रांची: उत्तराखंड सुरंग से सुरक्षित निकले 15 मजदूर और उनसे मिलने गए 12 परिजन इंडिगो एयरलाइंस से शुक्रवार की रात रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर पहुंचे. एयरपोर्ट पर उनका स्वागत झारखंड के श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता, सांसद संजय सेठ, सांसद महुआ माजी, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर समेत अन्य नेताओं ने किया. इसके बाद ये मंत्री सत्यानंद भोक्ता के साथ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात करने सीएम आवास पहुंचे. सभी मजदूर व उनके परिजन गेस्ट हाउस में विश्राम करेंगे. आपको बता दें कि 408 घंटे की जंग के बाद झारखंड के सभी 15 मजदूर 17 दिनों के बाद सुरंग से बाहर निकले थे. इसके बाद उन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था. इसके बाद वे झारखंड लौटे. झारखंड सरकार इन्हें एयरलिफ्ट कर रांची लायी. रांची एयरपोर्ट से ये श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता के साथ सीएम आवास पहुंचे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की. रात्रि विश्राम ये गेस्ट हाउस में करेंगे.
उत्तराखंड सुरंग हादसा
रेस्क्यू ऑपरेशन में काम करनेवालों को मिलेगा 50 हजार का इनाम, धामी सरकार ने किया ऐलान
देहरादून : उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग हादसे में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए जिस जज्बे के साथ राहत और बचाव दल ने काम किया, अब उन्हें सरकार की ओर से इनाम दिया जाएगा। उत्तराखंड के सीएम दफ्तर की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक राहत और बचाव दल में शामिल कर्मचारियों को उत्तराखंड सरकार 50 हजार रुपये का इनाम देगी।
मजदूरों को ऋषिकेश एम्स लाया गया
इस बीच सिलक्यारा सुरंग से निकाले गए मजदूरों को हेलीकॉप्टर से बुधवार को ऋषिकेश AIIMS लाया गया जहां उनका मेडिकल चेकअप हो रहा है। भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए सभी 41 मजदूरों को चिन्यालीसौड़ से एम्स ऋषिकेश लाया गया है।सुरंग से बाहर निकाले जाने के बाद उन्हें सिलक्यारा से 30 किलोमीटर दूर स्थित चिन्यालीसौड़ अस्पताल ले जाया गया था जहां उन्हें डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया था । सभी मजदूरों स्वस्थ हैं लेकिन दो हफ्ते से ज्यादा वक्त तक सुरंग में फंसे रहने के कारण संभावित स्वास्थ्य परेशानियों के मद्देनजर उन्हें एम्स ऋषिकेश लाया गया है।
सीएम धामी ने मजदूरों का लिया हालचाल
इससे पहले एम्स ऋषिकेश के एक अधिकारी ने बताया कि श्रमिकों को पहले ट्रॉमा वार्ड में ले जाया जाएगा। उन्होंने बताया कि वहां से उन्हें 100 बिस्तरों वाले इमरजेंसी वार्ड में ट्रांसफऱ कर दिया जाएगा जहां उनके स्वास्थ्य के सभी मानकों की जांच की जाएगी। उन्होंने बताया कि अस्पताल में मजदूरों के मेडिकल चेकअप के लिए सभी सुविधाएं और डॉक्टर मौजूद हैं । इससे पहले, चिन्यालीसौड़ अस्पताल में मजदूरों से मिलकर उनका हालचाल लेने के बाद मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि सभी लोग स्वस्थ और प्रसन्न हैं लेकिन डॉक्टरों के परामर्श पर उन्हें जांच के लिए एम्स ऋषिकेश भेजा जा रहा है । चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही साढ़े चार किलोमीटर लंबी सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह जाने से उसमें 41 श्रमिक फंस गए थे जिन्हें युद्धस्तर पर चलाए गए बचाव अभियान के बाद मंगलवार को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। (इनपुट-भाषा)
‘आज असली दिवाली…’, सुरंग से बाहर आए श्रमिक तो बोले घरवाले, जानें क्या कुछ कहा?
