<p style="text-align: justify;">उत्तरकाशी टनल हादसा से निटपने के देश के सामने बहुत ज्यादा इस तरह के उदाहरण नहीं थे. ऐसे में ये ऐतिहासिक कदम रहा है. इस चुनौती से निटपने में कहीं न कहीं अनुभव की कमी थी. इस तरह अगर टनल हादसा हो तो उसके बनने तक हम कोई दूसरा विकल्प ढूंढ पाएं, कैसे रेस्क्यू कर पाएं.</p>
<p style="text-align: justify;">उत्तरकाशी टनल हादसे में जिस तरह से सकुशल 41 लोगों को सुरंग से निकाला गया, उनके साथ मनोवैज्ञानिक तौर पर ढांढस बंधाया गया, यानी उनकी आवश्यकताओं की आपूर्ति तो की गई, इसके साथ ही जिस तरह से उनके साथ मानसिक तौर पर ट्रीट किया गया, उन्हें मजबूत बनाया, ये काफी अहम था.</p>
<p style="text-align: justify;">इससे पीछे जब एक के बाद एक सारे प्रयास फेल हो गए, ऑगर मशीन खराब हो गई, कोल माइनर्स होते हैं, कोयले-खदानों के, एक तरह से जैसे चूहे की तरह काटते हैं और आगे बढ़ते हैं, ठीक उसी तरह से आखिरी पलों में उनका बड़ा योगदान रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;">इन सब चीजों को मिलाकर ऐसी चित्र बनानी चाहिए कि जो घटना घटी, घटना के कारणों में कंस्ट्रक्शन हुआ, आप सुरंग बनाकर आगे बढ़ते चले गए, लेकिन पीछे से टनल को मजबूत नहीं किया. दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो ये कि जब इस तरह के टनल बनते हैं तो आप एग्जिट प्लान भी रखते हैं. साथ ही, पीछे-पीछे आप उसे मजबूत भी करते चलते हैं, तभी हम आगे बढ़ते हैं.</p>
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<p style="text-align: justify;">उत्तरकाशी के मामले में हुआ कि पीछे बिना मजबूत किए ही आगे बढ़ते चले गए, लेकिन पीछे की तरफ मजबूती नहीं की. मेरी दृष्टि में ये सब बड़ा ऐतिहासिक तो है ही कि किस तरह से लोगों को बचाया जा सके. हालांकि, उत्तराखंड टनल हादसे ने बहुत बड़ा अनुभव तो दिया ही है और ये हमारे रिकॉर्ड का हिस्सा होना चाहिए, जो कुछ घटनाएं इस टनल को लेकर हुई है.</p>
<p style="text-align: justify;">मेरा ऐसा मानना है कि 500 मीटर या एक किलोमीटर की दूरी की टनल बनाते हो तो 20-25 किलोमीटर सड़क बचाते हो. इसके अलावा, सड़क में ज्यादा बड़े नुकसान होते हैं, जंगल काटना पड़ता है. उसके बावजूद एक खतरा रहता है. लेकिन आपने टनल में इस तरह का उदाहण नहीं देखा होगा.</p>
<p style="text-align: justify;"> जहां-जहां पर टनल मजबूत हो जाती है तो वहां पर ऊपर जंगल तो रहता ही है, साथ ही स्थिरता रहती है. टनल को काफी मजबूती के साथ बनाया जाता है. देहरादून के पास ही एक टनल है जो मुझे लगता है कि सौ-डेढ सौ साल पुरानी है. </p>
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<p style="text-align: justify;">ऐसे ही रुद्रप्रयाग से केदारनाथ के रास्ते पर टनल बनी है. टनल इतनी बड़ी नुकसान पर्यावरण को नहीं करती है, जितना बड़ा नुकसान हमारी सड़कों से होता है. कंस्ट्रक्श में टनल से जुड़े हुए जो लोग हैं, या फिर हमारे प्लान जब इस तरह से बनते हैं वो चाहे टनल के हों या सड़कों के तो ये घटना एक और बड़ा उदाहरण पेश करती है.</p>
<p style="text-align: justify;">ये कंस्ट्रक्शन फैल्योर है. मुझे लगता है कि जो कंस्ट्रक्शन करने वाली कंपनी थी, उस पर इस बात की बहस की शुरुआत होनी चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ? उनकी दृष्टि में इसकी जवाबदेही इसको लेकर क्या है. उसके बाद ही अगले कदम की तैयारी होगी. </p>
