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<p style="text-align: justify;">कर्नाटक में कावेरी जल विवाद ने एक बार फिर से तूल पकड़ लिया है. तमिलनाडु को पानी छोड़े जाने पर सिद्धारमैया सरकार के खिलाफ कन्नड़ कार्यकर्ताओं ने हल्ला बोल दिया है. शुक्रवार को कर्नाटक बंद के व्यापक असर के बाद सिद्धारमैया सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कही है.</p>
<p style="text-align: justify;">सिद्धारमैया का कहना है कि कावेरी प्राधिकरण के आदेश को हम सुप्रीम कोर्ट को फिर से देखने के लिए कहेंगे. हम इस मामले में विद्धान लोगों की राय ले रहे हैं. प्राधिकरण ने पानी छोड़ने को लेकर जो आदेश सुनाया है, उसमें हमारी बातों को नहीं सुना गया.</p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक सरकार का कहना है कि हमारे पास पहले से ही पानी की भारी कमी है और ऐसे में कावेरी जल प्रबंधन ने तमिलनाडु को जरूरत से ज्यादा पानी देने का आदेश कैसे दे दिया? इधर, बीजेपी और जेडीएस का कहना है इंडिया गठबंधन बचाने के लिए कन्नड़ लोगों के हक की सरकार ने कुर्बानी दी है.</p>
<p style="text-align: justify;">तमिलनाडु में डीएमके की सरकार है, जो इंडिया गठबंधन का हिस्सा है. कावेरी जल विवाद 140 साल पुराना है. 1990 में विवाद को शांत करने के लिए कावेरी जल प्राधिकरण बनाया गया था. हालांकि, विवाद को पूरी तरह सुलझाने में यह भी असफल रहा. </p>
<p style="text-align: justify;"><em>ऐसे में आइए इस स्टोरी में कावेरी विवाद क्यों अब तक उलझा है, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं. </em></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कहानी दक्षिण के गंगा कावेरी नदी की</strong><br />पश्चिम घाट के पर्वत ब्रह्मगिरी से निकलनी वाली कावेरी नदी वर्तमान में 4 राज्यों (कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी) से होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है. <br />नदी की लंबाई करीब 760 किलोमीटर है. कर्नाटक में सिमसा, हेमावती और भवानी जैसी छोटी-छोटी नदियां इसमें मिलती हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">पवित्रता की वजह से कावेरी को दक्षिण का गंगा भी कहा जाता है. स्कंद पुराण में भी कावेरी नदी का जिक्र है. तमिलनाडु के द्रविड़ साहित्यों में भी कावेरी नदी के बारे में बताया गया है. हिंदू धर्म मान्यता के मुताबिक भारत के 7 सबसे पवित्र नदियों में कावेरी भी शामिल हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कावेरी जल को लेकर हालिया विवाद क्या है?</strong><br />तमिलनाडु ने कर्नाटक से हाल ही में प्रत्येक दिन 24 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग की. कर्नाटक ने इस मांग को ठुकरा दिया, जिसके बाद तमिलनाडु ने कावेरी जल प्रबंधन के प्राधिकरण में अपील दाखिल कर दिया. सुनवाई के बाद प्रबंधन ने कर्नाटक से कहा कि 15 दिनों तक प्रत्येक दिन 5 हजार क्यूसेक पानी तमिलनाडु को दें.</p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक सरकार इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, लेकिन 21 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सुनने से इनकार कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने तमिलनाडु की वो दलीलें भी नहीं मानी, जिसमें कहा गया था कि प्रतिदिन 7200 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया जाए.</p>
