महुआ मोइत्रा ने भारतीय राजनीति में प्रवेश करने के लिए 2009 में लंदन में जेपी मॉर्गन चेज में उपाध्यक्ष का अपना पद छोड़ दिया. इसके बाद वह भारतीय युवा कांग्रेस में शामिल हो गईं, जहां वह “आम आदमी का सिपाही” परियोजना में राहुल गांधी की भरोसेमंदों में से एक थीं. 2010 में, वह तृणमूल कांग्रेस पार्टी में चली गईं. वह 2016 में हुए विधान सभा चुनावों में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गईं. 2019 आम चुनावों में वह कृष्णानगर से 17वीं लोकसभा के लिए संसद सदस्य के रूप में चुनी गई. 13 नवंबर 2021 को, उन्हें 2022 गोवा विधानसभा चुनाव के लिए टीएमसी पार्टी के गोवा प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया.
कैश फॉर क्वेरी
महुआ मोइत्रा के समर्थन में उतरीं TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी, कहा- उन्हें लोकसभा से हटाना…
Mamata Banerjee on Mahua Moitra: संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने के आरोपों से घिरीं तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा को अपनी पार्टी की सुप्रीमो ममता बनर्जी का साथ मिला है. न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी पर महुआ मोइत्रा को हटाने की साजिश रचने का आरोप लगाया है.
उन्होंने कहा, “बीजेपी की महुआ मोइत्रा को लोकसभा से हटाने की योजना बना रही है. इससे उन्हें (महुआ मोइत्रा) चुनाव से पहले और अधिक लोकप्रिय होने में मदद मिलेगी. वह जो संसद के बोलती थीं, अब वह बाहर बोलेंगी.”
टीएमसी ने दी थी महुआ को बड़ी जिम्मेदारी
इससे पहले पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने संसद महुआ मोइत्रा को कृष्णानगर (नदिया उत्तर) का अध्यक्ष बनाया था. इसके लिए उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर सीएम ममता बनर्जी का धन्यवाद किया था.
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा स्पीकर को पत्र लिखकर महुआ मोइत्रा पर बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी से पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगाया था. साथ ही टीएमसी सांसद पर महंगे गिफ्ट लेने के भी आरोप लगे. इसके बाद महुआ मोइत्रा एथिक्स कमेटी के सामने पेश हुईं थी. उनके साथ विपक्ष के कई सांसद भी गए थे. काफी शोर-शराबे के बीच महुआ मोइत्रा और कई विपक्षी सांसद उस रूम से बाहर निकलते नजर आए थे, जहां पूछताछ की जा रही थी.
अभिषेक बनर्जी ने दिया था महुआ का साथ
बसपा सांसद दानिश अली ने एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष पर अनैतिक सवाल पूछने का भी आरोप लगाया था. वहीं इसके बाद टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने भी महुआ मोइत्रा का साथ दिया था. उन्होंने कहा था कि महुआ मोइत्रा खुद का बचाव करने में पूरी तरह सक्षम हैं. साथ ही उन्होंने बीजेपी पर निशाना भी साधा.
संसद ने बनाया नया नियम
सांसद महुआ मोइत्रा के विवाद के बाद संसद की तरफ से नया नियम बनाया गया है. अब संसद पोर्टल के लॉग इन और पासवर्ड सांसदों तक ही सीमित रहेंगे. इसका मतलब यह है कि अब उनके पर्सनल असिस्टेंट या सेक्रेटरी लॉग इन नहीं कर सकेंगे. सांसद अब अपना लॉग इन-पासवर्ड और ओटीपी शेयर नहीं कर सकते हैं.
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कैश फॉर क्वेरी मामले में एथिक्स कमेटी की बैठक आज, महुआ मोइत्रा के खिलाफ हो सकता है एक्शन
Mahua Moitra Case: कैश फॉर क्वेरी यानी लोकसभा में सवाल पूछने के बदले कैश लेने के मामले में लोकसभा की एथिक्स कमेटी की आज गुरुवार (09 नवंबर) को अहम बैठक होने वाली है. इस बैठक में कमेटी महुआ मोइत्रा के खिलाफ लगे आरोप पर तैयार मसौदा रिपोर्ट स्वीकार कर सकती है. बैठक शाम 4 बजे होगी.
