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<p style="text-align: justify;">कर्नाटक में कावेरी जल विवाद ने एक बार फिर से तूल पकड़ लिया है. तमिलनाडु को पानी छोड़े जाने पर सिद्धारमैया सरकार के खिलाफ कन्नड़ कार्यकर्ताओं ने हल्ला बोल दिया है. शुक्रवार को कर्नाटक बंद के व्यापक असर के बाद सिद्धारमैया सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कही है.</p>
<p style="text-align: justify;">सिद्धारमैया का कहना है कि कावेरी प्राधिकरण के आदेश को हम सुप्रीम कोर्ट को फिर से देखने के लिए कहेंगे. हम इस मामले में विद्धान लोगों की राय ले रहे हैं. प्राधिकरण ने पानी छोड़ने को लेकर जो आदेश सुनाया है, उसमें हमारी बातों को नहीं सुना गया.</p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक सरकार का कहना है कि हमारे पास पहले से ही पानी की भारी कमी है और ऐसे में कावेरी जल प्रबंधन ने तमिलनाडु को जरूरत से ज्यादा पानी देने का आदेश कैसे दे दिया? इधर, बीजेपी और जेडीएस का कहना है इंडिया गठबंधन बचाने के लिए कन्नड़ लोगों के हक की सरकार ने कुर्बानी दी है.</p>
<p style="text-align: justify;">तमिलनाडु में डीएमके की सरकार है, जो इंडिया गठबंधन का हिस्सा है. कावेरी जल विवाद 140 साल पुराना है. 1990 में विवाद को शांत करने के लिए कावेरी जल प्राधिकरण बनाया गया था. हालांकि, विवाद को पूरी तरह सुलझाने में यह भी असफल रहा. </p>
<p style="text-align: justify;"><em>ऐसे में आइए इस स्टोरी में कावेरी विवाद क्यों अब तक उलझा है, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं. </em></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कहानी दक्षिण के गंगा कावेरी नदी की</strong><br />पश्चिम घाट के पर्वत ब्रह्मगिरी से निकलनी वाली कावेरी नदी वर्तमान में 4 राज्यों (कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी) से होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है. <br />नदी की लंबाई करीब 760 किलोमीटर है. कर्नाटक में सिमसा, हेमावती और भवानी जैसी छोटी-छोटी नदियां इसमें मिलती हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">पवित्रता की वजह से कावेरी को दक्षिण का गंगा भी कहा जाता है. स्कंद पुराण में भी कावेरी नदी का जिक्र है. तमिलनाडु के द्रविड़ साहित्यों में भी कावेरी नदी के बारे में बताया गया है. हिंदू धर्म मान्यता के मुताबिक भारत के 7 सबसे पवित्र नदियों में कावेरी भी शामिल हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कावेरी जल को लेकर हालिया विवाद क्या है?</strong><br />तमिलनाडु ने कर्नाटक से हाल ही में प्रत्येक दिन 24 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग की. कर्नाटक ने इस मांग को ठुकरा दिया, जिसके बाद तमिलनाडु ने कावेरी जल प्रबंधन के प्राधिकरण में अपील दाखिल कर दिया. सुनवाई के बाद प्रबंधन ने कर्नाटक से कहा कि 15 दिनों तक प्रत्येक दिन 5 हजार क्यूसेक पानी तमिलनाडु को दें.</p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक सरकार इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, लेकिन 21 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सुनने से इनकार कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने तमिलनाडु की वो दलीलें भी नहीं मानी, जिसमें कहा गया था कि प्रतिदिन 7200 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया जाए.</p>
