अनिल एंटनी, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर जैसे युवा नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जबकि वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने अपनी पार्टी बना ली है।
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Lok Sabha Elections
सपा-कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाएगी पटेल-ओवैसी की यारी? NDA से ज्यादा बेचैन होगा INDIA गठबंधन
उत्तर प्रदेश में लोकसभा का मुकाबला मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले एनडीए और समाजवादी पार्टी व कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के बीच होगा। अकेले चुनाव लड़ रही बसपा इन दोनों गठबंधनों के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकती है। इन सबके बीच एक और ऐसा गठबंधन हुआ है जो भाजपा से ज्यादा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ को परेशान कर सकता है।
लोकसभा चुनाव के लिए सियासी पारा चढ़ने के बीच उत्तर प्रदेश में एक नया गठबंधन सामने आया है। ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलाइंस’ (इंडिया) गठबंधन से नाराज होकर अलग हुए अपना दल (कमेरावादी) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने रविवार को पीडीएम (पिछड़ा, दलित, मुसलमान) न्याय मोर्चा बनाकर उत्तर प्रदेश में साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया।
एआईएमआईएम को अपने पिछले चुनाव में यूपी में सीमित सफलता मिली थी, वहीं अपना दल (कमेरावादी) हाल तक सपा का सहयोगी था। इसके अलावा इस मोर्चे में बाबूराम पाल के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय उदय पार्टी और प्रेम चंद बिंद के नेतृत्व वाली प्रगतिशील मानव समाज पार्टी भी शामिल है। इन पार्टियों ने अपने मोर्चे का नाम पीडीएम रखा है। इसे समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। इससे सपा के मुस्लिम-यादव वोट बैंक में सेंध लगने की संभावना है।
पीडीएम लॉन्च पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और अपना दल (के) नेता पल्लवी पटेल के भाषण का निशाना भी सपा रही। ओवैसी ने कहा, “यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव में, 90% मुसलमानों ने एसपी को वोट दिया, लेकिन नतीजा क्या हुआ?… कोई भी मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व नहीं चाहता है। वे केवल अपना वोट मांगते हैं।” पल्लवी पटेल ने भी सपा पर पीडीए के दावों को लेकर दोहरा रुख अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव पिछड़ों को प्राथमिकता देने के अपने वादे पर खरे नहीं उतरे हैं। इंडिया ब्लॉक के लिए, पीडीएम मोर्चे का उदय बड़ा झटका इसलिए भी है क्योंकि इस गठबंधन ने हाल ही में आरएलडी के रूप में अपना एक सहयोगी गंवाया था।
वैसे जिन दो विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने भाग लिया, उन पर गौर करें तो यूपी में हैदराबाद स्थित पार्टी की उपस्थिति न के बराबर है। वहीं अपना दल (के) ने 2022 में और भी खराब प्रदर्शन किया था। यह उसका चुनाव था। 2017 में, यूपी में अपने पहले विधानसभा चुनाव में, एआईएमआईएम ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट नहीं जीती, उसे कुल वोट शेयर का सिर्फ 0.24% मिला। 2022 में उसने 95 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। इसके वोट शेयर में मामूली सुधार हुआ और इसे 0.49% वोट मिले थे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2023 में, AIMIM ने शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया। इसके पांच उम्मीदवार नगर पालिका परिषद या नगर पंचायत अध्यक्ष के रूप में चुने गए। इसके 75 उम्मीदवार नगर निगमों के लिए चुने गए। हालांकि वह मेरठ मेयर पद के उम्मीदवार की दौड़ में भाजपा से हार गई, लेकिन वह सपा से आगे निकल गई थी। जहां तक लोकसभा चुनाव का सवाल है, एआईएमआईएम ने यूपी में अभी तक केंद्रीय चुनाव नहीं लड़ा है। इसने 2019 में, उत्तर भारत में केवल एक सीट पर (बिहार में) चुनाव लड़ा और तीसरे स्थान पर रही थी।
इस बीच, अपना दल की स्थापना सोनीलाल पटेल ने 1995 में बसपा से अलग होकर एक समूह के रूप में की थी। 2016 में, पार्टी फिर से विभाजित हो गई और अपना दल (कमेरावादी) का उदय हुआ। इसका नेतृत्व सोनीलाल की सबसे बड़ी बेटी और मौजूदा विधायक पल्लवी पटेल कर रही हैं। वहीं अपना दल (सोनीलाल) का नेतृत्व पल्लवी की छोटी बहन और दो बार की सांसद अनुप्रिया कर रही हैं। 2014 तक अपना दल एक भी लोकसभा सीट जीतने में नाकाम रही थी। लेकिन 2014 में भाजपा के साथ गठबंधन से एकजुट पार्टी को दो संसदीय सीटें जीतने में मदद मिली। विभाजन के बाद, अनुप्रिया का गुट अधिक प्रभावशाली पार्टी के रूप में उभरा और 2019 में, उसने फिर से दो लोकसभा सीटें जीतीं। हालांकि, अपना दल (के) ने 2019 में चुनाव नहीं लड़ा। हाल के विधानसभा चुनावों में भी, पल्लवी के गुट को संघर्ष करना पड़ा है, जबकि अनुप्रिया की पार्टी एनडीए में अपने लिए जगह बनाने में कामयाब रही है।
