सौरभ भारद्वाज ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट से अरविंद केजरीवाल को उसी तरह की राहत मिलेगी जिस तरह संजय सिंह को मिली है। उन्होंने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे
Source link
हाई कोर्ट
मोबाइल पर कॉल रिकॉर्डिंग करने को लेकर HC ने कहा- ये ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मोबाइल पर कॉल रिकॉर्डिंग करने को लेकर बड़ी बात कही है। हाई कोर्ट ने कहा है कि संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना टेलीफोन पर बातचीत रिकॉर्ड करना ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन है। अधिवक्ता वैभव ए.गोवर्धन ने शनिवार को बताया कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की एकल पीठ ने कहा है कि संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना टेलीफोन पर बातचीत रिकॉर्ड करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन है।
ये है मामला
हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता के एक मामले में महासमुंद की परिवार न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें साक्ष्य के रूप में मोबाइल फोन की रिकॉर्डिंग का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। अधिवक्ता गोवर्धन ने बताया कि याचिकाकर्ता (पत्नी) द्वारा गुजारा भत्ता देने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत आवेदन दायर किया गया था, जो 2019 से परिवार न्यायालय महासमुंद के समक्ष लंबित है।
गोवर्धन ने बताया कि याचिकाकर्ता ने इससे संबंधित साक्ष्य अदालत में पेश किए थे। दूसरी तरफ, प्रतिवादी (पति) ने याचिकाकर्ता (पत्नी) के चरित्र पर संदेह के आधार पर गुजारा भत्ता देने से मना किया। उसने परिवार न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दाखिल किया और कहा कि याचिकाकर्ता की बातचीत उसके मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड की गई है।
प्रतिवादी (पति) उस बातचीत के आधार पर अदालत के सामने उससे जिरह करना चाहता है। अदालत ने उस आवेदन को स्वीकार कर लिया और अनुमति दे दी। अधिवक्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता ने 21 अक्टूबर 2021 के उस आदेश से व्यथित होकर हाई कोर्ट का रुख किया और इसे रद्द करने की प्रार्थना की।
उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि यह उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि निचली अदालत ने आवेदन की अनुमति देकर कानूनी त्रुटि की है। यह आदेश याचिकाकर्ता की निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना प्रतिवादी द्वारा बातचीत रिकॉर्ड की गई थी, इसलिए इसका उपयोग उसके खिलाफ नहीं किया जा सकता।
गोवर्धन ने बताया कि प्रतिवादी के अधिवक्ता ने कहा कि प्रतिवादी (पति) याचिकाकर्ता (पत्नी) के खिलाफ आरोपों को साबित करने के लिए सबूत पेश करना चाहता है, इसलिए उसे मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड की गई बातचीत को प्रस्तुत करने का अधिकार है। उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति राकेश मोहन पाण्डेय की एकल पीठ ने मामले में पांच अक्टूबर 2023 को सुनवाई के बाद महासमुंद परिवार न्यायालय द्वारा पारित 21 अक्टूबर 2021 के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने माना है कि संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना टेलीफोन पर बातचीत रिकॉर्ड करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके ‘निजता के अधिकार’ का उल्लंघन है। (इनपुट: भाषा)
ये भी पढ़ें:
दिल्ली: क्रिकेट वर्ल्ड कप से जुड़े सट्टेबाजी गिरोह का भंडाफोड़, 3 गिरफ्तार
‘आज मैं चुप हूं, अगली बार…’, जब केंद्र से बोला सुप्रीम कोर्ट, क्या है पूरा मामला?
Supreme Court On Judges Appointments: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (26 सितंबर) को न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी पर निराशा जाहिर करते हुए कहा कि कॉलेजियम की 70 सिफारिशें बीते नवंबर से अब तक सरकार के पास अटकी हुई हैं और अटॉर्नी जनरल से इस मुद्दे को हल करने के लिए उनके कार्यालय का उपयोग करने को कहा.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ की ओर से मामला उठाए जाने के बाद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए लंबित सिफारिशों पर निर्देश लेने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा.
