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- Maratha Reservation Bill Passed In Maharashtra Assembly, Marathas Will Get 10% Additional Reservation In Jobs And College Admissions.
4 घंटे पहले
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महाराष्ट्र विधानसभा में मंगलवार 20 फरवरी को मराठा आरक्षण बिल सर्वसम्मति से पास हो गया। इस बिल में राज्य की नौकरियों और शिक्षा में मराठाओं को एडिशनल 10% आरक्षण देने का प्रावधान है। वर्तमान में महाराष्ट्र में 52% आरक्षण की व्यवस्था लागू है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बिल को विधानसभा में पेश किया। अब वे इस बिल को विधान परिषद में पेश करेंगे। वहां से पास होने के बाद यह कानून बन जाएगा।
मराठाओं के लिए 10% एडिशनल आरक्षण
इस बिल के तहत राज्य की नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में एडमिशन में महाराष्ट्र के मराठियों को 10% आरक्षण देने का प्रावधान है। अगर यह कानून बनता है तो महाराष्ट्र के डोमेसाइल उम्मीदवारों को नौकरियों में पहले से तय आरक्षण के अतिरिक्त 10% आरक्षण मिलेगा। वहीं शिक्षण संस्थानों में दाखिले में भी 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा।
शिंदे सरकार ने इस बिल के लिए एक दिन का स्पेशल सेशन बुलाया है।
कानून बनते ही रिजर्वेशन लिमिट 62% हो जाएगी
विधानसभा में पास होने से पहले बिल पर कैबिनेट ने मुहर लगाई। मराठा आरक्षण बिल पारित होने से मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण मिलेगा। राज्य में 52% आरक्षण पहले से है। 10% मराठा आरक्षण जुड़ने से रिजर्वेशन लिमिट 62% हो जाएगी।
2021 में SC ने रद्द किया था फैसला
रिजर्वेशन कोटा 50% से ज्यादा होने से इस बिल को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2021 में मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के फैसले को रद्द कर दिया था, क्योंकि रिजर्वेशन लिमिट 50% से ऊपर हो गई थी।
MBCC की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण मिला
मराठाओं का आरक्षण बढ़ाने की पहल महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग (MBCC) की एक सर्वे रिपोर्ट के आधार पर की गई थी। MBCC ने 16 फरवरी को मराठा समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर आधारित सर्वे रिपोर्ट शिंदे सरकार को सौंपी थी।
महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग के सर्वे में 2.5 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया था।
MBCC की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा है। सर्वे में बताया गया कि राज्य में आत्महत्या करने वाले 94% किसान मराठा समुदाय के थे। इंटरमीडिएट और हायर एजुकेशन में मराठा समुदाय का प्रतिशत कम है। इसके अलावा, सरकारी नौकरियों में मराठाओं की संख्या कम है।
122 साल पुराने मराठा आरक्षण मांग का इतिहास
मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। कुनबी, कृषि से जुड़ा एक समुदाय है, जिसे महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की कैटेगरी में रखा गया है। कुनबी समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लाभ का मिलता है।
मराठा आरक्षण की नींव पड़ी 26 जुलाई 1902 को, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50% आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए।
इसके बाद 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था। लेकिन, फिर मामला ठंडा पड़ गया। आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था।
उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए।
अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।