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा पर उपहार के बदले व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी के इशारे पर अडाणी समूह को निशाना बनाने के लिए लोकसभा में सवाल पूछने का आरोप लगाया था. जिसकी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से शिकायत की थी. इसके बाद एक कमेटी गठित की गई. इस 15 सदस्यीय कमेटी में बीजेपी के सात, कांग्रेस के तीन और बीएसपी, शिवसेना, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) के एक-एक सदस्य हैं.
‘महुआ मोइत्रा के खिलाफ सीबीआई करेगी जांच’
वहीं निशिकांत दुबे ने बुधवार (08 नवंबर) को ये दावा किया कि लोकपाल ने महुआ मोइत्रा के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दे दिया है. हालांकि इस मामले में लोकपाल की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है. इस पर महुआ ने पलटवार करते हुए कहा कि सीबीआई को पहले अडानी समूह के कथित कोयला घोटाले की जांच के लिए प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए.
महुआ मोइत्रा के निशिकांत दुबे को जवाब
मोइत्रा ने सोशल मीडिया एक्स पर कहा, ”मीडिया जो मेरा उत्तर जानने के लिए फोन कर रहे हैं. उनसे कहना है कि सीबीआई को 13 हजार करोड़ रुपये के अडानी कोल स्कैम मामले में पहले एफआईआर दर्ज करनी होगी”
मोइत्रा ने आगे कहा, ”राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा यह है कि कैसे संदिग्ध एफपीआई स्वामित्व वाली (चीनी और संयुक्त अरब अमीरात सहित) अडानी कंपनियां भारतीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों को खरीद रही है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सीबीआई आपका स्वागत है. आओ और मेरे जूती गिनो.”
इससे कुछ दिन पहले बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मोइत्रा पर रिश्वत के बदले कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के इशारे पर, उपहारों के बदले, अडाणी समूह को निशाना बनाने के लिए लोकसभा में सवाल पूछने का आरोप लगाया था.
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महुआ मोइत्रा गुरुवार को एथिक्स कमेटी के सामने होंगी पेश, सूत्र ने इतनी बार लॉग-इन हुआ अकाउंट
Cash For Query Case: लोकसभा की एथिक्स कमेटी तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद निशिकांत दुबे के लगाए कैश फॉर क्वेरी के आरोपों की जांच कर रही है. मोइत्रा को गुरुवार (2 नवंबर) को समिति के सामने पेश होना है.
मोइत्रा के समिति के सामने पेश होने ठीक पहले मामले से जुड़े एक सूत्र ने दावा किया है कि टीएमसी सांसद के संसदीय अकांउट से लगभग 47 बार दुबई से लॉग-इन किया गया था. सूत्रों ने मोइत्रा पर दुबई के एक जाने-माने कारोबारी दर्शन हीरानंदी के इशारे पर उनके संसदीय अकाउंट से सवाल पूछने का आरोप लगाया.
पैसे लेने के आरोपों का नकारा
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक मोइत्रा भी ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि उन्होंने अपने लॉग-इन क्रेडेंशियल हीरानंदानी के साथ शेयर किया था. महुआ मोइत्रा ने हीरानंदी को अपना करीबी दोस्त बताया. हालांकि, उन्होंने किसी भी तरह पैसे लेने से आरोपों को नकार दिया और कहा है उन्होंने संसद में जो भी सवाल पूछे वे उनके ही थे.
‘मोइत्रा के भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हों सांसद’
इस बीच दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “महुआ मोइत्रा की जो खबर मीडिया में चल रही है, उसके अनुसार 47 बार दुबई में हीरानंदानी के यहां से मेल आईडी, सांसद पोर्टल से लोकसभा में प्रश्न पूछे गए. अगर यह खबर सही है तो देश के सभी सांसदों को महुआ जी के भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना चाहिए.”