Uttarkashi Tunnel Rescue Operation Successful: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है. कुछ श्रमिकों के घरवालों ने कहा है कि यह पल उनके लिए दिवाली जैसा है.
दरअसल, 12 नवंबर को जब सुरंग का एक हिस्सा ढहने के कारण श्रमिक अंदर फंस गए थे, उस दिन ही देश में दिवाली का त्योहार मनाया जा रहा था. यह घटना उस दिन तड़के 5.30 बजे हुई थी.
एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के मंजीत लाल के पिता चौधरी ने अपने छोटे बेटे से 17 दिन बाद मिलने के बाद कहा, ”आज हमारे लिए असली दिवाली है.” उनका बेटा जब सुरंग में था तब उन्होंने उससे दो बार बात भी की थी.
‘पहाड़ ने अपनी गोद खोल दी…’
मुंबई में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर अपने बड़े बेटे को खो चुके चौधरी ने कहा, ”आखिरकार वह (बेटा) बाहर आ गया… पहाड़ ने आखिरकार आज मेरे बेटे और अन्य लोगों को बाहर निकालने के लिए अपनी गोद खोल दी. मैं उनके लिए कपड़े लाया हूं, मैं उन्हें धुले हुए कपड़ों में देखना चाहता हूं.”
बाहर आए श्रमिक ने कहा- वह एक अंधेरी जगह थी और हम…
चौधरी के बेटे मंजीत लाल ने उन्हें बताया कि श्रमिकों के एक-दूसरे के साथ रहने और गब्बर सिंह नेगी की ओर से लगातार मनोबल बढ़ाए जाने से उन्हें जिंदा बचे रहने में मदद मिली. चौधरी ने अपने बेटे के हवाले से कहा, ”वह एक अंधेरी जगह थी और हम रात में सो नहीं पा रहे थे. हम लगातार एक-दूसरे से बात कर रहे थे.”
मंजीत को करीब 30 किलोमीटर दूर चिन्यालीसौड़ में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) ले जाया गया है, जहां उनकी गहन चिकित्सा जांच की जाएगी और उसे निगरानी में रखा जाएगा.
‘…सुरंग से बाहर आने वाले आखिरी व्यक्ति’
51 वर्षीय गब्बर सिंह नेगी साथी कर्मचारियों से कहते रहे हैं कि वे धैर्य न खोएं क्योंकि बचावकर्मी उन्हें बाहर निकालने के मिशन पर हैं. उन्होंने उनसे वादा किया था कि वह सुरंग से बाहर आने वाले आखिरी लोगों में से एक होंगे. एंबुलेंस में उनके साथ यात्रा करते समय उनके भाई जयमल सिंह नेगी ने कहा, ”वह बाहर आने वाले आखिरी व्यक्ति थे. जब वो बाहर आये तब भी मुस्कुरा रहे थे.”
‘ये हमारे लिए दिवाली तरह’
उत्तराखंड में कोटद्वार जिले के जयमल 12 नवंबर (दिवाली के दिन) शाम को यह सुनकर सुरंग पर पहुंचे थे कि उनके भाई सुरंग में फंसे लोगों में से हैं. उन्होंने कहा कि उनके भाई ने कभी उम्मीद नहीं खोई और सुरंग के अंदर यह आसान नहीं था. नेगी ने रुंधी आवाज में कहा, ”यह हमारे लिए दिवाली की तरह है. मैं आखिरकार उन्हें देख सका.”
जयमल नेगी ने कहा कि पिछले 17 दिनों में उन्होंने अपना ज्यादातर समय सुरंग के बाहर ही भाई के इंतजार में बिताया. उन्होंने कहा कि वह सुरंग के बाहर प्रवेश द्वार पर टकटकी लगाए रहे. उन्होंने कहा कि बचाव में देरी हुई लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं खोई थी.