<p style="text-align: justify;">बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से दलीलें नहीं रखी, जिसके कारण यह फैसला हुआ. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि सरकार ने तमिलनाडु के लिए कावेरी के जल भी छोड़े हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक के स्थानीय अखबार प्रजावाणी के मुताबिक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने गन्ना किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल से कहा कि अगर हम पानी नहीं छोड़ेंगे, तो सभी जलाशयों को केंद्र सरकार जब्त कर लेगी. सिद्धारमैया ने यह भी कहा कि पानी न छोड़ने पर सुप्रीम कोर्ट अवमानना के मामले में सरकार को भी बर्खास्त कर सकती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>विवाद की जड़ कर्नाटक में बना डैम?</strong><br />19वीं शताब्दी में मैसूर प्रांत ने कावेरी पर बांध बनाकर पानी को रोकने की योजना बनाई, जिसका मद्रास प्रेसीडेंसी ने विरोध किया. 1892 में दोनों प्रांतों के बीच पहली बार समझौता हुआ. इसके बाद 1924 में एक और समझौता हुआ.</p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि, लगातार कावेरी पर बांध बनाकर कर्नाटक ने पानी पर पूरी तरह कंट्रोल कर लिया. कर्नाटक में कावेरी और उसके उपनदियों पर कम से कम अभी 4 बांध का निर्माण किया गया है. इसमें कृष्णा सागर डैम प्रमुख हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने बांध और जलाशय की मदद से सभी पानी को खुद के लिए इकट्ठा कर लिया है. मानसून के बाद इन पानी को तमिलनाडु और अन्य राज्यों के लिए नहीं छोड़ा जाता है, जिससे तमिलनाडु के लोगों के लिए कृषि का काम दुर्भर हो जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;">1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी विवाद सुलझाने के लिए कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड का गठन किया. 2018 के अधिसूचना के मुताबिक प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, 2 पूर्णकालिक सदस्य, 2 अंशकालिक सदस्य, एक पूर्णकालिक सचिव और चारों राज्यों के पक्ष रखने के लिए एक-एक सदस्य इसमें शामिल होंगे.</p>
<p style="text-align: justify;">सितंबर 2021 में सौमित्र कुमार हलधर को इस बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. बोर्ड पानी की स्थिति को देखकर ही अपना फैसला सुनाता है, जिसका पालन करना राज्यों के लिए अनिवार्य है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कावेरी जल बंटवारे का फॉर्मूला क्या है?</strong><br />1991 से लेकर 2007 तक जल बंटवारे को लेकर कोई फार्मूला नहीं निकल पाया. जल बंटवारे को लेकर कई बार तमिलनाडु और कर्नाटक में हिंसक घटनाएं हुई. आखिर में 2007 में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने जल बंटवारे का एक फार्मूला निकाला.</p>
<p style="text-align: justify;">इसके मुताबिक सामान्य वर्ष में कावेरी के 740 टीएमसीएफटी में से तमिलनाडु को 404.25 टीएमसीएफटी, कर्नाटक के 284.75 एमसीएफटी, केरल को 30 टीएमसीएफटी और पुडुचेरी को 7 टीएमसीएफटी पानी मिलेगा.</p>
<p style="text-align: justify;">बोर्ड ने यह भी कहा कि अगर किसी साल पानी की किल्लत अधिक होगी, तो सभी राज्यों से आनुपातिक कटौती की जाएगी. हालांकि, उस वक्त कर्नाटक ने इस फॉर्मूले को नहीं माना और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी.</p>
<p style="text-align: justify;">2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट प्राधिकरण के फॉर्मूले में आंशिक संशोधन करते हुए इसे लागू करने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने चारों राज्यों में आदेश को लागू करने की जिम्मेदारी के लिए सीडब्ल्यूएमए और कावेरी रेग्युलेटरी कमेटी बनाने का भी निर्देश दिया था. </p>
