महाराष्ट्र में लगातार तेज बारिश हो रही है। इसकी वजह से लोगों का जीना दूभर हो गया है। इस बीच, बुधवार को मुंबई और आसपास के ठाणे व पालघर जिलों में भारी बारिश हुई। इससे यहां जलजमाव और यातायात संकट पैदा हो गया।
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महाराष्ट्र में लगातार तेज बारिश हो रही है। इसकी वजह से लोगों का जीना दूभर हो गया है। इस बीच, बुधवार को मुंबई और आसपास के ठाणे व पालघर जिलों में भारी बारिश हुई। इससे यहां जलजमाव और यातायात संकट पैदा हो गया।
दिल्ली में पक्ष और कर्नाटक में विपक्ष शक्ति प्रदर्शन कर रहा है। एक प्रदर्शन महाराष्ट्र में भी चल रहा है। महाराष्ट्र के राजनीतिक प्रदर्शन पर न केवल पूरे देश की, बल्कि पक्ष और विपक्ष दोनों की निगाह टिकी हैं। केंद्र में एनसीपी के प्रमुख शरद पवार हैं। निगाह भी बस एक ही सवाल पर टिकी है कि क्या पवार अपने भतीजे अजीत पवार को माफ करके उन्हें आशीर्वाद दे देंगे। शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की मुराद है कि शरद पवार भतीजे अजित और उसके साथ गए लोगों को अयोग्य घोषित कराएं। शरद पवार गुट के एनसीपी के नेता भी कुछ इसी तरह की मंशा रखते हैं। महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री और शरद पवार के करीबी अनिल देशमुख तो साफ कहते हैं कि अजीत पवार को माफी नहीं मिलने वाली है।
अमर उजाला से विशेष बातचीत में अनिल देशमुख कहते हैं कि अजित पवार और उनके साथ शरद पवार के दिल में रहने वाले भरोसे के लोग चाहे जितना पैर पकड़ लें, माफी मांगने की कोशिश कर लें, लेकिन एनसीपी प्रमुख टस से मस नहीं होने वाले। अनिल देशमुख कहते हैं कि 18 जुलाई को शरद पवार बेंगलुरु जाएंगे। विपक्ष की एकता बैठक में भाग लेंगे। महाराष्ट्र विधानसभा में उनमें भरोसा रखने वाली एनसीपी महाविकास अघाड़ी की सहयोगी कांग्रेस और शिवसेना के साथ बैठेगी। देशमुख का कहना है कि पवार साहब महाराष्ट्र में भाजपा और उसकी सरकार तथा भाजपा की तोडफ़ोड़ की नीतियों के विरुद्ध राजनीति करेंगे। आवाज उठाएंगे।
शिवसेना की मुराद कि एनसीपी शुरू करे अयोग्यता वाली कार्यवाही
शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने अपने नेता उद्धव ठाकरे का हवाला देकर शरद पवार के प्रभुत्व वाले एनसीपी को नसीहत दे दी है। संजय राउत ने कहा कि एनसीपी को साथ छोड़कर गए नेताओं के लिए अपने दरवाजे बंद करने चाहिए। सोमवार को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार सहयोगियों के साथ तीसरी बार अपने चाचा शरद पवार से मिलने के लिए वाईबी चव्हाण सेंटर गए। अनुरोध किया। माफी और एनसीपी को एकजुट रखने का मार्ग दर्शन मांगा। संजय राउत के मुताबिक एनसीपी को भी उद्धव ठाकरे की तरह बागियों के विरुद्ध उन्हें अयोग्य घोषित कराने की कार्यवाही करनी चाहिए।