श्रमिकों ने अपनों से की बात
झारखंड के सुनील ने फोन पर बात करते हुए कहा कि भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ली और उनके भाई को बचाया जा सका. वह सिलक्यारा में डेरा डाले हुए थे. सुरंग से बाहर आने के कुछ देर बाद ओडिशा के श्रमिक विश्वेश्वर नायक ने अपनी पत्नी सुकांति और मां से हाथ हिलाते हुए वीडियो कॉल पर बात की. उन्होंने उनसे कहा, ”मैं बिल्कुल ठीक हूं. मैं अब अस्पताल जा रहा हूं और कल सुबह बात करूंगा.”
बिश्वेश्वर अपने इलाके के कुछ अन्य लोगों के साथ चार महीने पहले काम पर शामिल हुए थे. मयूरभंज जिले के कुलडीहा गांव में 25 वर्षीय राजू नायक की दादी अपने पोते को वीडियो कॉल पर देखकर रो पड़ीं. उन्होंने कहा, ”एक बार जब वह घर वापस आ जाएगा तो मैं उसे कहीं भी नहीं जाने दूंगी. उन्होंने कहा कि राजू के फंसने के बाद हमने खाना बनाना बंद कर दिया था.
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सेना ने संभाली कमान, रेस्क्यू में आई नई जान! फिर भी ‘लापरवाही’ से भरे ये आठ सवाल कर रहे परेशान
Uttarakhand Tunnel Collapse News: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हुए सुरंग हादसे में 41 मजदूर दो हफ्ते से ज्यादा वक्त से फंसे हुए हैं. जिस जगह मजदूर फंसे हुए हैं. वहां ना रोशनी है, ना ऑक्सीजन और ना खुली हवा. इसके बाद भी वो 41 मजदूर योद्धा की तरह हिम्मत बांधे हुए हैं, जिन्हें बचाने के लिए अब सेना ने मोर्चा संभाला हुआ है. दरअसल, मजदूरों को बाहर निकालने के लिए अब सेना को बुला लिया गया है, जो मैनुअल ड्रिलिंग के जरिए रेस्क्यू करेगी.
वहीं, दूसरी ओर सुरंग में फंसे मजदूरों के परिजनों का सब्र टूटने लगा है, जिन्हें हर दूसरे दिन एक नई तारीख बताई जा रही है. उत्तरकाशी की ये सुरंग एक अनसुलझी गुत्थी बन गई है, जिसे सुलझाना तो दूर उसके पास तक कोई पहुंच नहीं पाया है. अमेरिका से आई ऑगर मशीन फेल हो चुकी है. विदेशी एक्सपर्ट की हिम्मत जवाब दे चुकी है. यही वजह है कि अब सुरंग से मजदूरों को निकालने के लिए सेना को मोर्चा संभालना पड़ा है.
सेना मजदूरों को कैसे बाहर निकालेगी?
भारतीय सेना मैनुअल ड्रिलिंग के जरिए रास्ता बनाने का काम करेगी, लेकिन मैनुअल ड्रिलिंग से पहले ऑगर मशीन के फंसे हुए शाफ्ट और ब्लेड्स को निकालना होगा, क्योंकि मशीन के टुकड़े अगर सावधानी से नहीं निकाले गए तो इससे सुरंग में बिछाई गई पाइपलाइन टूट सकती है. उत्तराखंड सरकार के सचिव और नोडल अधिकारी नीरज खैरवाल ने कहा कि पाइप के भीतर अभी ऑगर का 13.09 मीटर ही हिस्सा बचा रह गया है. जिसे काटकर निकाला जाना है. आज देर रात या कल सुबह तक ऑगर का फसा हुआ हिस्सा काट के पाइप से बाहर निकाल लिया जाएगा.
यानी जिस ऑगर मशीन को मजूदरों को निकालने के लिए बुलाया गया था. वहीं अब सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है. लेकिन जिस तरह से सेना ने कमान संभाली है. उससे रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी आई है, क्योंकि जबसे ऑगर मशीन खराब हुई थी. रेस्क्यू ऑपरेशन ठप्प पड़ा था. सेना के जवान अपने साथ कुछ मशीन भी लेकर आए हैं.