<p style="text-align: justify;">जो इसके लिए जिम्मेदारी एजेंसी थी, उससे जरूर बात करनी चाहिए. उत्तरकाशी टनल हादसा को देखने के बाद मैं यही कहूंगा कि इस तरह से हम किसी के जीवन को दांव पर नहीं लगा सकते हैं. सबसे ज्यादा आवश्यकता इसी बात को लेकर है कि हम जब भी भविष्य का कंस्ट्रक्शन करें डिजास्टर फ्री डेवलपमेंट पर काम करना चाहिए. आपदा स्वतंत्र विकास पर हमें काम करना चाहिए. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]</strong></p>
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Uttarkashi news
बौख नाग देवता का प्रकोप! गांव वालों ने कहा- मंदिर हटाते ही टनल पर आई मुसीबत
देहरादून: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के काम में तेजी आई है। अब मजदूरों तक 6 इंच के व्यास वाली पाइप आर-पार होकर पहुंच गई है और इसके जरिए उन तक खाना और सारे जरूरी सामान पहुंचाए जा रहे हैं। आज सुबह आए एक वीडियो में सुरंग के भीतर मजदूर स्वस्थ नजर आए और उन्होंने बात भी की। वहीं, हादसे के बाद स्थानीय लोगों ने दावा किया है कि सुरंग बनाने के दौरान निर्माण करने वाले लोगों ने सिलक्यारी में एक पुराने मंदिर को हटा दिया था, जिसके प्रकोप के चलते ये हादसा हुआ है।
स्थानीय लोगों ने कंंस्ट्रक्शन कंपनी के मैनेजमेंट को दिया दोष
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रोजेक्ट के शुरू होने से पहले सुरंग के मुंह के पास एक छोटा-सा मंदिर बनाया गया था और स्थानीय मान्यताओं को सम्मान देते हुए अधिकारी और मजदूर पूजा करने के बाद ही सुरंग के अंदर दाखिल होते थे, लेकिन दिवाली से कुछ दिन पहले कंस्ट्रक्शन करने वाले कंपनी के मैनेजमेंट ने मंदिर को वहां से हटवा दिया। लोगों का कहना है कि मंदिर को हटाने के बाद ही सुरंग में यह हादसा हुआ और अब तक तमाम तरह की कोशिशें करने के बावजूद मजदूरों का रेस्क्यू नहीं हो पाया है।
मंदिर के हटने के बाद प्रोजेक्ट के सामने आईं कई परेशानियां
यह सच है कि मंदिर के हटने के बाद ही तमाम तरह की दिक्कतों से सामना हो रहा है। पहले तो ठीक दीपावली के दिन मजदूर सुरंग में फंस गए। उसके बाद जब उन्हें निकालने की कोशिश की गई, तो कभी भूस्खलन की वजह से काम में रुकावट आई तो कभी ऑगर मशीन ही खराब हो गई। जब सारे उपाय विफल हो गए तब कंस्ट्रक्शन कंपनी के अधिकारियों ने बौखनाग देवता के पुजारी को बुलाकर उनसे क्षमा याचना की और पूजा की। ग्रामीणों के दबाव को देखते हुए कंपनी मैनेजमेंट ने सुरंग के बाहर बौखनाग देवता का मंदिर फिर से स्थापित कर दिया।
मंदिर की स्थापना के कुछ घंटे बाद मजदूरों तक पहुंचा कैमरा
मंदिर की स्थापना के बाद पहली सफलता तब मिली जब 6 इंच का पाइप मलबे के पार होकर मजदूरों तक पहुंच गया। इस पाइप की मदद से मजदूरों तक अब आसानी से दलिया, खिचड़ी समेत कई तरह के खाद्य पदार्थ भेजे जा सकते हैं। वहीं, पाइप से भेजे गए कैमरे की मदद से मजदूरों से बात भी हुई जिसमें वे स्वस्थ लग रहे थे। सुरंग के अंदर फंसे एक मजदूर ने अपने संदेश में कहा कि वह पूरी तरह ठीक है और खाना भी वक्त पर मिल जा रहा है। उसने कहा कि उन्हें सुरंग में फिलहाल कोई दिक्कत नहीं है।