<p style="text-align: justify;">इसके बाद से ही हर साल मानसून जाने के बाद प्राधिकरण जल बंटवारे का काम करती है. कावेरी विवाद में यह भी कहा गया है कि किसी राज्य की कोई संस्था अगर जल का उपयोग करती है, तो उसकी गिनती राज्य के कोटे में ही की जाएगी. </p>
<p style="text-align: justify;">वहीं बंटवारे के लिए प्राधिकरण का खर्च भी चारों राज्यों को ही वहन करना है. खर्च का 15 प्रतिशत केरल, 40-40 प्रतिशत कर्नाटक-तमिलनाडु और 5 प्रतिशत हिस्सा पुडुचेरी को देना है. केंद्र इसकी मॉनिटरिंग बॉडी है.</p>
<p style="text-align: justify;">कावेरी जल प्राधिकरण के फॉर्मूले में यह भी कहा गया है कि अगर कोई राज्य किसी महीने में जल नहीं लेना चाहता है, तो वह अपीलीय अधिकारी से बात कर उसी साल किसी दूसरे महीने में अपने हिस्से का जल ले सकता है.</p>
<p style="text-align: justify;">फॉर्मूले में 1 जून से 31 मई को जल वर्ष माना गया है. जानकारों का कहना है कि कावेरी का विवाद इसी वजह से जून के बाद ही शुरू होता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्यों नहीं सुलझ रहा है कावेरी का विवाद?</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>1. कर्नाटक में भी पानी की किल्लत-</strong> कावेरी जल बंटवारे फॉर्मूले में तमिलनाडु को ज्यादा पानी दिया गया है, जबकि कर्नाटक को कम. कर्नाटक के लोगों का कहना है कि नदी हमारे यहां से निकलती है, इसलिए हमें पानी ज्यादा मिले. </p>
<p style="text-align: justify;">इस साल विवाद अगस्त के बाद शुरू हुआ. कर्नाटक और तमिलनाडु में मानसूनी बारिश औसतन कम हुई, जिससे पानी की किल्लत हो गई. प्रजावाणी के मुताबिक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि कर्नाटक को 106 टीएमसी पानी की जरूरत है, जिसमें सिंचाई के लिए 70, पेयजल के लिए 30, उद्योग के लिए 3 टीएमसी शामिल हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">सिद्धारमैया के मुताबिक कर्नाटक के पास अभी सिर्फ 50 टीएमसी पानी है. अगर हम तमिलनाडु को इसमें से दे देंगे, तो कर्नाटक में हाहाकार मच जाएगा. इसी बीच जग्गी वासुदेव ने भी एक पोस्ट किया है. वासुदेव ने कहा है कि कावेरी इसलिए दुखी है कि उसके पास पानी नहीं है, इसलिए दोनों राज्य इस पर न लड़ें.</p>
<p style="text-align: justify;">डेक्केन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक अनियमित बारिश होने की वजह से इस बार खरीफ की बुआई पर असर पड़ा है. सरकारी लक्ष्य इस बार 88 लाख हेक्टेयर जमीन में बुआई करना था, जो पूरा नहीं हो सका. कर्नाटक में इस साल सिर्फ 66 लाख हेक्टेयर में ही बुआई का काम हुआ है. यह पिछले साल से 7 लाख हेक्टेयर कम है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>2. कर्नाटक और तमिलनाडु की सियासत भी वजह-</strong> कावेरी विवाद के पूरी तरह नहीं सुलझने की बड़ी वजह कर्नाटक की सियासत भी है. शुरू में कर्नाटक सरकार तमिलनाडु को पानी देने को राजी हो गई थी, लेकिन विपक्ष ने जैसे ही इसे मुद्दा बनाया, सरकार ने अपने कदम वापस खिंच लिए.</p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक विवाद पर सबसे ज्यादा जेडीएस विरोध में है. हाल ही में जेडीएस ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है. कर्नाटक की राजनीति में जेडीएस तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत है. बीजेपी के साथ मिल जाने से कांग्रेस वोट प्रतिशत के मामले में पीछे हो गई है.</p>
