चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों के नाम बदले जाने को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पड़ोसी देश को आड़े हाथों लिया है। रक्षा मंत्री ने कहा कि ऐसा करने से जमीनी हकीकत नहीं बदलेगी।
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चीन का डेवलपमेंट सिस्टम दुनिया में कॉम्पिटिटिव प्रेशर कर रहा क्रिएट – India TV Hindi
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई ने शनिवार को कहा कि चीन की आर्थिक विकास प्रणाली या डेवलपमेंट सिस्टम दुनिया में कई प्रतिस्पर्धी दबाव पैदा कर रही है। इसके साथ ही उन्होंने वैश्विक व्यापार के विविधीकरण का हवाला देते हुए पिछले साल अमेरिका-चीन द्विपक्षीय व्यापार में हुई भारी गिरावट को एक पॉजिटिव संकेत बताया। भाषा की खबर के मुताबिक, ताई ने बीबीसी से एक इंटरव्यू में बताया कि जब डब्ल्यूटीओ की स्थापना हुई थी, उस वक्त दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं अलग थीं। तब से कई अर्थव्यवस्थाएं बढ़ी हैं।
चीन एक अच्छा उदाहरण
खबर के मुताबिक, चीन इसका अच्छा उदाहरण है। यह 2001 में डब्ल्यूटीओ में शामिल हुआ। उस समय इसकी उपस्थिति आज की तुलना में छोटी थी। ताई ने अबू धाबी में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की बैठक में अपने संबोधन में कहा कि चीन का आर्थिक विकास दुनिया भर में कई प्रतिस्पर्धी दबाव पैदा कर रहा है और संस्था में अब सुधार की जरूरत है। डब्ल्यूटीओ उन दबावों को दूर करने के लिए और अधिक कोशिश कर सकता है। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूटीओ में उन कॉम्पिटिटिव आर्थिक दबावों का समाधान खोजने की जरूरत है, जिन्हें कई लोग चीन और उसकी विशेष प्रणाली के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में महसूस कर रहे हैं।
अमेरिका-चीन के बीच निर्यात
ताई ने कहा कि 2023 में चीन के साथ अमेरिकी व्यापार में भारी गिरावट एक सकारात्मक घटनाक्रम हो सकता है। अमेरिकी वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल अमेरिकी चीनी वस्तुओं का आयात कुल 427 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 20 प्रतिशत की गिरावट है। चीन को अमेरिकी निर्यात भी 2023 में लगभग चार प्रतिशत घटकर लगभग 148 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया। इसे देखते हुए व्यापार घाटा घटकर 279 अरब डॉलर रह गया। नतीजा यह हो सकता है कि चीन 17 वर्षों में पहली बार अमेरिका को शीर्ष निर्यातक देश का अपना स्थान खो सकता है।
यूएस-चीन व्यापार में सबसे बड़ी गिरावट
साल 1995 में सीमा शुल्क द्वारा अपना रिकॉर्ड शुरू करने के बाद से यह यूएस-चीन व्यापार में सबसे बड़ी गिरावट है और यह गिरावट 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट या 2018-19 में यूएस-चीन व्यापार युद्ध की शुरुआत से भी अधिक है। हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने रिपोर्ट दी। दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के व्यापार विशेषज्ञ विलियम रेनश ने कहा कि पिछले साल अमेरिका-चीन व्यापार में गिरावट इस बात का संकेत प्रतीत होती है कि दोनों अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे से दूर जा रही हैं। लेकिन अगर आप दक्षिण पूर्व एशिया से संयुक्त राज्य अमेरिका में बढ़े हुए आयात को देखें, तो ऐसा प्रतीत होता है कि उस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा चीनी कंपनियों से आ रहा है।
PM मोदी का मुरीद हुआ ‘ड्रैगन’, चीनी मीडिया ने प्रधानमंत्री की शान में पढ़े कसीदे