दिल में रहते थे अजित, प्रफुल्ल, छगन, दिलीप…अब नहीं
अनिल देशमुख कहते हैं कि वह कोई आज से शरद पवार को नहीं जानते। उन्हें पता है कि वह अपने भतीजे अजित पवार को कितना स्नेह करते थे। प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, दिलीप वलसे पाटिल, तटकरे सब उनके कितने करीब थे। लेकिन इन सभी लोगों ने पवार साहब की सोच, इच्छा, विचारधारा और राजनीतिक प्रतिबद्धता के विपरीत जाने का काम किया है। एनसीपी के बागियों ने शरद पवार के दिल को ठेस पहुंचाई है। देशमुख कहते हैं कि एनसीपी से सरकार में गए लोग बार-बार शरद पवार से मिल रहे हैं। आशीर्वाद, माफी सब मांग रहे हैं, लेकिन एनसीपी प्रमुख ने अपने मुंह से अभी तक कुछ नहीं कहा है। वह अपनी सोच और निर्णय पर टिके हैं। पूर्व मंत्री के मुताबिक यह 2023 है 2019 नहीं (2019 में भी अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली)। अगले साल 2024 में चुनाव है। शरद पवार महाराष्ट्र में निकले तो जनता ने उन्हें अभूतपूर्व समर्थन दिया है और सभी को पता है कि बिना शरद पवार के एनसीपी को छोड़कर जाने वालों की चुनाव में क्या स्थिति रहने वाली है। शरद पवार से मिलकर अपना पक्ष रखने के बाद प्रफुल्ल पटेल की एक प्रतिक्रिया भी चर्चा का विषय बनी है। प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि पवार साहब ने हमारी बात और समस्या को गंभीरता से सुना, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि समझ में नहीं आता कि पवार साहब के मन में क्या है?
क्यों एनसीपी, शिवसेना (उद्धव) और कांग्रेस के नेताओं को शरद पवार में है भरोसा
कांग्रेस के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि शरद पवार से जुड़ी किसी भी राजनीतिक घटना में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। हमें भी पता है कि अजित पवार के दूसरी बार भाजपा के साथ हाथ मिलाने से पवार साहब की राजनीतिक साख को झटका लगेगा। शरद पवार इस उम्र में अपनी साख से समझौता नहीं कर सकते। शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के बीडी चुतर्वेदी भी यही कहते हैं। बीडी चतुर्वेदी का कहना है कि लोगों के दिमाग में अभी इस बगावत को लेकर कई सवाल तैर रहे हैं। शरद पवार को इसकी जानकारी है। इसलिए वह अपने तरीके से न केवल राजनीतिक साख को मजबूत करेंगे, बल्कि स्थिति भी स्पष्ट करेंगे। एनसीपी के नेता अनिल देशमुख का संकेत भी इसी तरफ है। अनिल देशमुख कहते हैं कि अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, दिलीप वलसे पाटिल जैसे नेताओं को सोचना चाहिए था कि आखिर वह क्या करने जा रहे हैं?