<p style="text-align: justify;">बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से दलीलें नहीं रखी, जिसके कारण यह फैसला हुआ. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि सरकार ने तमिलनाडु के लिए कावेरी के जल भी छोड़े हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक के स्थानीय अखबार प्रजावाणी के मुताबिक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने गन्ना किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल से कहा कि अगर हम पानी नहीं छोड़ेंगे, तो सभी जलाशयों को केंद्र सरकार जब्त कर लेगी. सिद्धारमैया ने यह भी कहा कि पानी न छोड़ने पर सुप्रीम कोर्ट अवमानना के मामले में सरकार को भी बर्खास्त कर सकती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>विवाद की जड़ कर्नाटक में बना डैम?</strong><br />19वीं शताब्दी में मैसूर प्रांत ने कावेरी पर बांध बनाकर पानी को रोकने की योजना बनाई, जिसका मद्रास प्रेसीडेंसी ने विरोध किया. 1892 में दोनों प्रांतों के बीच पहली बार समझौता हुआ. इसके बाद 1924 में एक और समझौता हुआ.</p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि, लगातार कावेरी पर बांध बनाकर कर्नाटक ने पानी पर पूरी तरह कंट्रोल कर लिया. कर्नाटक में कावेरी और उसके उपनदियों पर कम से कम अभी 4 बांध का निर्माण किया गया है. इसमें कृष्णा सागर डैम प्रमुख हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने बांध और जलाशय की मदद से सभी पानी को खुद के लिए इकट्ठा कर लिया है. मानसून के बाद इन पानी को तमिलनाडु और अन्य राज्यों के लिए नहीं छोड़ा जाता है, जिससे तमिलनाडु के लोगों के लिए कृषि का काम दुर्भर हो जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;">1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी विवाद सुलझाने के लिए कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड का गठन किया. 2018 के अधिसूचना के मुताबिक प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, 2 पूर्णकालिक सदस्य, 2 अंशकालिक सदस्य, एक पूर्णकालिक सचिव और चारों राज्यों के पक्ष रखने के लिए एक-एक सदस्य इसमें शामिल होंगे.</p>
<p style="text-align: justify;">सितंबर 2021 में सौमित्र कुमार हलधर को इस बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. बोर्ड पानी की स्थिति को देखकर ही अपना फैसला सुनाता है, जिसका पालन करना राज्यों के लिए अनिवार्य है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कावेरी जल बंटवारे का फॉर्मूला क्या है?</strong><br />1991 से लेकर 2007 तक जल बंटवारे को लेकर कोई फार्मूला नहीं निकल पाया. जल बंटवारे को लेकर कई बार तमिलनाडु और कर्नाटक में हिंसक घटनाएं हुई. आखिर में 2007 में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने जल बंटवारे का एक फार्मूला निकाला.</p>
<p style="text-align: justify;">इसके मुताबिक सामान्य वर्ष में कावेरी के 740 टीएमसीएफटी में से तमिलनाडु को 404.25 टीएमसीएफटी, कर्नाटक के 284.75 एमसीएफटी, केरल को 30 टीएमसीएफटी और पुडुचेरी को 7 टीएमसीएफटी पानी मिलेगा.</p>
<p style="text-align: justify;">बोर्ड ने यह भी कहा कि अगर किसी साल पानी की किल्लत अधिक होगी, तो सभी राज्यों से आनुपातिक कटौती की जाएगी. हालांकि, उस वक्त कर्नाटक ने इस फॉर्मूले को नहीं माना और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी.</p>
<p style="text-align: justify;">2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट प्राधिकरण के फॉर्मूले में आंशिक संशोधन करते हुए इसे लागू करने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने चारों राज्यों में आदेश को लागू करने की जिम्मेदारी के लिए सीडब्ल्यूएमए और कावेरी रेग्युलेटरी कमेटी बनाने का भी निर्देश दिया था. </p>
<p style="text-align: justify;">इसके बाद से ही हर साल मानसून जाने के बाद प्राधिकरण जल बंटवारे का काम करती है. कावेरी विवाद में यह भी कहा गया है कि किसी राज्य की कोई संस्था अगर जल का उपयोग करती है, तो उसकी गिनती राज्य के कोटे में ही की जाएगी. </p>
<p style="text-align: justify;">वहीं बंटवारे के लिए प्राधिकरण का खर्च भी चारों राज्यों को ही वहन करना है. खर्च का 15 प्रतिशत केरल, 40-40 प्रतिशत कर्नाटक-तमिलनाडु और 5 प्रतिशत हिस्सा पुडुचेरी को देना है. केंद्र इसकी मॉनिटरिंग बॉडी है.</p>