<p style="text-align: justify;">कावेरी नदी कर्नाटक में लोकसभा की कुल 11 सीटों को प्रभावित करती है, जिसमें हासन और मंड्या और चामराजनगर सीट भी शामिल हैं. कावेरी विवाद में बीजेपी ने सबसे पहले मंड्या से ही विरोध का बिगुल फूंका था. </p>
<p style="text-align: justify;">पिछले चुनाव में इन 11 में से 1 सीट पर जेडीएस और 10 पर बीजेपी को जीत मिली थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सारे समीकरण को ध्वस्त कर दिया. वहीं कावेरी नदी का कनेक्शन तमिलनाडु के 18 लोकसभा क्षेत्रों से है. पिछले चुनाव में यहां यूपीए ने क्लीन स्विप किया था. </p>
<p style="text-align: justify;">कावेरी केरल के 3 और पुडुचेरी के 1 लोकसभा सीटों को भी प्रभावित करती है. वरिष्ठ पत्रकार गार्गी परसाई डेक्केन हेराल्ड के ओपिनियन में लिखती हैं- बीजेपी के लिए भी यह मसला काफी संवेदनशील है.</p>
<p style="text-align: justify;">परसाई के मुताबिक तमिलनाडु बीजेपी के नेता कर्नाटक से पानी लेने के लिए विरोध कर रहे हैं, तो कर्नाटक बीजेपी के नेता तमिलनाडु को पानी देने का विरोध कर रहे हैं. दोनों ही राज्यों में बीजेपी विपक्ष में है.</p>
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Karnataka Bandh
कावेरी नदी का पानी तमिलनाडु को दिए जाने को लेकर कर्नाटक बंद आज, पढ़ें सभी अपडेट्स
Cauvery Water Dispute Live: कन्नड़ समर्थक और किसान संगठनों के कावेरी नदी का पानी तमिलनाडु को दिए जाने के विरोध में शुक्रवार (29 सितंबर 2023) को ‘कर्नाटक बंद’ का ऐलान किया है. जिसके मद्देनजर राज्य में, खासतौर से दक्षिणी हिस्से में सामान्य जनजीवन बाधित रहने की आशंका है.
कर्नाटक रक्षण वेदिके, कन्नड़ चलवली (वटल पक्ष) समेत कन्नड़ संगठनों और विभिन्न किसान संगठनों के शीर्ष संगठन ‘कन्नड़ ओक्कुटा’ ने पूरे राज्य में सुबह से शाम तक बंद का आह्वान किया है. बंद के आयोजकों ने बताया कि शहर में टाउन हॉल से फ्रीडम पार्क तक व्यापक जुलूस निकाला जाएगा जिसमें सभी वर्ग के लोगों के भाग लेने की संभावना है.
उन्होंने कहा कि पूरे कर्नाटक में बंद का आह्वान किया गया है और वे राजमार्ग, टोल, रेल सेवाएं और हवाई अड्डे भी बंद कराने की कोशिश करेंगे. विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (सेक्यूलर) ने भी बंद को अपना समर्थन दिया है. साथ ही होटलों, ऑटोरिक्शा और कार चालकों के संघों ने भी बंद का समर्थन किया है.
कर्नाटक प्रदेश निजी स्कूल संघ के एक पदाधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि वे बंद को ‘‘नैतिक समर्थन’’ दे रहे हैं. इस बीच, राज्य के परिवहन विभाग ने सरकारी परिवहन निगमों को अपनी सेवाएं जारी रखने का निर्देश दिया है. कुछ कार्यकर्ताओं ने कावेरी का पानी तमिलनाडु को दिए जाने के खिलाफ कावेरी बेसिन वाले जिले मांड्या में बृहस्पतिवार को प्रदर्शन किया. वे पिछले 15 दिन से प्रदर्शन कर रहे हैं.
बीजेपी के राज्यसभा सदस्य लहर सिंह सिरोया ने बृहस्पतिवार को कहा कि उन्होंने चेन्नई में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से मिलकर बेंगलुरु में बढ़ते जल संकट की जानकारी देने के लिए 48 घंटे तक इंतजार किया लेकिन उनकी मुलाकात नहीं हो सकी. कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के जल को लेकर चल रहे विवाद के बीच सिरोया ने कहा कि वह सद्भावना मिशन के तहत चेन्नई गए थे, न कि राजनीतिक उद्देश्य से लेकिन उनकी स्टालिन से मुलाकात नहीं हो सकी.
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने तमिलनाडु के प्रति नरम रुख अपनाया और वह मामले पर उचित तरीके से ध्यान नहीं दे रही है.
