साड्डा हक… LGBTQ समुदाय ने निकाली प्राइड परेड, दिल्ली की सड़कों पर तीन घंटे तक मार्च कर पहुंचे जंतर मंतर
Source link
same sex marriage
‘समलैंगिक विवाह पर फैसला अंतरात्मा की आवाज’, अमेरिका में बोले सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़
Same Sex Marriage Verdict: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज पर अपना फैसला सुनाया था जिसमें एक राय नहीं बनी. अब भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार (23 अक्टूबर) को कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के हालिया समलैंगिक विवाह फैसले में अपनी अल्पमत राय पर कायम हैं.
बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई चंद्रचूड़ ने जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर, वाशिंगटन डीसी और सोसाइटी फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एसडीआर), नई दिल्ली की ओर से सह-आयोजित तीसरी तुलनात्मक संवैधानिक कानून चर्चा में यह बात कही. कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अक्सर संवैधानिक महत्व के मुद्दों पर दिए गए फैसले “अंतरात्मा की आवाज” होते हैं और वह समलैंगिक विवाह मामले में अपने अल्पमत फैसले पर कायम हैं.
‘मेरे साथी मुझसे असहमत थे’
उन्होंने कहा, ”कभी-कभी यह अंतरात्मा की आवाज और संविधान का वोट होता है और मैंने जो कहा, मैं उस पर कायम हूं.” सीजेआई ने अपने फैसले की व्याख्या करते हुए कहा, “मैं अल्पमत में था जहां मेरा मानना था कि समलैंगिक जोड़े एक साथ रहने पर गोद ले सकते हैं और फिर मेरे तीन सहकर्मी इस बात पर असहमत थे कि समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति न देना भेदभावपूर्ण है लेकिन इसका निर्णय तो संसद को करना था.”
कार्यक्रम में बोलते हुए, सीजेआई ने यह भी बताया कि कैसे सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के कारण समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए याचिकाएं दायर की गईं. पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सभी न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि विवाह समानता लाने के लिए कानूनों में संशोधन करना संसद की भूमिका में आता है.
समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट
जहां सीजेआई और जस्टिस एसके कौल समलैंगिक संबंधों को मान्यता देने के पक्ष में थे, वहीं बेंच के बाकी तीन जजों की राय अलग थी. सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर को अपने फैसले में देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया. पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने समलैंगिक विवाह के कानून से संबंधित फैसले को संसद के पास भेज दिया है.
ये भी पढ़ें: UP News: दो युवतियों ने एक साथ रहने की खाई कसम, थाने में घंटों चला ड्रामा, जानें फिर क्या हुआ
समलैंगिक विवाह मामले पर SC के फैसले की पूर्व न्यायाधीशों ने की सराहना, जानें क्या कुछ कहा?
Ex Judges On Same Sex Marriage Issue: पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए शनिवार (21 अक्टूबर) को कहा कि यह वैधानिक प्रावधानों, संस्कृति और नैतिकता की व्याख्या का एक मिश्रण है.
पूर्व न्यायाधीशों ने एक बयान में दावा किया कि इस फैसले को ‘एलजीबीटीक्यू प्लस’ समुदाय और उसके एक छोटे हिस्से को छोड़कर समाज से ‘जबरदस्त सराहना’ मिली है. उन्होंने फैसले के विभिन्न बिंदुओं का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला भारतीय संस्कृति, लोकाचार और विरासत के संदर्भ में प्रासंगिक है. प्रमोद कोहली, एसएम सोनी, एएन ढींगरा और आरसी चव्हाण सहित हाई कोर्ट के 22 पूर्व न्यायाधीशों ने इस बारे में अपनी टिप्पणी की है.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (17 अक्टूबर) को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था. इसके साथ ही न्यायालय ने कहा था कि कानून की ओर से मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर शादी का ‘कोई असीमित अधिकार’ नहीं है.
पूर्व न्यायाधीशों ने अपने बयान में क्या कहा?