दो प्लान पर हो रहा काम
सुरंग में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए दो प्लान पर काम हो रहा है. एक तरफ सेना मैनुअल ड्रिलिंग कर रही है. तो दूसरी तरफ प्लान बी के तहत वर्टिकल ड्रिलिंग कर मजदूरों को रेस्क्यू करने की तैयारी है. इसके लिए BRO ने करीब डेढ़ किलोमीटर की सड़क बनाई है और अब इसी सड़क के जरिए कई टन वजनी मशीन दो जेसीबी की मदद से लाई गई हैं.
दरअसल, 21 नवंबर के बाद से टनल में हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग की जा रही थी. इसमें काफी हद कामयाबी भी मिली है. 60 मीटर के हिस्से में से 47 मीटर तक ड्रिलिंग के जरिए पाइप डाला जा चुका है. मजदूरों तक करीब 10-12 मीटर की दूरी रह गई थी, लेकिन तभी ड्रिलिंग मशीन के सामने सरिया आ गई और मशीन खराब हो गई.
अब वर्टिकल ड्रिलिंग के जरिए रेस्क्यू होना है. जिसे सतलुज विद्युत निगम लिमिटेड यानी SVNL अंजाम देगा. हालांकि इस काम में बहुत खतरा है, क्योंकि नीचे टनल में मजदूर हैं ऊपर से बड़ा होल कर नीचे जाने के लिए रास्ता बनाया जाना है. इसमें काफी मलबा गिरेगा, अगर थोड़ी भी गलती हुई तो दांव उलटा पड़ सकता है और सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें कितना वक्त लगेगा, ये भी साफ नहीं है.
मजदूरों का परिवार परेशान
सुरंग से मजदूरों के बाहर आने की तारीख बदल रही है. इंतजार बढ़ रहा है और अब मजदूरों के परिजनों के सब्र भी जबाव देने लगा है. सुरंग में फंसे मजदूर राजेंद्र के पिता श्रवण बेदिया ने कहा कि हम लोगों की सांस अटक गई है. अब जब बेटा वापस आएगा, तभी खा-पी सकेंगे. वही मेरे जीवन का सहारा है उन्होंने कहा कि वे विकलांग हैं और अपने बेटे पर ही आश्रित भी हैं. किसी को घटना स्थल जानकारी के लिए भेज भी नहीं सकते क्योंकि उनके पास इतना पैसा नही की वे खर्च उठा सके. ऐसा ही हाल बाकी के मजदूरों के परिवार का भी है.
12 नवंबर से फंसे हैं मजदूर
दरअसल, 12 नवंबर, सुबह 5.30 बजे यही वो वक्त था जब सिल्क्यारा टनल ढह गई थी और 41 मजदूर सुरंग में दब गए. तब से कई रेस्क्यू टीम ऑपरेशन में जुटी है. लेकिन अब तक मजदूरों को बाहर नहीं निकाल पाई है. ये सवाल इसलिए है कि सरकार ने सिस्टम की पूरी ताकत लगा दी है. स्थानीय पुलिस, प्रशासन, NDRF, SDRF, ITBP, रेल विकास निगम लिमिटेड, ONGC, भारतीय वायु सेना, भारतीय सेना, BRO, NHAI, टेहरी जल विद्युत विकास निगम और सुरंग निर्माण के कई एक्सपर्ट इस मिशन में जुटे हैं. लेकिन सभी के हाथ खाली हैं.
उठ रहे ये आठ सवाल
वहीं, अब सवाल उठने लगे हैं कि आखिर इतने रेस्क्यू प्लान पर काम करने के बाद भी मजदूर बाहर क्यों नहीं आ पाए हैं. वहीं कई सवाल रेस्क्यू करने के तरीके पर भी उठ रहे हैं.