महुआ जी (आरोपी सांसद) की खबर जो मीडिया में चल रही है,उसके अनुसार 47 बार दुबई में हीरानंदानी के यहाँ से mail id, सांसद portal से लोकसभा में प्रश्न पूछे गए ।यदि यह खबर सही है तो देश के सभी सांसदों को महुआ जी के भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना चाहिए । हीरानंदानी के लिए हीरानंदानी ने…
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) November 1, 2023
राष्ट्रीय हित से समझौता करने का आरोप
निशिकांत दुबे ने उन पर संसदीय पोर्टल का लॉग-इन आईडी और पासवर्ड किसी दूसरे के साथ शेयर करने के लिए उनपर राष्ट्रीय हित से समझौता करने का आरोप लगाया और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
मोइत्रा की बढ़ी मुश्किलें
बता दें कि मामले की जांच कर रही लोकसभा की एथिक्स कमेटी जांच के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों की सहायता ली है. मंत्रालय ने समिति को मोइत्रा के सवालों की डिटेल दी है. इसके अलावा कारोबारी के हलफनामे ने भी मोइत्रा की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है. दरअसल, कारोबारी ने हलफनामे में मोइत्रा को अडानी ग्रुप और पीएम मोदी को लेकर सवाल पूछने के लिए रिश्वत देने की बात स्वीकार की है.
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महुआ मोइत्रा मामला एलएस एथिक्स कमेटी के पास गया: क्या करती है और इसमें कौन-कौन हैं शामिल
Mahua Moitra Case: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद निशिकांत दुबे ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा पर सदन में प्रश्न पूछने के लिए एक बिजनेसमैन से रिश्वत लेने का आरोप लगाया. बीजेपी सांसद ने इसकी शिकायत लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से पत्र लिखकर की. इसके बाद ओम बिरला ने इस शिकायत को सदन की आचार समिति के पास भेज दिया जिस पर पैनल कार्रवाई में शामिल होने के लिए तैयार हो गया.
निशिकांत दुबे की ओर से लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए महुआ मोइत्रा ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष को उनके खिलाफ कोई भी प्रस्ताव लाने से पहले निशिकांत दुबे और बीजेपी के दूसरे नेताओं के खिलाफ लंबित विशेषाधिकारों के उल्लंघनों की जांच करनी चाहिए.
समिति के सदस्यों में कौन-कौन?
इस समिति के सदस्यों की नियुक्ति एक साल के लिए होती है और वर्तमान में इसके अध्यक्ष बीजेपी के विनोद कुमार सोनकर हैं. इसके सदस्यों की अगर बात की जाए तो इसमें बीजेपी के विष्णु दत्त शर्मा, सुमेधानंद सरस्वती, अपराजिता सारंगी, डॉ. राजदीप रॉय, सुनीता दुग्गल और सुभाष भामरे के अलावा कांग्रेस के वी वैथिलिंगम, एन उत्तम कुमार रेड्डी, बालाशोवरी वल्लभनेनी और परनीत कौर, शिवसेना के हेमंत गोडसे, जेडीयू के गिरिधारी यादव, सीपीआईम के पीआर नटराजन और बीएसपी के दानिश अली हैं.
संसद की वेबसाइट के मुताबिक, दो दशक पहले अस्तित्व में आने वाली समिति की आखिरी बैठक 27 जुलाई, 2021 को हुई थी. समिति ने अब तक कई शिकायतें सुनीं लेकिन ये बेहद हल्के मामलों की रही हैं. अधिक गंभीर शिकायतें या तो विशेषाधिकार समिति या विशेष रूप से सदन की गठित समिति ने सुनी हैं.
कैश फॉर क्वेरी मामले में 11 सांसद हो गए थे निलंबित
साल 2005 में पी के बंसल समिति की रिपोर्ट के आधार पर कैश-फॉर-क्वेरी घोटाले में 11 सांसदों को निष्कासित कर दिया गया था जिसमें 10 लोकसभा से और एक राज्यसभा सदस्य शामिल थे. बंसल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद थे. उस वक्त बीजेपी ने सांसदों को निष्कासित करने के लोकसभा के फैसले का विरोध करते हुए मांग की कि बंसल समिति की रिपोर्ट विशेषाधिकार समिति को भेजी जाए ताकि सांसद अपना बचाव कर सकें.
