सौरभ भारद्वाज ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट से अरविंद केजरीवाल को उसी तरह की राहत मिलेगी जिस तरह संजय सिंह को मिली है। उन्होंने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे
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UAPA मामले में शरजील इमाम ने मांगी जमानत, हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा – India TV Hindi
राजद्रोह और गैरकानूनी गतिविधियों (UAPA) के आरोपों समेत साल 2020 के सांप्रदायिक दंगों के मामले में छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम जेल में है। इस मामले में शरजील इमाम ने जमानत याचिका दायर की है। दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम की याचिका पर सोमवार को पुलिस से जवाब मांगा है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस मनोज जैन की पीठ ने इमाम की जमानत याचिका खारिज करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उसकी याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया। आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि निचली अदालत ने उसे गलत तरीके से जमानत देने से इनकार कर दिया जबकि वह इस मामले में दोषी ठहराए जाने की सूरत में मिलने वाली अधिकतम सजा की आधी से अधिक अवधि जेल में काट चुका है।
चार साल से जेल में है शरजील इमाम
अभियोजन के अनुसार, शरजील इमाम ने 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया और 16 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण दिए जहां उसने असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से अलग करने की धमकी दी। दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने इस मामले में इमाम पर मुकदमा दर्ज किया। शुरुआत में राजद्रोह के अपराध में मुकदमा दर्ज कया गया और बाद में विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम की धारा 13 हटा ली गयी। वह इस मामले में 28 जनवरी 2020 से हिरासत में है। इमाम ने निचली अदालत में कहा था कि वह चार साल से हिरासत में है, जबकि यूएपीए की धारा 13 के तहत इस अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर अधिकतम सजा सात साल है।
दिल्ली दंगे भड़काने के आरोप
गौरतलब है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436-ए के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा की आधी से अधिक सजा काट ली है, तो उसे हिरासत से रिहा किया जा सकता है। निचली अदालत ने 17 फरवरी को इमाम को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष के मामले की सुनवाई के बाद ‘‘असाधारण परिस्थितियों’’ में किसी आरोपी की हिरासत को आगे की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है। निचली अदालत ने 2022 में इमाम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (शत्रुता को बढ़ावा देना), 153बी (राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालना वाला) और 505 (शरारत को बढ़ावा देने वाले बयान देना) और यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए दंड) के तहत आरोप तय किए थे। चार्जशीट में इमाम के खिलाफ आरोपों पर गौर करते हुए अदालत ने कहा था कि उन्होंने दिल्ली, अलीगढ़, आसनसोल और चकबंद में अलग-अलग भाषण दिए, जिससे लोग भड़क गए और अंततः दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे हुए। इस मामले पर अगली सुनवाई अब अप्रैल में होगी।
शरजील इमाम के वकील ने दी ये दलीलें
छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से 2020 में यहां हुए सांप्रदायिक दंगों के पीछे की कथित बड़ी साजिश से जुड़े गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) मामले में जमानत देने का आग्रह किया है। उनके वकील ने उनके कथित भड़काऊ भाषणों के बारे में अदालत को बताया और तर्क दिया कि उन्होंने किसी भी तरह की हिंसा का आह्वान नहीं किया था क्योंकि व्यवधान डालने का उनका तरीका ‘पूरी तरह से गांधीवादी’ था। वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस मनोज जैन की पीठ के समक्ष दलील दी कि इमाम के खिलाफ यूएपीए के अनुसार किसी भी ‘आतंकवादी कृत्य’ में शामिल होने या सह-आरोपियों के साथ साजिश रचने का कोई अपराध नहीं बनता है।
बता दें कि 1 अप्रैल, 2022 को निचली अदालत ने मौजूदा मामले में इमाम को जमानत देने से इनकार कर दिया था। इस मामले में इमाम को 25 अगस्त, 2020 को गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में अगली सुनवाई 19 मार्च को होगी।
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सरकारी नौकरी: झारखंड हाईकोर्ट में असिस्टेंट भर्ती का नोटिफिकेशन जारी, 20 फरवरी से करें आवेदन, सैलरी 1 लाख से ज्यादा
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2 घंटे पहले
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झारखंड हाई कोर्ट की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी कर कई पदों पर भर्ती निकली है। उम्मीदवार ऑफिशयल वेबसाइट jharkhandhighcourt.nic.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।
एजुकेशनल क्वालिफिकेशन :
- उम्मीदवारों का किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/संस्थान से ग्रेजुएट होना जरूरी है।
- कंप्यूटर का नॉलेज और टाइपिंग आना चाहिए।
आयु सीमा :
- उम्मीदवारों की उम्र 21 साल से लेकर 35 साल के बीच होनी चाहिए।
- आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अधिकतम उम्र सीमा में छूट दी जाएगी।
फीस :
- जनरल, ईडब्ल्यूएस, बीसी-I, बीसी-II : 500 रुपए
- एससी और एसटी : 125 रुपए
सैलरी :
44900 – 142400 रुपए प्रतिमाह।
ऐसे करें आवेदन :
- ऑफिशियल वेबसाइट jharkhandhighcourt.nic.in पर जाएं।
- होमपेज पर सम्बंधित भर्ती लिंक पर क्लिक करें।
- रजिस्ट्रेशन करके फॉर्म भरें।
- फीस का भुगतान करके फॉर्म सबमिट करें।
- फॉर्म डाउनलोड करें। इसका प्रिंट लेकर रखें।
‘पोस्ट को हटाएं और निर्देश का पालन करें’, राहुल ने ऐसा क्या किया कि कोर्ट को कहनी पड़ी ये बात?
Rahul Gandhi: दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार (21 दिसंबर) को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट हटाने को कहा. इस पोस्ट में दुष्कर्म और हत्या का शिकार बनी एक दलित लड़की की पहचान का खुलासा किया गया था. इस बच्ची की हत्या 2021 में कर दी गई थी. अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल से कहा कि वह अपने इस पोस्ट को तुरंत डिलीट करें या हटाएं, ताकि दुनियाभर में बच्ची की पहचान सुरक्षित रह सके.
दरअसल, सोशल मीडिया प्लटेफॉर्म एक्स पर किए गए एक ट्वीट में उन्होंने 9 साल की एक दलित बच्ची के पैरेंट्स की तस्वीर पोस्ट की. इस लड़की की मौत 1 अगस्त, 2021 को संदिग्ध परिस्थितियों में हो गई थी. पैरेंट्स का आरोप था कि बच्ची के साथ दुष्कर्म किया गया और फिर उसकी हत्या की गई है. दक्षिण पश्चिम दिल्ली के ओल्ड नंगल गांव में एक श्मशान घाट के पुरोहित ने इस घिनौनी हरकत को अंजाम दिया और फिर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था.
सस्पेंड हो गया था राहुल का अकाउंट
राहुल गांधी के जरिए किए गए इस पोस्ट की वजह से उनके सोशल मीडिया अकाउंट को कुछ समय के लिए सस्पेंड भी कर दिया गया था. हालांकि, कुछ वक्त बाद अकाउंट फिर से रिस्टोर हो गया. एक्स ने राहुल गांधी की इस पोस्ट को भारत में ब्लॉक कर दिया, मगर दुनिया के बाकी हिस्सों से इसे एक्सेस किया जा सकता है. यही वजह है कि राहुल से कहा गया है कि वे अपनी इस पोस्ट को हटा लें, क्योंकि उनके ऐसा नहीं करने से दुनिया में पीड़िता की पहचान उजागर हो रही है.
अदालत ने क्या कहा?
कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि इस पोस्ट को एक्स ने भले ही अपनी साइट से हटा दिया है. मगर भारत के बाहर ये अब भी उपलब्ध है. इसलिए राहुल के वकील से इसे हटाने को कहा गया. अदालत ने कहा, ‘अगर हमें पीड़िता की पहचान उजागर करने से रोकना है, जो कि जरूरी है तो दुनिया भर में इसे हटाया जाए.’
राहुल गांधी की तरफ से वकील तरन्नुम चीमा अदालत में पेश हुईं. अदालत ने वकील से कहा, ‘आप इसे हटाते क्यों नहीं हैं? कृपया पोस्ट हटा लें क्योंकि दुनिया भर से इसे हटाया जाना चाहिए. कृपया निर्देश का पालन करें, अन्यथा इसे दुनियाभर में मीडिया सार्वजनिक कर देगा. ऐसा नहीं किया जा सकता. कृपया इसे हटाएं.’
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बेटे की चाहत में रचाई दूसरी शादी, फिर पहली पत्नी के साथ रहने लगा, बॉम्बे हाई कोर्ट का अहम फैसला
Bombay High Court On Maintenance To 2nd Wife: बेटे की चाहत में दो शादियां करके दूसरी पत्नी से अलग रहने वाले एक शख्स को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है. अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में न्यायालय ने साफ किया है कि पत्नी का लंबी अवधि तक पति से अलग रहना, उसे गुजारा भत्ता (मेंटेनेंस) न देने का आधार नहीं हो सकता है. जस्टिस राजेश पाटील ने पत्नी की अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है.
इसके पहले मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने 2010 में पत्नी को मेंटेंस के रूप में 2300 रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. पति ने मैजिस्ट्रेट के आदेश को सत्र न्यायालय में चुनौती दी थी. पति ने दलील दी कि पत्नी लंबे समय से उससे अलग रह रही है. उसके बाद सेशन कोर्ट ने 25 जुलाई, 2019 को मैजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया था. सेशन कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी ने हाई कोर्ट में अपील की थी जिस पर हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है.
बेटे की चाहत में की थी दूसरी शादी
दरअसल, शख्स ने साल 1989 में दूसरी शादी की थी. महिला का आरोप है कि जब पहली शादी के कुछ साल तक लड़का नहीं हुआ तो उसने दूसरी शादी रचा ली. दूसरी पत्नी से उसे एक बेटा हो गया. कुछ वक्त बाद समझौते से पहली पत्नी भी साथ रहने लगा. सबकुछ अच्छा चल रहा था कि तभी पहली पत्नी को भी बेटा हो गया. उसके बाद दूसरी पत्नी को दूसरा बेटा हो गया. इसके बाद यहीं से पति-पत्नी में अनबन शुरू हो गई.
मामला यूं है कि दूसरी पत्नी का आरोप है कि पहली पत्नी के कहने पर उसे घर से निकाल दिया गया. बाद में भरण-पोषण के लिए भत्ता भी देने से इनकार कर दिया गया. इसके बाद महिला ने हार नहीं मानी और लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी.
उस व्यक्ति ने 1989 में ‘दूसरी शादी’ की थी, जबकि उसकी पहली शादी कानूनी रूप से बरकरार थी. शख्स की 55 साल की दूसरी पत्नी ने कोर्ट में दावा किया कि उसके पति ने 1997 में उसे घर से निकाल दिया था. उसने शादी से पहले यह विश्वास दिलाया था कि अपनी पहली पत्नी को इसलिए तलाक दे दिया था, क्योंकि वह बेटा जन्म नहीं दे पा रही थी.
2500 रुपये देना होगा गुजारा भत्ता
न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की हाईकोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ ने 14 दिसंबर को पत्नी के भरण-पोषण के लिए कानूनी प्रावधानों के तहत 2,500 रुपये के मासिक भरण-पोषण का आदेश दिया है. हाई कोर्ट ने महिला को गुजारा भत्ता राशि बढ़ाने के लिए नई याचिका दायर करने की भी अनुमति दी है.