अगर कोई पुरुष अपने परिवार के सहमत नहीं होने के चलते किसी महिला से शादी करने के वादे से मुकर जाता है तो रेप का अपराध नहीं बनता। बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने आरोपी को रिहा करते हुए टिप्पणी की।
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‘पहले एक-एक जज से बिना शर्त मांगो माफी तब…’, सुप्रीम कोर्ट का अदालत की अवमानना मामले में वकील
Supreme Court News: दिल्ली हाई कोर्ट और जिला अदालतों के जजों पर गलत आरोप लगाने के मामले में 6 महीने की जेल काट रहे वकील की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 जनवरी) को सुनवाई की. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकील उन सभी जजों से एक-एक कर बिना शर्त माफी मांगे जिन पर उसने आरोप लगाए थे.
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की. इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि उसने आरोपी को अवमाननापूर्ण आरोपों के लिए माफी मांगने का मौका दिया था, लेकिन वकील ने नकारात्मक जवाब दिया और कहा कि उसने जो भी आरोप लगाए हैं, उन पर कायम है. इस पर वकील का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता बिना शर्त माफी मांगने के लिए तैयार है.
16 जनवरी को होगी अगली सुनवाई
इसके बाद पीठ ने कहा, “हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता, यदि इच्छुक है तो उसे हाई कोर्ट और जिला कोर्ट के उन सभी न्यायाधीशों के सामने हलफनामे पर बिना शर्त माफी मांगनी होगी, जिनके खिलाफ उसने आरोप लगाए थे.”
पीठ ने आगे कहा, “पुलिस अधिकारी याचिकाकर्ता को हर उस न्यायाधीश के सामने व्यक्तिगत रूप से पेश करने की व्यवस्था करेंगे, जिनके समक्ष माफी दायर की जानी है.” इस याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 16 जनवरी की तारीख तय की गई है.
9 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाई थी सजा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 9 जनवरी को एक वकील को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था और 2,000 रुपये का जुर्माना लगाने के अलावा छह महीने जेल की सजा सुनाई थी. अदालत ने तब अपने आदेश में कहा था वकील को हिरासत में लिया जाए और तिहाड़ जेल के अधीक्षक को सौंप दिया जाए. वकील ने कई न्यायाधीशों पर मनमाने ढंग से या पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्य करने का आरोप लगाया था. वकील ने अपनी याचिका में जजों का नाम भी लिया था.
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‘AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकती’, सुप्रीम कोर्ट में बोली केंद्र सरकार, SC ने क्या कहा?
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, केंद्र ने कोर्ट से कहा कि एएमयू किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही हो सकता है क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपनी लिखित दलील में कहा कि विश्वविद्यालय हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है, यहां तक कि आजादी के पहले से भी.
एमएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर ये बोला सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इस जटिल मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोई शिक्षण संस्थान किसी कानून द्वारा विनियमित (रेगुलेटेड) है, महज इसलिए उसका अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा समाप्त नहीं हो जाता. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 30 का जिक्र किया जो शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनके संचालन के अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 30 को प्रभावी बनाने के लिए किसी अल्पसंख्यक समूह को इस तरह के दर्जे का दावा करने के लिए स्वतंत्र प्रशासन की जरूरत नहीं है.
कितना पुराना है विश्वविद्यालय?
विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में हुई थी. शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के विवादास्पद मुद्दे को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था. 1981 में भी इसी तरह के मामले को संदर्भित किया गया था. संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा कई दशकों से कानूनी विवाद में फंसा है.
(भाषा इनपुट के साथ)
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी क्या बिलकिस बानो मामले के दोषी जेल जाने से बच जाएंगे? समझें
Bilkis Bano Case Convicts: 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 जनवरी) को 11 दोषियों को दी गई सजा में छूट को रद्द कर दिया.
दोषियों को गुजरात सरकार की ओर से सजा में छूट दिए जाने के बाद 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 11 दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करके उम्रकैद की सजा काटनी होगी. साथ ही कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को घिसा-पिटा और बगैर सोच-विचार से लिया गया बताया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बिलकिस बानो ने खुशी जताई है. उन्होंने यहां तक कहा कि उनके सीने पहाड़ जैसा बोझ हट गया है. अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी बिलकिस बानो मामले के दोषी जेल जाने से बच जाएंगे? आइये समझते हैं.
महाराष्ट्र सरकार से गुहार लगा सकते हैं बिलकिस बानो के दोषी
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बिलकिस बानो के 11 दोषी महाराष्ट्र सरकार से अपनी सजा माफी की गुहार लगा सकते हैं. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने अपने 251 पेज के फैसले में कहा, ”गुजरात सरकार ने महाराष्ट्र की शक्तियों को छीन लिया था, जो (महाराष्ट्र) केवल (सजा में) छूट मांगने वाले आवेदनों पर विचार कर सकता था.”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गुजरात सरकार के पास इन दोषियों को दी गई सजा की माफी वाले आवेदनों पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था और केवल उस राज्य की सरकार ही ऐसे आवेदनों पर विचार करने के लिए सक्षम थी जहां अपराधियों पर मुकदमा चलाया गया और सजा सुनाई गई.