‘आज मैं चुप हूं, क्योंकि…’
सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने वेंकटरमणी को बताया, “आज मैं चुप हूं, क्योंकि अटॉर्नी जनरल ने बहुत कम समय मांगा है, अगली बार मैं चुप नहीं रहूंगा. इन मुद्दों का समाधान देखने के लिए अपने कार्यालय का उपयोग करें.” वेंकटरमणी के निर्देश के लिए एक हफ्ते का समय मांगने पर जस्टिस कौल ने कहा, “मैंने बहुत कुछ कहने के बारे में सोचा था, लेकिन अटॉर्नी जनरल क्योंकि केवल सात दिन का समय मांग रहे हैं, इसलिए मैं खुद को रोक रहा हूं.”
जस्टिस कौल ने कहा कि न्यायपालिका सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को लाने की कोशिश करती है, लेकिन लंबित मामलों के कारण जिन वकीलों के नाम न्यायाधीश बनाने के लिए अनुशंसित किए गए थे, उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से अच्छे उम्मीदवार न्यायाधीश बनने के लिए अपनी सहमति वापस लेते हैं, वह “वास्तव में चिंताजनक” है. उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत नियमित अंतराल पर नियुक्ति प्रक्रिया की निगरानी करेगी.
कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति अतीत में सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच टकराव की प्रमुख वजह बन गई है और इस तंत्र की विभिन्न क्षेत्रों से आलोचना हो रही है.
’70 सिफारिशें लंबित हैं’
पीठ ने कहा, “पिछले सप्ताह तक 80 सिफारिशें लंबित थीं, जब 10 नामों को मंजूरी दी गई. अब, यह आंकड़ा 70 है, जिनमें से 26 सिफारिशें न्यायाधीशों के स्थानांतरण की हैं, सात सिफारिशें दोहराई गई हैं, नौ कॉलेजियम को वापस किए बिना लंबित हैं और एक मामला संवेदनशील हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्ति का है.” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये सभी सिफारिशें पिछले साल नवंबर से लंबित हैं.
जस्टिस कौल ने कहा कि लंबित सिफारिशों पर कोई ठोस कार्रवाई सात महीनों से नहीं हुई है और मामूली प्रक्रियागत कदम उठाने से यह काम हो जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति को देखने वाले उच्चतम न्यायालय का हिस्सा जस्टिस कौल ने कहा, “हमने चीजों को आगे बढ़ाने और बारीकी से निगरानी करने का प्रयास किया है. मैंने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि हर 10-12 दिन में यह मामला उठाया जाएगा, ताकि मेरे पद छोड़ने (25 दिसंबर) से पहले पर्याप्त काम हो जाए.”
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ कार्रवाई की मांग
शीर्ष अदालत बेंगलुरु के एडवोकेट्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2021 के फैसले में अदालत की ओर से निर्धारित समय-सीमा का कथित तौर पर पालन नहीं करने के लिए केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान एक अन्य याचिकाकर्ता एनजीओ ‘कॉमन कॉज’ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने सरकार के पास लंबित सिफारिशों से संबंधित एक चार्ट प्रस्तुत किया.
‘सिफारिशें लंबित होने से नाम वापस ले लिए गए’
उन्होंने कहा कि इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि एक समय में कॉलेजियम की ओर से नामों के एक बैच की सिफारिश किए जाने के बाद भी सरकार इसे अलग कर देती है और चुनिंदा नियुक्तियां करती है. उन्होंने कहा, “इससे वकीलों का मनोबल प्रभावित होता है और मेरी जानकारी के अनुसार, उनमें से कई ने अपनी सहमति वापस ले ली है.” जस्टिस कौल ने भूषण के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि नौ ऐसे नाम हैं, जहां सरकार ने नामों को वापस न करके लंबित रखा है.
जस्टिस कौल ने इस मामले में आगे की सुनवाई नौ अक्टूबर को निर्धारित करते हुए कहा, “इस बात से सहमत हूं कि जिस तरह से अच्छे उम्मीदवार न्यायाधीश बनने के लिए अपनी सहमति वापस लेते हैं वह वाकई चिंताजनक है. हम सर्वोत्तम प्रतिभाओं को लाने का प्रयास करते हैं, लेकिन मामला लंबित होने के कारण जिन वकीलों के नाम न्यायाधीश बनाने के लिए अनुशंसित किए गए थे, उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया है.”
ये भी पढ़ें:
‘आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में…’, UNGA में एस जयशंकर ने चीन को लताड़ा, कनाडा विवाद की तरफ भी इशारा