नई दिल्ली: आमतौर पर भारत के खिलाफ बयानबाजी करने वाले चीन ने हाल के वर्षों में पहली बार भारत का लोहा माना है। चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने PM मोदी की तारीफ करते हुए लिखा है कि भारत एक आत्मविश्वास से भरा देश है जो अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ग्लोबल टाइम्स में फुडन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के डायरेक्टर झांग जियाडोंग ने लिखा है कि भारत आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ-साथ कूटनीति के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने आगे लिखा है कि भारत ने आर्थिक विकास और सोशल गवर्नेंस में शानदार नतीजे हासिल किए हैं।
पीएम मोदी की जमकर की तारीफ
ग्लोबल टाइम्स में लिखा गया है, ‘तीव्र आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ-साथ भारत अब रणनीतिक रूप से अधिक आश्वस्त हो गया है। भारत अब नेरेटिव बनाने और उसे विकसित करने में ज्यादा सक्रिय हो गया है। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है, उन्होंने अमेरिका, जापान, रूस और अन्य देशों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ भारत के संबंधों को बढ़ावा देने के लिए मल्टी अलायनमेंट स्ट्रेटेजी की वकालत की है। विदेश नीति को लेकर भी भारत की रणनीतिक सोच में बदलाव आया है और वह अब एक ज्यादा ताकतवर रणनीति की ओर बढ़ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत ने खुद को पश्चिम से दूर करके विकासशील देशों के साथ जोड़ लिया।
’सपने से हकीकत की ओर बढ़ा भारत’
जियाडोंग ने अपने लेख में आगे लिखा है, ‘मैंने हाल ही में दो बार भारत का दौरा किया था। इस दौरान मैंने पाया कि भारत की घरेलू और विदेशी स्थिति काफी बदल गई है। भारत ने इकोनॉमिक डिवेलपमेंट और सोशल गवर्नेंस में बढ़िया रिजल्ट हासिल किए हैं। भारत की पावर स्ट्रेटेजी सपने से हकीकत की ओर बढ़ गई है। इसकी अर्थव्यवस्था ने गति पकड़ ली है। इस बीच नई दिल्ली ने भी अर्बन गवर्नेंस में प्रगति की है। यहां धुंध अभी भी गंभीर है, लेकिन विमान से उतरते वक्त पहले जो गंध महसूस होती थी, वह अब गायब हो गई है। इससे पता चलता है कि नई दिल्ली में पर्यावरण भी बेहतर हुआ है।
पिछले कुछ सालों में भारत और चीन के रिश्तों में गिरावट आई है।
‘भारत अब विश्व गुरु बनना चाहता है’
जियाडोंग ने लिखा है, ‘राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भारत पश्चिम के साथ अपनी लोकतांत्रिक सहमति पर जोर देने से आगे बढ़ चुका। भारत अब राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से विश्व गुरू बनना चाहता है। भारत अब अपनी सांस्कृतिक परंपरा को न केवल अपने हितों को प्राप्त करने और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के प्रतीक के रूप में देखता है, बल्कि अब वह इसे एक महान शक्ति के रूप में भी देखता है। भारत सदैव अपने आप को विश्व शक्ति मानता आया है।
भारत और चीन के बीच 20वें दौर की हुई बात, इन मुद्दों पर हुई चर्चा
India-China Talks: भारत और चीन के बीच सोमवार (नौ अक्टूबर) और मंगलवार (10 अक्तूबर) को 20वें दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता हुई. विदेश मंत्रालय ने बुधवार (11 अक्टबूर) को बताया कि इसमें दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास लंबित मुद्दों के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान के लिए विचारों का खुलकर आदान-प्रदान किया.
उसने बताया कि दोनों पक्षों ने सैन्य राजनयिक माध्यमों से संवाद और वार्ता बनाए रखने पर सहमति जताई. वार्ता के दौरान कोई बड़ी सफलता मिलने का स्पष्ट संकेत नहीं मिला. दोनों देशों के बीच सैन्य वार्ता का इससे पहला दौर 13 और 14 अगस्त को हुआ था. विदेश मंत्रालय ने बताया कि इसमें लंबित मुद्दों के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान के लिए खुलकर विचारों का आदान-प्रदान किया गया.
विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?
कोर कमांडर स्तर की वार्ता का 20वां दौर एलएसी के पास भारतीय क्षेत्र में चुशुल-मोल्डो सीमा के पास आयोजित किया गया था.
विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘दोनों पक्षों ने पश्चिमी सेक्टर में एलएसी के पास लंबित मुद्दों के शीघ्र एवं आपस में स्वीकार्य समाधान के लिए स्पष्ट, खुलकर और रचानात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान किया. यह वार्ता दोनों देशों के राष्ट्रीय नेतृत्व के मुहैया कराए गए निर्देशों के अनुसार की गई. इस दौरान 13-14 अगस्त को हुई कोर कमांडर स्तर की बैठक के पिछले दौर में हुई प्रगति को आगे बढ़ाया गया.’’
बयान में कहा गया, ‘‘वे प्रासंगिक सैन्य और राजनयिक तंत्र के माध्यम से संवाद और वार्ता की गति को बनाए रखने पर सहमत हुए.’’विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘उन्होंने इस बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में जमीन पर शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता भी जताई.’’
मामला क्या है?
पूर्वी लद्दाख में कुछ बिंदुओं पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तीन साल से अधिक समय से गतिरोध बना हुआ है, लेकिन दोनों पक्षों ने व्यापक राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद कई स्थानों से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया है.
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भारत द्वारा प्रस्तावित इकोनॉमिक कोरिडोर से चीन को लगेगा झटका? जानें, जनता ने क्या कहा
नई दिल्ली: भारत ने अमेरिका और कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ बीते शनिवार को एक महत्वाकांक्षी भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप इकोनॉमिक कोरिडोर की घोषणा की। इस नये इकोनॉमिक कोरिडोर को कई लोग चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के विकल्प के रूप में देख रहे हैं। इस कोरिडोर की घोषणा अमेरिका, भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के नेताओं ने G-20 शिखर सम्मेलन से इतर संयुक्त रूप से की। इंडिया टीवी ने एक पोल के जरिए इस कोरिडोर को लेकर जनता की राय जानने की कोशिश की, जिसमें दिलचस्प नतीजे सामने आए।
अधिकांश लोगों ने माना, चीन को झटका लगेगा
इंडिया टीवी ने अपने पोल में जनता से सवाल पूछा था कि ‘भारत द्वारा प्रस्तावित इकोनॉमिक कोरिडोर से क्या चीन के BRI प्रोजेक्ट को लगेगा झटका?’ और ‘हां’, ‘नहीं’ एवं ‘कह नहीं सकते’ का विकल्प दिया था। पोल में हिस्सा लेने वाले कुल 6771 लोगों में से सिर्फ 7 फीसदी लोगों का मानना था कि इस कोरिडोर से चीन के BRI प्रोजेक्ट को झटका नहीं लगेगा। वहीं, 90 फीसदी लोगों ने इसे चीनी प्रोजेक्ट के लिए झटका करार दिया जबकि 3 फीसदी लोगों ने ‘कह नहीं सकते’ का विकल्प चुना। इस तरह 10में से 9 लोगों का मानना था कि नया कोरिडोर चीन के BRI प्रोजेक्ट के लिए एक झटका है।
पहल में शामिल होंगे 2 अलग-अलग गलियारे
बता दें कि भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप इकोनॉमिक कोरिडोर के इस इनीशिएटिव में 2 अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे, पूर्वी गलियारा जो भारत को पश्चिम एशिया से जोड़ता है और उत्तरी गलियारा जो पश्चिम एशिया को यूरोप से जोड़ता है। यह कोरिडोर क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुदृढ़ करेगा, व्यापार पहुंच बढ़ाएगा, व्यापार सुविधाओं में सुधार करेगा तथा पर्यावरणीय सामाजिक और सरकारी प्रभावों पर जोर को बढ़ावा देगा। इस पहल को विभिन्न देशों के नेताओं ने ‘ऐतिहासिक’ बताया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन शामिल थे।