बेंच ने कहा, ”… हम एक अन्य कारण से ऐसा कहते हैं, अगर दोषी कानून के अनुसार सजा में छूट की मांग करते हैं तो उन्हें जेल में रहना होगा क्योंकि वे जमानत पर या जेल के बाहर छूट की मांग नहीं कर सकते हैं.”
अहमदाबाद से मुंबई ट्रांसफर हुई थी सुनवाई
बिलकिस बानो ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ और गवाहों को खतरा होने की आशंका व्यक्त की थी, जिसके बाद गुजरात हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई अहमदाबाद से मुंबई स्थानांतरित कर दी थी.
बिलकिस बानो उस समय 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं जब गोधरा में ट्रेन जलाए जाने घटना के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों के डर से भागते समय उनके साथ रेप किया गया था. उनकी तीन साल की बेटी दंगों में मारे गए परिवार के सात सदस्यों में से एक थी.
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‘फैसला भविष्य के लिए एक मिसाल बनेगा’, बिलकिस बानो केस में SC के फैसले पर बोले मौलाना अरशद मदनी
Bilkis Bano Case Verdict: बिलकिस बानो केस में सोमवार (8 जनवरी) को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने प्रतिक्रिया देते हुए उनकी संस्था की ओर से लड़े जा रहे मामलों को लेकर उम्मीद जताई है. मौलाना मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह फैसला भविष्य के लिए एक मिसाल बनेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 जनवरी) को बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार का आदेश घिसा-पिटा और बगैर सोचे-समझे पारित किया गया था.
इस फैसले को लेकर मौलाना मदनी ने सुप्रीम कोर्ट की जमकर तारीफ की है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और सर्वोच्चा एक बार फिर सुनिश्चत हुई है. साथ ही कहा कि आम नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यकों का शीर्ष अदालत को लेकर विश्वास मजबूत होगा.
क्या कुछ बोले मौलाना अरशद मदनी?
दिल्ली में जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रेस फजलुर रहमान कासमी ने मौलाना मदनी के हवाले एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ”इस निर्णय ने न्याय का सर बुलंद किया.” प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ”जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बिलकिस बानो गैंग रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और इसे अनुकरणीय और दूरगामी फैसला बताते हुए कहा है कि उम्मीद है कि ये फैसला भविष्य के लिए एक मिसाल बनेगा.”
इसमें कहा गया, ”बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज करते हुए गुजरात सरकार ने 15 अगस्त, 2022 को सभी ग्यारह दोषी अपराधियों की सजा माफ कर दी, इससे न्याय पर गहरा आघात हुआ और देश के न्याय प्रिय लोगों में चिंता की लहर फैल गई. अगर सरकारें इसी तरह अपने राजनीतिक फायदे के लिए अदालत द्वारा दोषी पाए गए अपराधियों की सजा माफ करने लगें तो देश में कानून और न्याय की स्थिति क्या होगी?”
‘अल्पसंख्यकों का सुप्रीम कोर्ट के प्रति विश्वास मजबूत होगा’
विज्ञप्ति में आगे कहा गया, ”इस निर्णय से एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और सर्वोच्चता सुनिश्चित हुई है, इससे देश के आम नागरिकों खासकर अल्पसंख्यकों का सुप्रीम कोर्ट के प्रति विश्वास मजबूत होगा. इस बात पर बहस चल रही थी कि क्या राज्य सरकार ऐसा करने के लिए अधिकृत है, उस समय गुजरात सरकार द्वारा इसका कोई जवाब नहीं दिया गया था, लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि गुजरात सरकार उन्हें माफ करने और रिहा करने के लिए अधिकृत नहीं है.”
इसमें कहा गया, ”उन्होंने (मौलाना मदनी) कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद अनगिनत केस लड़ रही है और इस अनुभव के आधार पर हम कहते हैं कि अब न्याय के लिए अदालतें ही एक मात्र सहारा हैं. जहां से मजलूमों को न्याय मिल सकता है. मैं उन लोगों को बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने इस मामले को उठाया. डर और भय के माहौल में भी सुप्रीम कोर्ट तक जाकर मजबूती के साथ कानूनी लड़ाई लड़ी और न्याय पाया.”
बता दें कि गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिल्किस बानो के साथ अपराध को अंजाम दिया गया था. 15 अगस्त 2022 को बिलकिस के दोषी सजा में छूट के बाद रिहा हुए थे. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 11 दोषियों को दो हफ्ते के भीतर वापस जेल भेजा जाए.
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