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कावेरी पानी विवाद पर कर्नाटक में आज बंद का आह्वान, जानें क्या खुलेगा, क्या रहेगा क्लोज
Karnataka Bandh Over Cauvery Water Dispute: तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़े जाने के विरोध में कन्नड़ समर्थकों और किसान संगठनों ने शुक्रवार (29 सितंबर) के लिए कर्नाटक बंद का आह्वान किया है. इससे खासकर राज्य के दक्षिणी हिस्से में सामान्य जनजीवन प्रभावित हो सकता है. बेंगलुरु में यह दूसरी हड़ताल होगी क्योंकि मंगलवार (26 सितंबर) को शहर बंद था.
कर्नाटक रक्षणा वेदिके, कन्नड़ चालुवली (वटल पक्ष) और विभिन्न किसान संगठनों समेत प्रमुख संगठन ‘कन्नड़ ओक्कुटा’ ने सुबह से शाम तक राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया है. हालांकि, बेंगलुरु पुलिस ने शहर में किसी भी तरह के बंद की अनुमति नहीं दी है और बड़ी सभाओं पर प्रतिबंध के साथ ही धारा 144 लागू होने की भी संभावना है.
कर्नाटक बंद को लेकर पुलिस ने क्या कहा?
बेंगलुरु पुलिस ने कहा कि 29 सितंबर को कर्नाटक में कई संगठन तमिलनाडु को कावेरी जल छोड़े जाने के विरोध में राज्यव्यापी बंद के लिए एकजुट हो रहे हैं. पुलिस कमिश्नर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जोर देते हैं कि सभी प्रकार के बंद वर्जित हैं. विरोध प्रदर्शनों और रैलियों के लिए एकमात्र स्वीकृत स्थान फ्रीडम पार्क है. कोई भी संगठन अपना समर्थन स्वयं दे सकता है, बलपूर्वक नहीं. अगर संपत्ति को कोई नुकसान होता है तो संबंधित विरोध करने वाले संगठन को लागत के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा.
आयोजकों ने ये कहा
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, आयोजकों ने कहा कि शहर में टाउन हॉल से फ्रीडम पार्क तक एक विशाल प्रदर्शन जुलूस निकाला जाएगा, जिसमें सभी जगह के लोगों के भाग लेने की संभावना है. उन्होंने कहा कि बंद पूरे कर्नाटक के लिए है और राजमार्गों, टोल गेटों, रेल सेवाओं और हवाई अड्डों को भी बंद करने की कोशिश की जाएगी. राज्य में विपक्षी दल बीजेपी और जेडीएस के साथ-साथ होटल, ऑटोरिक्शा और राइडर्स एसोसिएशन ने भी बंद को समर्थन दिया है.
OUDOA और कर्नाटक स्टेट प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन का बंद को समर्थन
ऑटोरिक्शा ड्राइवर्स यूनियन और ओला उबर ड्राइवर्स एंड ओनर्स एसोसिएशन (OUDOA) की ओर से बंद का समर्थन किया जा रहा है. ओला उबर ड्राइवर्स एंड ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष तनवीर पाशा ने कहा कि नयनदहल्ली से फ्रीडम पार्क तक एक रैली निकाली जाएगी.
कर्नाटक स्टेट प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने कहा कि उनकी संस्था बंद को नैतिक समर्थन दे रही है. पदाधिकारी ने कहा कि उन्होंने अपने एसोसिएशन के सदस्यों से कहा है कि वे बंद को लेकर अपने विवेक का इस्तेमाल करें. छात्रों को सूचित कर दिया गया है कि स्कूल बंद रहने की संभावना है.
बृहत बेंगलुरु होटल एसोसिएशन बंद को अपना नैतिक समर्थन दिया है. इस बीच स्टेट ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने राज्य परिवहन निगमों को अपनी सेवाएं हमेशा की तरह जारी रखने के निर्देश जारी किए हैं.