- पहला सवाल- ये कि वर्टिकल ड्रिलिंग पहले शुरू क्यों नहीं की गई?
- दूसरा सवाल- ड्रिलिंग मशीनों के रिप्लेसमेंट पार्ट्स के लिए घंटों का इंतजार क्यों करना पड़ा?
- तीसरा सवाल- रेस्क्यू ऑपरेशन की सही प्लानिंग क्यों नहीं की गई?
- चौथा सवाल- बचाव की रणनीति में बार-बार बदलाव क्यों हुए?
- पांचवां सवाल- बचाव कार्य के लिए अब भी विदेशी विशेषज्ञ और मशीनों पर निर्भर क्यों रहना पड़ रहा है?
- छठा सवाल- अलग-अलग अफसर रेस्क्यू की अलग-अलग डेडलाइन क्यों दे रहे हैं?
- सातवां सवाल- बिना उचित अध्ययन के सुरंग निर्माण क्यों शुरू किया गया था?
- आठवां सवाल- मजदूरों के परिवार को स्थिति के बारे में ठीक से जानकारी क्यों नहीं दी जा रही?
दरअसल, जिसके जो दिमाग में आता है. वैसे ही खड्डे खोद रहा है, जबकि टनल के अंदर की स्थिति क्या है. ये तक किसी को मालूम नहीं है, जिसे समझने के लिए अब जाकर टनल के अंदर ड्रोन से मैपिंग की जा रही है. ये बात समझ आती है कि रेस्क्यू ऑपरेशन में परेशानी आ रही है. मलबे में भारी पत्थरों की वजह से ड्रिलिंग रोकनी पड़ रही है. लेकिन सवाल इस बात का है कि पहले हुए हादसों से कोई सीख क्यों नहीं ली.
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क्या सिलक्यारा सुरंग में फंसे लोगों को बचाने में लगेगा ज्यादा समय? एक्सपर्ट्स से समझिए मामला
Silkyara Tunnel Rescue Operation: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए अभियान चल रहा है लेकिन इस बीत अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है.
विशेषज्ञों ने शनिवार (25 नवंबर) को बताया कि सुरंग में बड़े पैमाने पर बचाव अभियान के 14वें दिन बरमा मशीन खराब होने से अब इस प्रक्रिया में ज्यादा समय लग सकता है क्योंकि यह ऑपरेशन तकनीकी रूप से और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है.
एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन ने कहा कि अब धैर्य की जरूरत है क्योंकि बचावकर्मियों को किसी दबाव में नहीं आना चाहिए. उन्होंने कहा कि स्थिति युद्ध जैसी है और ऑपरेशन को लेकर भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है.
सुरंग के भीतर टूटी बरमा मशीन, अब क्या होगा?
रिपोर्ट के मुताबिक, बचाव अभियान में ऑगर (बरमा) मशीन का इस्तेमाल किया जा रहा है जो मलबे के बीच से ड्रिलिंग कर रही है लेकिन रास्ते में धातु बाधा आने पर इसका काम रुक जाता है. इस बीच कई बार बरमा मशीन में खराबी का सामना करना पड़ा है. बचावकर्मी अब बरमा मशीन को निकाल रहे हैं. इसके बाहर आने पर मैन्युअल ड्रिलिंग और वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू की जाएगी.
14 दिनों में क्या कोई प्रगति हुई?
विशेषज्ञों ने बताया कि बरमा मशीन से किया गया काम बेकार नहीं जाएगा क्योंकि इससे की गई ड्रिलिंग के जरिए बिछाए गए फूड पाइप और संचार चैनल पूरी तरह से काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब वे वर्टिकल ड्रिलिंग पर काम करना चाहते हैं. बरमा मशीन को केवल पाइप को धकेलने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. बरमा मशीन से बनाया गया रूट बरकरार है. उन्होंने कहा कि ये विकल्प बरमा मशीन की क्षैतिज ड्रिलिंग के तुलना में धीमे हो सकते हैं.
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