पूर्व न्यायाधीशों ने अपने बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया है कि ऐसे विवाहों को मान्यता देने के लिए प्रावधान करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है और यह संसद के अधिकार क्षेत्र में है. उन्होंने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायालय का अधिकार क्षेत्र संवैधानिक और वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करना है और विधायी कार्यों से संबंधित अधिकार क्षेत्र संबंधित विधायिका के पास है.’’
सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से मंगलवार को गोद लिए जाने से जुड़े एक नियम को बरकरार रखा था, जिसमें अविवाहित और समलैंगिक जोड़ों के बच्चा गोद लेने पर रोक है.
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि समलैंगिकों के गोद लेने के अधिकार को भी अदालत ने मान्यता नहीं दी है और यह दृष्टिकोण सराहनीय है. उन्होंने कहा कि मौजूदा वैधानिक प्रावधान किसी एक व्यक्ति के गोद लेने के अधिकार को भी प्रतिबंधित करते हैं.
यह भी पढ़ें- बढ़ सकती हैं महुआ मोइत्रा की मुश्किलें! लोकसभा अध्यक्ष के बाद अब निशिकांत दुबे ने लोकपाल से की शिकायत
‘भारतीय संस्कृति…’ समलैंगिक विवाह पर SC के फैसले पर क्या बोली कांग्रेस, RSS, VHP, AIMIM
Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से मना करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बयानबाजी शुरू हो गई है. एक तरफ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS), विश्व हिंदू परिषद, मौलाना साजिद रशीदी और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसका स्वागत किया. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने कहा कि वो बाद में इस पर विस्तृत बयान देंगे.
कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, ”समलैंगिक विवाह और इससे संबंधित मुद्दों पर हम आज सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग और बंटे हुए फैसलों का अध्ययन कर रहे हैं. इस पर बाद में हम एक विस्तृत प्रतिक्रिया देंगे.”
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस हमेशा से सभी नागरिकों की स्वतंत्रता, इच्छा, स्वाधीनता और अधिकारों की रक्षा के लिए उनके साथ खड़ी है. हम एक समावेशी पार्टी के रूप में, बिना किसी भेदभाव से भरे प्रक्रियाओं —न्यायिक, सामाजिक और राजनीतिक — में दृढ़ता से विश्वास करते हैं.
On the same sex marriage and related issues we are studying the different and differing judgments delivered in the Supreme Court today and will have a detailed response subsequently.
Indian National Congress has always stood with all our citizens to protect their freedoms,…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) October 17, 2023
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने क्या कहा?
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मामले में केंद्र के प्रमुख वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “मैं न्यायालय के फैसले का दिल से स्वागत करता हूं. मुझे प्रसन्नता है कि मेरी दलील स्वीकार कर ली गई है.’’
उन्होंने आगे कहा कि सभी चार फैसले हमारे देश के न्यायशास्त्र और बौद्धिक कवायद को अगले स्तर पर ले गए हैं. दुनिया में बहुत कम अदालतें हैं जहां इस स्तर की बौद्धिक और विद्वतापूर्ण न्यायिक कवायद की उम्मीद की जा सकती है. यह फैसला विभिन्न न्यायक्षेत्रों में पढ़ा जाएगा.’’
आरएसएस क्या बोली?
आरएसएस ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने एक्स पर लिखा, ‘‘समलैंगिक विवाह पर उच्चतम न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है. हमारी लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली इससे संबंधित सभी मुद्दों पर गंभीरता से विचार कर सकती है और उचित निर्णय ले सकती है.’’
उच्चतम न्यायालय का समलैंगिक विवाह संबंधी निर्णय स्वागत योग्य है । हमारी लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था इस से जूड़े सभी मद्दों पर गंभीर रूप से चर्चा करते हुए उचित निर्णय ले सकती है । @editorvskbharat
— Sunil Ambekar (@SunilAmbekarM) October 17, 2023
विश्व हिंदू परिषद ने क्या कहा?
विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने मंगलवार को कहा समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं देने का फैसला भी अच्छा कदम है.. वीएचपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, ‘‘हम इस बात से संतुष्ट हैं कि उच्चतम न्यायालय ने हिंदू, मुस्लिम और ईसाई अनुयायियों समेत सभी संबंधित पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाया है कि दो समलैंगिकों के बीच विवाह के रूप में रिश्ता पंजीकरण योग्य नहीं है. यह उनका मौलिक अधिकार नहीं है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं देना भी अच्छा कदम है.’’
प्रेस वक्तव्य:
नई दिल्ली। अक्टूबर 17, 2023।
समलैंगिक विवाह तथा उनके द्वारा दत्तक लिए जाने को कानूनी मान्यता नहीं दिए जाने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का विश्व हिन्दू परिषद ने स्वागत किया है। विहिप के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार ने आज कहा है कि हमें…
— Vishva Hindu Parishad -VHP (@VHPDigital) October 17, 2023
जमीयत उलेमा ए हिंद ने क्या कहा?
जमीयत उलेमा ए हिंद के मौलाना महमूद मदनी गुट ने फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि अदालत ने विभिन्न सामाजिक, सरकारी और धार्मिक संगठनों के प्रस्तुत तर्कों की सावधानीपूर्वक जांच करने के बाद इस फैसले पर पहुंची है.
मौलाना साजिद रशीदी क्या बोले?
मौलाना साजिद रशीदी ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा कि समलैंगिक शादी की प्रथा पश्चिम से आई है. ये भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती.
असदुद्दीन ओवैसी ने क्या तर्क दिए?
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने एक्स पर लिखा कि कोर्ट पर ये तय करना निर्भर नहीं है कि कौन किस कानून के तहत शादी करेंगे.
उन्होंने आगे कहा कि मेरा विश्वास है कि विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच होता है. यह 377 के मामले की तरह गैर-अपराधीकरण का सवाल नहीं है, यह शादी की मान्यता के बारे में है.
ओवैसी ने कहा, ”मैं इस बात से चिंतित हूं कि बेंच ने टिप्पणी की कि ट्रांसजेंडर लोग स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA) और पर्सनल लॉ के तहत शादी कर सकते हैं. जहां तक इस्लाम का सवाल है तो यह सही व्याख्या नहीं है क्योंकि इस्लाम दो बायोलॉजिकल मेल या दो बायोलॉजिकल फीमेल के बीच विवाह को मान्यता नहीं देता है.”
#SameSexMarriage
1. SC has upheld the principle of parliamentary supremacy. It is not up to the courts to decide who gets married under what law.
2. My faith and my conscience says that marriage is only between a man and a woman. This is not a question of decriminalisation like…
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) October 17, 2023
सुप्रीम कोर्ट क्या बोला?
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने 3:2 के बहुमत से मंगलवार को गोद लिए जाने से जुड़े एक नियम को बरकरार रखा. इसमें अविवाहित और समलैंगिक जोड़ों के बच्चे गोद लेने पर रोक है.
पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सर्वसम्मति से इनकार करते हुए कहा कि कानून में बदलाव करना संसद का काम है. पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा शामिल थे.
इनपुट भाषा से भी.
समलैंगिक विवाह अपराध नहीं, इसे लेकर हम कानून नहीं बना सकते-10 प्वाइंट्स में जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने मंगलवार को फैसला सुनाया और समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से समलैंगिक समुदाय के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कहा है। 11 मई को, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे, ने 10 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई याचिकाएं दायर की गईं थीं जिसमें कानून के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की मांग की गई थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQIA+ नागरिकों को भी मिलना चाहिए। सरकार ने याचिकाओं का विरोध किया था। बता दें कि (LGBTQIA++ का मतलब समलैंगिक, समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर, समलैंगिक, प्रश्नवाचक, इंटरसेक्स, पैनसेक्सुअल, दो-आत्मा, अलैंगिक और सहयोगी व्यक्ति हैं।)
सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला?
- सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया और कहा कि यह विधायिका का काम है, हमारा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून बनाना सरकार का काम है, हम सिर्फ इसकी व्याख्या कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने संघ का यह बयान भी दर्ज किया कि वह समलैंगिक जोड़ों को दिए जाने वाले अधिकारों और लाभों की जांच के लिए एक समिति का गठन करेगी। मंगलवार को इस मामले पर फैसला पढ़ते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ”कुछ हद तक सहमति और कुछ हद तक असहमति होती है। अदालतें कानून नहीं बना सकती हैं लेकिन उसकी व्याख्या कर सकती हैं और उसे लागू कर सकती हैं। फिर इसे लेकर विचित्रता की बात नहीं होनी चाहिए।
- सीजेआई ने कहा कि इस विषय पर अगर देखें तो समलैंगिकता कोई नया विषय नहीं है। लोगों की पसंद अलग हो सकती है, सबकी अपनी चाहत होती है। “इस बात पर ध्यान दिए बिना कि लोग गांवों से हैं या शहरों से। केवल एक अंग्रेजी बोलने वाला पुरुष ही समलैंगिक होने का दावा नहीं कर सकता। ग्रामीण इलाके में एक खेत में काम करने वाली महिला भी समलैंगिक होने का दावा कर सकती है।”
- भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “अदालत इतिहासकारों का काम नहीं ले रही है। विवाह की संस्था बदल गई है, जो सती और विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक विवाह तक की संस्था की विशेषता है। चर्चा से पता चलता है कि विवाह की संस्था स्थिर नहीं है। आज विवाह का रूप बदल गया है और यह एक अटल सत्य है और ऐसे कई बदलाव संसद से आए हैं। कई वर्ग इन परिवर्तनों के विरोध में हैं, लेकिन फिर भी, यह बदल गया है। इस प्रकार, यह एक स्थिर या अपरिवर्तनीय संस्था नहीं है।”
- सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए विवाह को मौलिक बनाना स्वीकार नहीं किया जा सकता है। विवाह उस अर्थ में मौलिक नहीं है और इसने नियमों के कारण उस प्रकृति को प्राप्त कर लिया है।” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़ा.”अगर हम विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 को असंवैधानिक मानते हैं, तो प्रगतिशील कानून का उद्देश्य खो जाएगा।” सीजेआई ने आगे कहा “ऐसे रिश्तों के लिए, ऐसे संघों को मान्यता की आवश्यकता है जिसमें बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। राज्य अप्रत्यक्ष रूप से लोगों की स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है यदि वह इसे मान्यता नहीं देता है। अधिकार पर उचित प्रतिबंध हो सकते हैं लेकिन अंतरंग संबंध के अधिकार को अप्रतिबंधित करने की आवश्यकता है। विवाह के ठोस लाभ कानून की सामग्री में पाए जा सकते हैं। एक साथी को चुनने और रिश्तों में प्रवेश करने की स्वतंत्रता और एक अंतरंग संबंध निरर्थक होगा यदि राज्य इसे मान्यता नहीं देता है तो इससे बहुत सारे लाभ हैं, अन्यथा प्रणालीगत भेदभाव होगा।”
- फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने कहा, “इस अदालत ने माना है कि एक समलैंगिक व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है और उनके मिलन में यौन रुझान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। विषमलैंगिक जोड़ों के लिए सामग्री और सेवाएं प्रदान करना और उन्हें अस्वीकार करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।” सेक्स शब्द को सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ के बिना नहीं पढ़ा जा सकता। यौन रुझान के आधार पर उनके मिलन पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन होगा।”
- “यदि कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है, तो ऐसे विवाह को मान्यता दी जाएगी क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी, ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है, एक ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है और एक ट्रांसजेंडर महिला और एक ट्रांसजेंडर पुरुष भी शादी कर सकते हैं और अगर अनुमति नहीं दी गई तो यह ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन होगा।” “विवाहित जोड़ों को अविवाहित जोड़ों से अलग किया जा सकता है।