शॉपिंग मॉल और मूवी थिएटर रहेंगे बंद
राज्य के सभी शॉपिंग मॉल और मूवी थिएटर बंद रहेंगे. उन्होंने पहले ही कर्नाटक बंद को अपना समर्थन दे दिया है. सभी सार्वजनिक और निजी बैंक अपने समय में ही बिना किसी बदलाव के खुलेंगी. वहीं, सभी आपातकालीन सेवा से संबंधित वाहन जैसे एंबुलेंस, फार्मा वाहन और अन्य महत्वपूर्ण सामान ले जाने वाले वाहन काम करते रहेंगे. अस्पताल और मेडिकल स्टोर भी सामान्य रूप से खुलेंगे.
उत्तरी कर्नाटक में बंद को समर्थन लेकिन व्यवसाय रहेंगे चालू
कर्नाटक के उत्तरी भाग जैसे बेल्लारी, कलबुर्गी, बीदर, बागलकोट, विजयपुरा, यादगीर, हुबली-धारवाड़, गडग, हावेरी, कोप्पल और दावणगेरे में किसानों और व्यापारियों ने बंद को अपना नैतिक समर्थन दिया है लेकिन कहा है कि वे अपने व्यवसायों बंद नहीं रखेंगे.
इस बीच गुरुवार को कुछ कार्यकर्ताओं ने तमिलनाडु को कावेरी जल छोड़े जाने के खिलाफ मांड्या में विरोध प्रदर्शन किया. वे पिछले 15 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार तमिलनाडु के प्रति उदार रही है और मामले से ठीक से नहीं निपट रही है.
https://www.indiatv.in/india/national/29 सितंबर को पूरा कर्नाटक तो कल किया जाएगा बेंगलुरु बंद, जानिए क्या है वजह
बेंगलुरु: कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कई वर्षों से चला आ रहा कावेरी नदी जल विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। इस विवाद की वजह से दोनों राज्यों की आम जनता को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पिछले दिनों कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक सरकार को आदेश दिया था कि वह अगले 15 दिनों तक तमिलनाडु को 5 हजार क्यूसेक पानी छोड़े। इसके बाद कर्नाटक सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन वहां भी उन्हें सफलता नहीं मिली। कोर्ट के आदेश के बाद राज्यभर में प्रदर्शन शुरू हो गए।
अब इसी बीच कन्नडा ओकुट्टा ने शुक्रवार को कर्नाटक बंद का आह्वान किया है। हालांकि इससे पहले एक अन्य संगठन ने मंगलवार 26 सितंबर को देश के आईटी हब बेंगलुरु में बंद का आह्वान किया था। इस बंद को शहर के कई संगठनों ने अपना समर्थन दिया था। लेकिन जब ओकुटा ने शुक्रवार को राज्य बंद का ऐलान किया तो तमाम एसोसिएशनों मंगलवार को बेंगलुरु बंद से अपना समर्थन वापस ले लिया।
कन्नडा ओकुट्टा कन्नड़ अधिकारों की लड़ाई के लिए जाना जाता है
बता दें कि कन्नडा ओकुट्टा कन्नड़ अधिकारों की लड़ाई के लिए जाना जाता है। इसमें प्रदेशभर के लगभग 90 संगठन आते हैं। यह बेहद ही बड़ा और प्रभावशाली गुट माना जाता है। इस बंद को लेकर आज एक बैठक हुई, जिसमें वटल नागराज के द्वारा 29 सितंबर को टाउन हॉल से फ्रीडम पार्क तक विरोध मार्च की घोषणा की। इसके साथ ही उन्होंने राज्य भर में शुक्रवार को बुलाए गए बंद के लिए ट्रांसपोर्ट यूनियनों, फिल्म चैंबर, मॉल मालिकों और स्कूल और कॉलेज यूनियनों से भी समर्थन मांगा है। वहीं इसी बीच बंद को लेकर असमंजस की स्थिति के चलते ओला, उबर ड्राइवर्स एंड ओनर्स एसोसिएशन ने मंगलवार को बुलाए गए बंद को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया है। ऐसे में मंगलवार को प्रस्तावित बेंगलुरू बंद का असर मिला जुला रहने वाला है।
https://www.youtube.com/watch?v=bV-HLtNSs70