वर्तमान में पल्लवी पटेल कौशांबी जिले के सिराथू विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी की विधायक हैं। अपना दल (कमेरावादी) ने 22 मार्च को आगामी लोकसभा चुनावों के लिए कोई सीट नहीं दिए जाने पर नाराजगी व्यक्त की थी और कहा था कि ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं को स्पष्ट करना चाहिए कि वह अभी भी गठबंधन का हिस्सा है या नहीं। उनका यह बयान समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की उस टिप्पणी के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि अपना दल (कमेरावादी) के साथ गठबंधन 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए था न कि लोकसभा चुनावों के लिए। पल्लवी पटेल की पार्टी ने ‘इंडिया’ गठबंधन से फूलपुर, मिर्जापुर और कौशांबी लोकसभा सीट देने का आग्रह किया था लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया था। पल्लवी पटेल ने 2022 का विधानसभा चुनाव सिराथू सीट से सपा के टिकट पर लड़ा था और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को हराया था।
Bihar News : लोकसभा चुनाव में नहीं दिखेंगे सुशील मोदी, राजनीति से संन्यास की वजह बताई- कैंसर से जूझ रहा हूं
सुशील कुमार मोदी
विस्तार
पूर्व उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरीय नेता सुशील मोदी ने राजनीति से संन्यास ले लिया है। लोकसभा चुनाव के बीच उन्होंने यह एलान किया है। सोशल मीडिया पर उन्होंने स्पष्ट लिखा कि पिछले छह माह से कैंसर से संघर्ष कर रहा हूं। अब लगा कि लोगों को बताने का समय आ गया है। लोकसभा चुनाव में कुछ कर नहीं पाऊंगा। प्रधानमंत्री को सब कुछ बता दिया है। देश, बिहार और पार्टी का सदा आभार और सदैव समर्पित। वहीं सुशील मोदी के इस एलान के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरीय नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हूं। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि चुनाव में बहुत कमी खलेगी।
बिहार की राजनीति की पुरानी पीढ़ी को अपदस्थ किया
वहीं राष्ट्रीय जनता दल के वरीय नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि सुशील मोदी की बीमारी की खबर सुनकर बहुत पीड़ा हुई। 1974 के बिहार आंदोलन से उपजे त्रिमूर्ति में से सुशील एक हैं। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों का नेतृत्व आज इन्हीं त्रिमूर्ति के हाथ में है। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और सुशील मोदी तीनों उसी आंदोलन से निकले हैं और धीरे-धीरे इन लोगों ने बिहार की राजनीति की पुरानी पीढ़ी को अपदस्थ किया। लगभग तीस वर्षों से इन्हीं तीनों के हाथ में बिहार की राजनीति का नेतृत्व है।
बांकीपुर जेल में हमलोग एक ही सेल में रहे
शिवानंद तिवारी ने आगे लिखा कि सुशील और मैं लगभग तीन महीना बांकीपुर जेल में एक साथ और एक ही सेल में रहा। हमलोगों में तीखा वैचारिक मतभेद रहा है। लेकिन, सबकुछ के बावजूद सुशील मोदी के साथ मेरा स्नेहिल संबंध बना रहा है। सुशील जुझारू नेता रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि बीमारी के समक्ष भी सुशील मोदी का जुझारूपन बना रहेगा। हमारी दुआएं उनके साथ है।
1990 में विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने
बताया जा रहा है कि पूर्व उपमुख्यंत्री सुशील मोदी गले के कैंसर से पीड़ित हैं। फिलहाल, वह दिल्ली एम्स में अपना इलाज करवा रहे हैं। सुशील मोदी, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद जेपी आंदोलन के बाद उभरे। यह तीनों नेता जेपी आंदोलन की उपज माने जाते हैं। सुशील मोदी शुरुआत से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे। 1971 में सुशील मोदी ने छात्र राजनीति की शुरुआत की। इसके बाद युवा नेता के रूप में पहचान बनाई। साल 1990 में सुशील ने विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने। इसके बाद बिहार की राजनीति में उनका कद बढता ही चला गया।
2004 में भागलपुर से जीतकर लोकसभा गए थे
2004 के लोकसभा चुनाव में सुशील मोदी भाजपा के टिकट पर भागलपुर से सांसद बने। 2005 में उन्होंने संसद सदस्यता से इस्तीफा दिया और विधान परिषद के लिए निर्वाचित होकर बिहार सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। सुशील मोदी 2005 से 2013 और 2017 से 2020 तक बिहार के वित्त मंत्री रह चुके हैं। 2020 में जब फिर से एनडीए की सरकार बनी तो सीएम नीतीश कुमार चाहते थे कि सुशील मोदी ही डिप्टी सीएम बनें। लेकिन, शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। कहा यह भी जा रहा है कि इस बार जो नीतीश कुमार एनडीए में फिर से शामिल हुए, उसके पीछे सुशील मोदी की अहम भूमिका थी।
शिवपाल यादव का बदायूं से चुनाव लड़ने से इनकार, बेटे आदित्य को उतारने का किया ऐलान
सपा महासचिव शिवपाल यादव ने बदायूं से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि अब नेतृत्व इस बारे में फैसला लेगा। शिवपाल ने अपने बेटे आदित्य को यहां से लड़ाने का ऐलान भी किया है।
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लोकतंत्र का रण: नए सिपहसालार,बनेंगे खेवनहार; नहीं दिखंगे जेटली, सुषमा, अहमद पटेल, मुलायम, पासवान जैसे दिग्गज
इस बार के लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ बदला-बदला है। ज्यादातर पार्टियां नए सूरमाओं की रणनीति के सहारे चुनावी चक्रव्यूह भेदने के लिए मैदान में हैं।
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