न संभले अजित पवार तो एकनाथ शिंदे से बुरा होगा हश्र
एनसीपी के शरद पवार के वफादार नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अब महाराष्ट्र में अपनी राजनीतिक हैसियत का आभास है। सूत्र कहते हैं कि अजित पवार के साथ गए नेता नहीं संभले तो इनकी स्थिति एकनाथ शिंदे से भी खराब होने वाली है। अनिल देशमुख इस बात पर जोर का ठहाका भी लगाते हैं। अनिल देशमुख कहते हैं कि अजित पवार को सारी सच्चाई पता है। वह शरद पवार की छाया में कई दशक की राजनीति कर चुके हैं। उन्हें महाराष्ट्र में भाजपा की जमीन और शरद पवार का असर भी मालूम है। पवार साहब महाराष्ट्र में घूम रहे हैं, तो जनता इसे उनके साथ हुए बड़े धोखे के रूप में ले रही है। अनिल देशमुख का कहना है कि तोड़ फोड़ की यह राजनीति भाजपा का बड़ा नुकसान करेगी। पहले उन्होंने शिवसेना के साथ यही किया और लोग भूल भी नहीं पाए थे कि एनसीपी में भी तोड़फ़ोड़ की। इससे 2024 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा की जमीन खिसक रही है। देशमुख तो कहते हैं कि भाजपा को पिछले साल ही अपनी खराब स्थिति का पता चल चुका था।
आखिर महाराष्ट्र में मंत्रालय के बंटवारे में वही हुआ जिसका एकनाथ शिंदे गुट को डर था। उपमुख्यमंत्री और एनसीपी के नेता अजित पवार को वही वित्त मंत्रालय दिया गया है, जिसे लेकर एकनाथ शिंदे और उनके विधायकों ने पुरानी सरकार में पवार के खिलाफ मोर्चा खोला था। उस विरोध का असर यह हुआ कि महाविकास आघाड़ी गठबंधन के साथ चल रही सरकार गिर गई और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हो गए। उस घटना के ठीक एक साल बाद अजित पवार पाला बदलकर सरकार में शामिल हो गए और शुक्रवार को हुए मंत्रालय के बंटवारे में उन्हें वित्त मंत्रालय ही दिया गया। यही नहीं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हिस्से में आने वाला मंत्रालय भी अब अजित पवार की पार्टी के मंत्री के हिस्से आ गया है। महाराष्ट्र में हुए मंत्रालय बंटवारे के बाद यहां की सियासत एक बार फिर से गर्म हो गई है। एकनाथ शिंदे गुट से जुड़े विधायकों ने शुक्रवार को ही मंत्रालय बंटवारे के बाद एक बड़ी बैठक तक कर डाली।
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नहीं चाहते थे कि अजीत को मिले वित्त मंत्रालय
महाराष्ट्र में आखिर लंबी रस्साकशी के बाद में मंत्रालयों का बंटवारा कर दिया गया। इस बंटवारे में एनसीपी के नेता और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री अजित पवार को वित्त मंत्रालय दिया गया है। अजित पवार को मिले वित्त मंत्रालय से महाराष्ट्र की सियासी गर्माहट और बढ़ गई है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु शितोले कहते हैं कि सरकार में शामिल होने के बाद मंत्रालयों का बंटवारा इन्हीं कुछ मुद्दों पर फंसा हुआ था कि क्या वित्त मंत्रालय अजित पवार के पास आना चाहिए या नहीं। वह कहते हैं दरअसल इसके पीछे सियासी अदावत बड़ी वजह मानी जा रही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायक और मंत्री चाहते थे कि उनके हिस्से के प्रमुख मंत्रालयों में बड़ी सेंधमारी भी न हो और वित्त मंत्रालय अजित पवार के पास बिल्कुल न जाए। काफी मशक्कत के बाद बहुत से मामलों में सुलह हुई, लेकिन अजित पवार को वही मंत्रालय दिया गया, जिसे लेकर एकनाथ शिंदे गुट न देने के लिए अड़ा हुआ था। महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक तरीके से अजीत पवार को मिला हुआ वित्त मंत्रालय एकनाथ शिंदे के लिए चुनौती है। जिस मंत्रालय को लेकर खुद शिंदे और उनके विधायकों ने पिछली सरकार में मोर्चा खोल दिया था वही मंत्रालय वापस अजित पवार को मिल गया है।