<p style="text-align: justify;">कावेरी जल प्राधिकरण के फॉर्मूले में यह भी कहा गया है कि अगर कोई राज्य किसी महीने में जल नहीं लेना चाहता है, तो वह अपीलीय अधिकारी से बात कर उसी साल किसी दूसरे महीने में अपने हिस्से का जल ले सकता है.</p>
<p style="text-align: justify;">फॉर्मूले में 1 जून से 31 मई को जल वर्ष माना गया है. जानकारों का कहना है कि कावेरी का विवाद इसी वजह से जून के बाद ही शुरू होता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्यों नहीं सुलझ रहा है कावेरी का विवाद?</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>1. कर्नाटक में भी पानी की किल्लत-</strong> कावेरी जल बंटवारे फॉर्मूले में तमिलनाडु को ज्यादा पानी दिया गया है, जबकि कर्नाटक को कम. कर्नाटक के लोगों का कहना है कि नदी हमारे यहां से निकलती है, इसलिए हमें पानी ज्यादा मिले. </p>
<p style="text-align: justify;">इस साल विवाद अगस्त के बाद शुरू हुआ. कर्नाटक और तमिलनाडु में मानसूनी बारिश औसतन कम हुई, जिससे पानी की किल्लत हो गई. प्रजावाणी के मुताबिक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि कर्नाटक को 106 टीएमसी पानी की जरूरत है, जिसमें सिंचाई के लिए 70, पेयजल के लिए 30, उद्योग के लिए 3 टीएमसी शामिल हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">सिद्धारमैया के मुताबिक कर्नाटक के पास अभी सिर्फ 50 टीएमसी पानी है. अगर हम तमिलनाडु को इसमें से दे देंगे, तो कर्नाटक में हाहाकार मच जाएगा. इसी बीच जग्गी वासुदेव ने भी एक पोस्ट किया है. वासुदेव ने कहा है कि कावेरी इसलिए दुखी है कि उसके पास पानी नहीं है, इसलिए दोनों राज्य इस पर न लड़ें.</p>
<p style="text-align: justify;">डेक्केन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक अनियमित बारिश होने की वजह से इस बार खरीफ की बुआई पर असर पड़ा है. सरकारी लक्ष्य इस बार 88 लाख हेक्टेयर जमीन में बुआई करना था, जो पूरा नहीं हो सका. कर्नाटक में इस साल सिर्फ 66 लाख हेक्टेयर में ही बुआई का काम हुआ है. यह पिछले साल से 7 लाख हेक्टेयर कम है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>2. कर्नाटक और तमिलनाडु की सियासत भी वजह-</strong> कावेरी विवाद के पूरी तरह नहीं सुलझने की बड़ी वजह कर्नाटक की सियासत भी है. शुरू में कर्नाटक सरकार तमिलनाडु को पानी देने को राजी हो गई थी, लेकिन विपक्ष ने जैसे ही इसे मुद्दा बनाया, सरकार ने अपने कदम वापस खिंच लिए.</p>
<p style="text-align: justify;">कर्नाटक विवाद पर सबसे ज्यादा जेडीएस विरोध में है. हाल ही में जेडीएस ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है. कर्नाटक की राजनीति में जेडीएस तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत है. बीजेपी के साथ मिल जाने से कांग्रेस वोट प्रतिशत के मामले में पीछे हो गई है.</p>
<p style="text-align: justify;">कावेरी नदी कर्नाटक में लोकसभा की कुल 11 सीटों को प्रभावित करती है, जिसमें हासन और मंड्या और चामराजनगर सीट भी शामिल हैं. कावेरी विवाद में बीजेपी ने सबसे पहले मंड्या से ही विरोध का बिगुल फूंका था. </p>
<p style="text-align: justify;">पिछले चुनाव में इन 11 में से 1 सीट पर जेडीएस और 10 पर बीजेपी को जीत मिली थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सारे समीकरण को ध्वस्त कर दिया. वहीं कावेरी नदी का कनेक्शन तमिलनाडु के 18 लोकसभा क्षेत्रों से है. पिछले चुनाव में यहां यूपीए ने क्लीन स्विप किया था. </p>
<p style="text-align: justify;">कावेरी केरल के 3 और पुडुचेरी के 1 लोकसभा सीटों को भी प्रभावित करती है. वरिष्ठ पत्रकार गार्गी परसाई डेक्केन हेराल्ड के ओपिनियन में लिखती हैं- बीजेपी के लिए भी यह मसला काफी संवेदनशील है.</p>
<p style="text-align: justify;">परसाई के मुताबिक तमिलनाडु बीजेपी के नेता कर्नाटक से पानी लेने के लिए विरोध कर रहे हैं, तो कर्नाटक बीजेपी के नेता तमिलनाडु को पानी देने का विरोध कर रहे हैं. दोनों ही राज्यों में बीजेपी विपक्ष में है.</p>
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