उत्तरदाताओं ने यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई डेटा नहीं रखा है कि केवल विवाहित जोड़े ही स्थिरता प्रदान कर सकते हैं। यह ध्यान दिया गया है कि विवाहित जोड़ों से अलग होना प्रतिबंधात्मक है क्योंकि यह कानून द्वारा निर्धारित है, लेकिन अविवाहित जोड़ों के लिए, ऐसा नहीं है। घर की स्थिरता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन बनाना भी शामिल है। स्थिर घर की कोई एक परिभाषा नहीं है और हमारे संविधान का बहुलवादी रूप विभिन्न प्रकार के संघों का अधिकार देता है।
- सीजेआई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह मामले में अदालत का आदेश पढ़ते हुए कहा, “जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में जाती है। अविवाहित विषमलैंगिक जोड़े आवश्यकता को पूरा करने के लिए शादी कर सकते हैं लेकिन समलैंगिक व्यक्ति को ऐसा करने का अधिकार नहीं है और यह बहिष्कार केवल भेदभाव को मजबूत करता है और इस प्रकार, CARA परिपत्र अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने समलैंगिक समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली हिंसा और भेदभाव को प्रस्तुत किया है।
- राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश – संघ, राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने के लिए पुनर्निर्देशित किया गया है कि समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव न हो, वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति में कोई भेदभाव न हो, किसी भी प्रकार के उत्पीड़न को रोकने के लिए जनता को जागरूक किया जाए, सभी में एक सुरक्षित घर स्थापित किया जाए। क्षेत्रों में, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसी प्रक्रियाओं के प्रभाव को समझने की उम्र नहीं होने पर लिंग परिवर्तन ऑपरेशन की अनुमति नहीं है, किसी भी व्यक्ति को समलैंगिक व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने में सक्षम होने के लिए पूर्व शर्त के रूप में हार्मोनल थेरेपी से नहीं गुजरना होगा।
- पुलिस को निर्देश – पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि लिंग पहचान सुनिश्चित करने के लिए किसी भी समलैंगिक व्यक्ति को परेशान न किया जाए, और पुलिस द्वारा अपने मूल परिवारों में वापस जाने के लिए कोई दबाव न डाला जाए। समलैंगिक जोड़े द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद सत्यापन के बाद उचित सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति एसके कौल ने कहा, “गैर-विषमलैंगिक संघ भारत के संविधान के तहत सुरक्षा के हकदार हैं। गैर-विषमलैंगिक और विषमलैंगिक विवाह को एक ही सिक्के के दो पहलू माना जाना चाहिए। यह क्षण ऐतिहासिक समाधान का अवसर है।” अन्याय और भेदभाव और इस प्रकार ऐसे संघों या विवाहों को अधिकार देने के लिए शासन की आवश्यकता है।”
- “एक भेदभाव-विरोधी कानून की आवश्यकता है और किसी भी भेदभाव के लिए, अदालत केवल एक प्रकार के भेदभाव को नहीं देख सकती है। समान-लिंग संघों की कानूनी मान्यता विवाह समानता की दिशा में एक कदम है। हालांकि, विवाह अंत नहीं है। आइए हम स्वायत्तता को तब तक सुरक्षित रखें जब तक यह दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण न करे। समलैंगिक विवाह पर अपनी राय पढ़ते हुए, न्यायमूर्ति रवींद्र भार कहते हैं, “विवाह करने का कोई अयोग्य अधिकार नहीं हो सकता है, जिसे मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए। हम इस पर सीजेआई से सहमत हैं। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है जीवन साथी पाना एक विकल्प है। सहवास का अधिकार किसी संस्था की स्थापना का कारण नहीं बन सकता। किसी सामाजिक संस्था का आदेश देने या मौजूदा सामाजिक संरचनाओं को फिर से व्यवस्थित करने के लिए एक नए कोड के निर्माण की आवश्यकता होगी और गुजारा भत्ता आदि से संबंधित विवाह कानूनों की भी आवश्यकता होगी।”