कृषि मंत्रालय लेकर क्या और कमजोर किया शिंदे को?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र में कृषि मंत्रालय प्रमुख मंत्रालयों में गिना जाता है। यह मंत्रालय मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पास था। अब यह मंत्रालय बंटवारे में अजित पवार के साथ आए धनंजय मुंडे के हिस्से में आ गया है। राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री से लिया गया अहम मंत्रालय भी एक तरीके से महाराष्ट्र की सियासत में बड़े बदलाव के संकेत दे रहा है। उनका कहना है जिस तरीके से मुख्यमंत्री और उनके साथ आए विधायक और नेताओं के विरोध के बाद भी अजीत पवार को वित्त मंत्रालय दिया गया। यही नहीं मुख्यमंत्री के हिस्से में रहने वाला प्रदेश का बड़ा कृषि मंत्रालय भी अजित पवार के साथ आए विधायक को दे दिया। वह बताता है कि अगले कुछ महीने में महाराष्ट्र की सियासी गणित किसी और दिशा में जाने वाली है।
भाजपा के हिस्से के कुछ मंत्रालय भी गए अजीत खेमे को
शुक्रवार को हुए मंत्रालय के बंटवारे में अजित पवार को वित्त और योजना विभाग की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। छगल भुजबल को खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग सौंपा गया है। दिलीप वाल्से पाटिल को सहकारिता, अदिति तटकरे को महिला और बाल विकास, धनंजय मुंडे को कृषि की जिम्मा दिया गया है। इसके अलावा हसन मुशरीफ को स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय तथा अनिल पाटिल को राहत और पुनर्वास, आपदा प्रबंधन विभाग दिया गया है। भाजपा नेताओं के पास स्वास्थ्य, शिक्षा और खेल मंत्रालय थे। धर्मराव बाबा आत्राम को खाद्य एवं औषधि मंत्रालय और संजय बनसोडे को खेल और युवा कल्याण दिया गया है
मंत्रालय बंटवारे के बाद शिंदे गुट की बैठक
सूत्रों के मुताबिक शुक्रवार दोपहर बाद एकनाथ शिंदे गुट से जुड़े हुए करीब एक दर्जन विधायकों ने बैठक कर मंत्रालय बंटवारे पर नाराजगी जताई। पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि वह नहीं चाहते थे कि अजित पवार को वित्त मंत्रालय मिले। इसके पीछे उनका तर्क था कि पिछली सरकार में वित्त मंत्रालय पवार के पास था और उनके नेता फंड ना देने का आरोप लगाकर विरोध कर रहे थे। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि अजित पवार को मिले वित्त मंत्रालय के साथ-साथ मुख्यमंत्री के हिस्से में रहने वाला कृषि मंत्रालय भी उनके पास से लेकर अजित पवार के साथ आए नेता को दे दिया गया। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि अगर जल्द ही उनके नेता इस मामले में अपनी आवाज मुखर नहीं करेंगे, तो उनके लिए दूसरे रास्ते भी बंद होने लगेंगे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिस तरीके से उद्धव ठाकरे की शिवसेना से जुड़े नेता लगातार कह रहे हैं कि एकनाथ शिंदे के साथ रहने वाले बड़े नेता उनके संपर्क में हैं। उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि महाराष्ट्र में हुए मंत्रालय के बंटवारे की चिंगारी किस तरह बड़ी आग की तरह लगने वाली है।
अजित पवार को लेकर ही गिराई थी शिंदे और उनके विधायकों ने सरकार
महाराष्ट्र में सियासी संकट पिछले साल तब आना शुरू हुआ था, जब एमवीए (महाविकास अघाड़ी) सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए अजित पवार के ऊपर शिवसेना के विधायकों ने बजट न देने का आरोप लगाना शुरू किया था। राजनीतिक विश्लेषक हिमांशु शितोले कहते हैं कि पुरानी सरकार में बगावत की शुरुआत ही अजित पवार को लेकर शुरू हुई थी। वह कहते हैं कि कई विधायकों ने आरोप लगाने शुरू किए थे कि अजित पवार के वित्त मंत्री रहते हुए वह शिवसेना के विधायकों को विकास कार्य का बजट नहीं दे रहे हैं। जबकि एनसीपी के विधायकों को अजित पवार न सिर्फ समय रहते बजट जारी कर रहे हैं, बल्कि अतिरिक्त बजट भी देकर शिवसेना को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। इस मामले को लेकर विरोध इतना ज्यादा बढ़ा कि एकनाथ शिंदे ने पार्टी में बगावत करते हुए अपने साथ 40 से ज्यादा विधायकों को जोड़कर एमवीए की सरकार को गिरा दिया था।
