों को भी अपना साथी चुनने और उसके साथ रहने का अधिकार है.
- जस्टिस भट्ट का कहना रहा कि मैं चीफ जस्टिस के इस आदेश से भी सहमत नहीं हूं कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार मिलना चाहिए. सीजेआई ने गोद लेने का अधिकार देने की वकालत की थी.
- जस्टिस रविंद्र भट्ट ने ये भी कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि समलैंगिक जोड़ों के साथ कोई भेदभाव न हो. लेकिन साथ रहने को कानूनी दर्जा नहीं दिया जा सकता.
अपने फैसले में क्या बोले जस्टिस पी एस नरसिम्हा?
- जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने कहा कि मैं भी जस्टिस भट्ट से सहमत हूं. लेकिन मेरे फैसले में कुछ अलग बिंदु भी हैं. उन्होंने कहा कि शादी कोई मौलिक अधिकार नहीं है. अगर कोई किसी के साथ रहना चाहता है, तो वह ऐसा कर सकता है.
- अपने फैसले में जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि मैं जस्टिस भट की इस बात से सहमत हूं कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं मिल सकता. उन्होंने कहा कि विवाह करने का कोई अयोग्य अधिकार नहीं है. जस्टिस हिमा कोहली ने भी जस्टिस भट्ट के साथ सहमति जताई.
फैसले की पांच प्रमुख बातें क्या रही हैं?
- सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है. इसका कहना है कि ये काम सरकार का है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार एक कमिटी बना सकती है, जो समलैंगिक जोड़े से जुड़ी चिंताओं का समाधान करेगी और उनके अधिकार सुनिश्चित करेगी.
- पांच जजों की पीठ ने बहुमत से ये फैसला दिया है कि समलैंगिक जोड़े को बच्चे को गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है.
- सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम को रद्द करने से इनकार कर दिया.
- सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि विपरीत लिंग वाले नागरिक से ट्रांसजेंडर नागरिक को मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है, यानी एक समलैंगिक लड़का एक लड़की से शादी कर सकता है.
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CJI चंद्रचूड़ ने साझा की ‘खुशखबरी’, कहा- पूरे देश में बढ़ रही है महिला जजों की संख्या
नई दिल्ली: देश के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को महिला जजों की संख्या में हो रही अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी के बारे में बात की। चीफ जस्टिस ने कहा कि अब पूरे देश में महिला जजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। चीफ जस्टिस ने एक केस की सुनवाई की शुरुआत में कहा, ‘हम एक खुशखबरी साझा करना चाहते हैं। यहां (कोर्ट रूम की) पिछली पंक्ति में महाराष्ट्र के दीवानी न्यायाधीश कनिष्ठ प्रभाग के 75 जज बैठे हैं। कुल 75 जजों के इस ग्रुप में से 42 महिलाएं और 33 पुरुष हैं। यह राष्ट्रव्यापी स्तर पर हो रहा है। महिला जजों की संख्या ज्यादा है।’
‘यह 15 साल पहले उठाए गए कदमों का नतीजा है’
बेंच में इस दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी मौजूद थे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वह लंच के दौरान महिला जजों समेत जूनियर अफसरों से मुलाकात करेंगे। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे समेत कुछ वकीलों ने चीफ जस्टिस से सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की संख्या बढ़ाने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया। CJI ने कहा, ‘आज की गई नियुक्तियां 15 साल पहले उठाए गए कदमों का परिणाम हैं।’
सीनियर वकील विकास सिंह ने लिखा था पत्र
बता दें कि हाल में ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने CJI को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका में उच्च स्तर पर जजों के एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया था। उन्होंने हाल ही में संसद में पारित किए गए विधेयक का जिक्र किया, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीट आरक्षित किए जाने का प्रावधान किया गया है।
5 हाई कोर्ट्स में एक भी महिला जज नहीं!
3 बार SCBA के अध्यक्ष रहे सिंह ने लिखा कि पटना, उत्तराखंड, त्रिपुरा, मेघालय और मणिपुर के हाई कोर्ट में एक भी महिला जज नहीं है, जबकि शेष 20 हाई कोर्ट में 670 पुरुष जजों की तुलना में 103 महिला जज हैं। (भाषा)