पूर्व लोकसभा महासचिव पी डी टी आचार्य ने कहा कि 2005 के मामले में “बहुत सारे सबूत” थे. ये एक स्टिंग ऑपरेशन पर आधारित था. यहां चुनौती पश्चिम बंगाल के सांसद की ओर से पूछे गए सवालों को पैसे के लेन-देन से जोड़ने की होगी.
साल 1996 में एथिक्स पैनल पर किया गया विचार
दिल्ली में साल 1996 में पीठासीन अधिकारियों के एक सम्मेलन के दौरान पहली बार संसद के दोनों सदनों के लिए एथिक्स पैनल के आइडिया पर विचार किया गया. उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के आर नारायणन ने 4 मार्च, 1997 को उच्च सदन की आचार समिति का गठन किया. दो महीने बाद मई के महीने में सदस्यों के मोरल और एथिक आचरण की जांच करने और कदाचार के मामलों की जांच करने के लिए इसका आधिकारिक उद्घाटन किया गया. विशेषाधिकार समिति पर लागू नियम नैतिकता पैनल पर भी लागू होते हैं.
लोकसभा आचार समिति की उत्पत्ति कैसे हुई?
लोकसभा आचार समिति की उत्पत्ति अलग है. लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के एक अध्ययन समूह ने विधायकों के आचरण और नैतिकता से संबंधित प्रथाओं को देखने के लिए साल 1997 में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका का दौरा किया. इसने एक आचार समिति के गठन के लिए एक रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया लेकिन रिपोर्ट को पटल पर रखे जाने से पहले ही लोकसभा भंग कर दी गई.
इसे 12वीं लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन इससे पहले कि विशेषाधिकार समिति इस पर कोई विचार कर पाती, लोकसभा फिर से भंग कर दी गई. 13वीं लोकसभा के दौरान विशेषाधिकार समिति ने आखिरकार एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की. दिवंगत अध्यक्ष जी एम सी बालयोगी ने 2000 में एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया और यह 2015 में सदन का स्थायी हिस्सा बन गई.
आज की स्थिति के अनुसार, कोई भी व्यक्ति किसी सदस्य के खिलाफ किसी अन्य लोकसभा सांसद के माध्यम से कदाचार के सभी सबूतों और एक हलफनामे के साथ शिकायत कर सकता है. एक सदस्य भी किसी अन्य सदस्य के खिलाफ बिना किसी शपथ पत्र के सबूत के साथ शिकायत कर सकता है.
समिति केवल मीडिया रिपोर्टों या न्यायाधीन मामलों पर आधारित शिकायतों पर विचार नहीं करती है. अध्यक्ष किसी सांसद के खिलाफ कोई भी शिकायत समिति को भेज सकते हैं. समिति किसी शिकायत की जांच करने का निर्णय लेने से पहले प्रथम दृष्टया जांच करती है और शिकायत के मूल्यांकन के बाद अपनी सिफारिशें करती है. समिति की रिपोर्ट अध्यक्ष के सामने पेश की जाती है जो सदन से पूछता है कि क्या रिपोर्ट पर विचार किया जाना चाहिए? रिपोर्ट पर आधे घंटे की चर्चा का भी प्रावधान है.
विशेषाधिकार समिति से किस तरह से अलग है?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आचार्य ने कहा कि आचार समिति और विशेषाधिकार समिति का काम अक्सर ओवरलैप होता है. किसी सांसद के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप किसी भी निकाय को भेजा जा सकता है क्योंकि इसमें विशेषाधिकार के गंभीर उल्लंघन और सदन की अवमानना का आरोप शामिल है.
विशेषाधिकार समिति का कार्य “संसद की स्वतंत्रता, अधिकार और गरिमा” की रक्षा करना है. जबकि सांसदों पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर विशेषाधिकार के उल्लंघन की जांच की जा सकती है, एक व्यक्ति जो सांसद नहीं है, उस पर भी सदन के अधिकार और गरिमा पर हमला करने वाले कार्यों के लिए विशेषाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया जा सकता है. हालांकि, आचार समिति के मामले में, कदाचार के लिए केवल एक सांसद की जांच की जा सकती है.