महाराष्ट्र की सियासत में मचा तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है। सियासी तूफान की जद में सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायक ही आ रहे हैं। मंत्रालय को लेकर छिड़ी जंग में अब नए समीकरण शिंदे के साथ आए विधायकों को आने वाले विधानसभा के चुनाव में टिकट न मिलने का भी बनने लगा है। दरअसल दो दिन पहले एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कुछ ऐसा ही बयान दे दिया कि उसके बाद शिंदे गुट के विधायकों में खलबली मची हुई है। शिंदे गुट के विधायकों को अब डर सता रहा है कि अगर वह लगातार एकनाथ शिंदे के साथ बने रहे, तो कहीं ऐसा न हो अजीत पवार के गठबंधन में शामिल होने से उनकी सियासी गणित डगमगा जाए और आने वाले विधानसभा के चुनाव में टिकट ही ना मिले। दरअसल में सियासी गणित में टिकटों की दावेदारी ऐसी हो रही है कि शिंदे गुट के 40 विधायकों में सब को टिकट मिलने का संकट पैदा हो रहा है।
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यह खेला है अजीत पवार ने दांव
महाराष्ट्र सरकार में शामिल हुए एनसीपी के नेता अजित पवार ने आते ही सियासी दांव चलने शुरू कर दिए हैं। अजित पवार ने आने वाले विधानसभा के चुनावों में 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है। महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से समझने वालों का कहना है कि अगर 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात अजित पवार की मान ली जाती है, तो यह एकनाथ शिंदे उनके साथ आए विधायकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हिमांशु शीतोले कहते हैं कि महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटें हैं। ऐसे में अगर समूचे महाराष्ट्र की तकरीबन 35 फ़ीसदी से ज्यादा सीटों पर अजित पवार चुनाव लड़ने का दावा करेंगे, तो बची हुईं 65 फ़ीसदी सीटों पर टिकट की जंग भारतीय जनता पार्टी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच में होगी। चूंकि महाराष्ट्र में 2019 के हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी में 164 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। ऐसे में उसकी दावेदारी इस बार भी उतनी ही सीटों की तो होगी।
कुछ इस तरह फंसा है 34 की सियासत का फेर
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र के चुनावों में सीटों की गणित के बीच में एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायकों के सियासी सफर पर ब्रेक लगता हुआ नजर आ रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा पिछले चुनाव में शिवसेना के साथ गठबंधन में थी। उस दौरान भारतीय जनता पार्टी ने 164 विधानसभा सीटों के साथ मैदान में हाथ आजमाया था। आने वाले चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी योजना के मुताबिक उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं कि अगर भारतीय जनता पार्टी 164 विधानसभा सीटों पर आगामी विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारती है, तो बची सीटों पर अपने सहयोगियों को उसे चुनाव लड़ाना होगा। हाल में ही एकनाथ शिंदे और फडणवीस की सरकार में शामिल हुए एनसीपी के नेता अजित पवार ने 90 सीटों पर चुनाव लड़ने की दावेदारी की है। ऐसे में एनसीपी और भारतीय जनता पार्टी की सीटों को जोड़ा जाए तो 254 सीटों पर तो सिर्फ यही दो पार्टी की दावेदारी मानी जा रही है। प्रदीप सिंह कहते हैं अब बचती हैं महज 34 सीटें। बस महाराष्ट्र की सियासत में यही 34 सीटों की सियासत का फेर अब भारी पड़ने वाला है। क्योंकि यह संख्या तो एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायकों की संख्या से भी कम है।
विधायक 40, सीटें बच रहीं 34, कैसे निभेगा गठबंधन
सियासी जानकार कहते हैं कि एकनाथ शिंदे और फडणवीस के गठबंधन में 34 सीटों का सियासी फेर बड़ी मुसीबत में डालने वाला है। जानकारों का कहना है कि भाजपा की पुरानी 164 सीटें और अजित पवार की ओर से मांगी गई 90 सीटों के बाद बच रहीं 34 सीटें, तो एकनाथ शिंदे के साथ आए 40 विधायकों का कोटा भी नहीं पूरा कर पा रही हैं। बस यही सबसे बड़ा पेंच अब एकनाथ शिंदे के साथ फंस रहा है और उनके विधायकों को अखरने लगा है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जो 40 विधायक एकनाथ शिंदे के साथ गए हैं, उनको भी अब आने वाले चुनावों में टिकट मिलने का संकट हो रहा है। ऐसे में अब एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायक उद्धव ठाकरे से संपर्क कर रहे हैं। शिवसेना के वरिष्ठ नेता और सांसद विनायक राऊत कहते हैं कि एकनाथ शिंदे के साथ गए आठ से ज्यादा विधायक उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर चुके हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जो विधायक शिंदे के साथ हैं उनको टिकटों के सियासी उलटफेर में अपना भविष्य स्पष्ट नजर नहीं आ रहा है। वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु शीतोले कहते हैं कि अगर अजित पवार को अपनी मांगी गई तय संख्या के मुताबिक सीटें मिलती हैं, तो निश्चित तौर पर एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायकों के लिए दिक्कतें तो पैदा ही होने वाली हैं।
इसलिए कर रहे हैं अजित पवार 90 सीटों की मांग
महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा यह भी हो रही है कि आखिर अजित पवार 90 सीटों की मांग क्यों कर रहे हैं। क्योंकि अजित पवार के साथ तो इस वक्त उनकी पार्टी से जुड़े हुए सभी 53 विधायक भी नहीं है। इसके पीछे का तर्क देते हुए अजीत पवार के साथ गए एक वरिष्ठ एनसीपी नेता कहते हैं कि उनके साथ एनसीपी के जो विधायक नहीं आए हैं, वह भी उनके साथ हैं। अजित पवार सभी 53 विधायकों का अपने साथ होने का दावा कर रहे हैं। यही वजह है कि अजित पवार उन सभी 53 सीटों पर टिकट की दावेदारी तो कर ही रहे हैं, साथ में वह उन 45 सीटों की दावेदारी भी कर रहे हैं, जिन पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा और जीत कर सदन में गए। अजित पवार के साथ गए एनसीपी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी ने आपसी सहयोग के साथ चुनाव लड़ा था। जो सीटें कांग्रेस को मिली हैं, उसमें भी एनसीपी के बड़े वोट बैंक का सीधा-सीधा ट्रांसफर हुआ था। इसलिए कांग्रेस की जीती हुईं सीटों पर भी अजित पवार अपनी दावेदारी कर रहे हैं। कांग्रेस और एनसीपी की सीटों को मिलाकर वह 90 सीटों की दावेदारी ठोक रहे हैं।
शिंदे गुट के विधायकों में पनप रही नाराजगी
एकनाथ शिंदे गुट से जुड़े विधायकों का कहना है कि जिस तरीके का सियासी माहौल बन रहा है, उससे उनका भविष्य फिलहाल इस गठबंधन के साथ बहुत दिनों तक बनते हुए नहीं नजर आ रहा है। इसी रविवार को शिंदे गुट से जुड़े विधायकों ने एक बड़ी बैठक कर मंत्रिमंडल में होने वाले विस्तार और मंत्रियों को दिए जाने वाले महकमे को लेकर भी आपत्ति जताई थी। शिंदे गुट से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अगर अजित पवार कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, तो हमारे हिस्से में आने वाली सीटें कम हो जाएंगी। उनका कहना है कि वह और उनकी पार्टी इस बार ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर उनको सीटें कम मिलती हैं, तो उनके कुछ विधायक अपने भविष्य का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं।
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