Article 370: अनुच्छेद 370 मामले पर सुप्रीम कोर्ट 11 दिसंबर को फैसला सुनाएगा. 5 सितंबर को संविधान पीठ ने 16 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. 5 अगस्त 2019 को संसद ने जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत मिला विशेष दर्जा खत्म किया था. साथ ही राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटा था. इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
अनुच्छेद 370
अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर SC में सुनवाई, पुनर्गठन पर संसद के अधिकारों को लेकर पूछे सवाल
Supreme Court Hearing Article 370: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अगस्त) को सवाल किया कि क्या संसद 2018-2019 में राष्ट्रपति शासन के दौरान जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू कर सकती थी. इस अधिनियम के जरिये पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था.
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पांच अगस्त, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया और पारित किया गया था. अगले दिन लोकसभा में पेश किया गया और पारित किया गया था. इसे नौ अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी.
अनुच्छेद 370 को निरस्त के मामले पर सुनवाई
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन से यह सवाल पूछा. इस पार्टी ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने के अलावा 19 दिसंबर, 2018 को पूर्ववर्ती राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने और तीन जुलाई, 2019 को इसे छह महीने के लिए बढ़ाये जाने का भी विरोध किया है.
चीफ जस्टिस ने पूछा सवाल
चीफ जस्टिस ने धवन से पूछा, “क्या संसद अनुच्छेद 356 की उद्घोषणा के लागू रहने की अवधि के दौरान अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए कोई कानून (जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम) बना सकती है.” धवन ने जवाब दिया कि संसद संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 में वर्णित सभी सीमाओं के अधीन एक कानून पारित कर सकती है.
पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल थे. धवन ने पीठ को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 के तहत नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में बदलाव से संबंधित एक अनिवार्य शर्त है जहां राष्ट्रपति को मामले को राज्य विधायिका के पास भेजना होता है.
सुनवाई के दौरान और क्या कुछ हुआ?
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने संबंधी केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के छठे दिन धवन ने कहा, “जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन, 2019 से संबंधित अधिसूचना ने अनुच्छेद 3 के अनिवार्य प्रावधान (राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधानमंडल को भेजे जाने) को निलंबित करके अनुच्छेद 3 में एक संवैधानिक संशोधन किया.”
उन्होंने कहा कि केंद्र ने वस्तुत: संविधान में संशोधन किया है और संपूर्ण जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 से सामने आया है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने धवन से पूछा, “हम संविधान की धारा 356 (1) (सी) से कैसे निपटते हैं? क्या राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 356 के तहत उद्घोषणा लागू रहने के दौरान संविधान के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने की शक्ति है?”
धवन ने कहा, “हां, राष्ट्रपति संविधान के किसी प्रावधान को निलंबित कर सकते हैं, लेकिन यह उद्घोषणा की अनुपूरक होनी चाहिए. इस मामले में यह पूरक होने से परे है और अनुच्छेद 3 के तहत अनिवार्य प्रावधान को वास्तव में हटाया गया.”
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने धवन से कहा कि यदि राष्ट्रपति किसी उद्घोषणा में संविधान के किसी प्रावधान के क्रियान्वयन को निलंबित कर देते हैं, तो क्या यह इस आधार पर अदालत में निर्णय के योग्य है कि यह आकस्मिक या पूरक नहीं है.
वरिष्ठ वकील ने उत्तर दिया, “मैंने कभी ऐसा प्रावधान नहीं देखा जो वास्तव में एक अनिवार्य प्रावधान को हटा देता हो. यह असाधारण है. यदि आप अनुच्छेद 356(1)(सी) के दायरे का विस्तार करते हैं, तो आप कहेंगे कि राष्ट्रपति के पास संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने का अधिकार है. अनुच्छेद 356(1)(सी) को एक अनिवार्य प्रावधान के साथ पढ़ा जाना चाहिए जिसे वह कमतर नहीं कर सकता.”
गुरुवार को भी होगी सुनवाई
लगभग चार घंटे तक दलील देने वाले धवन ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के दौरान अनुच्छेद 3 और 4 और अनुच्छेद 370 को लागू नहीं किया जा सकता है. सुनवाई बेनतीजा रही और गुरुवार को भी जारी रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को कहा था कि अक्टूबर 1947 में पूर्व रियासत के विलय के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का भारत को समर्पण “परिपूर्ण” था और यह कहना “वास्तव में मुश्किल” है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य को मिला विशेष दर्जा स्थायी प्रकृति का था.
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जैसा कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए तैयार है, News18 के साथ कक्षाओं में लेख के बारे में सब कुछ जानें – News18
भारत का सर्वोच्च न्यायालय जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली लगभग 23 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। पीठ के अन्य सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं।
केंद्र ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में विभाजित करने का भी निर्णय लिया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि निर्णय लेते समय संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया गया। विशेष रूप से, इन याचिकाओं पर विचार करने का अदालत का फैसला केंद्र द्वारा 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लगभग चार साल बाद आया है।
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धारा 370 क्या है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक प्रावधान है जो जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता है। इस प्रावधान के अनुसार, जो कानून अन्य राज्यों पर लागू होते हैं वे जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होते हैं। अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर को एक अलग संविधान, एक राज्य ध्वज और आंतरिक प्रशासनिक स्वायत्तता का अधिकार दिया, जबकि यह 1952 से 31 अक्टूबर, 2019 तक एक राज्य के रूप में भारत द्वारा शासित था। यह निर्दिष्ट करता है कि रक्षा, विदेशी मामलों, संचार को छोड़कर , और सहायक मामलों में, संसद को अन्य सभी कानूनों को लागू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होती है।
अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर के निवासियों को कानूनों के एक अलग सेट के तहत रहने का अधिकार देता है, जिसमें नागरिकता, मौलिक अधिकार, संपत्ति अधिकार आदि शामिल हैं। अन्य भारतीयों की तुलना में.
अनुच्छेद 35ए अनुच्छेद 370 के अंतर्गत आता है जो कश्मीर के लोगों को विशेष विशेषाधिकार और अधिकार प्रदान करता है। यह राज्य के बाहरी लोगों को राज्य में स्थायी निवास चाहने या राज्य में अचल संपत्ति खरीदने से रोकता है। यह उन लोगों को भी राज्य में सरकारी नौकरी पाने से रोकता है जो राज्य के स्थायी निवासी नहीं हैं।
धारा 370 का इतिहास
इस प्रावधान का मसौदा 1947 में शेख अब्दुल्ला द्वारा तैयार किया गया था, जिन्हें तब तक महाराजा हरि सिंह और जवाहर लाल नेहरू द्वारा जम्मू और कश्मीर का प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया था। अतः अनुच्छेद 370 के प्रावधान 17 नवंबर 1952 से लागू हो गये।
जम्मू और कश्मीर की राज्य संविधान सभा द्वारा सलाह दिए जाने के बाद, 1954 में एक राष्ट्रपति आदेश जारी किया गया था जिसमें राज्य में लागू होने वाले अनुच्छेदों को निर्दिष्ट किया गया था। अनुच्छेद 35ए भी 1954 में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा पेश किया गया था।
प्रावधान को संविधान के भाग XXI में शामिल किया गया था: अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान। जैसा कि भाग के शीर्षक से स्पष्ट है, यह एक अस्थायी प्रावधान माना जाता था और इसकी प्रयोज्यता राज्य के संविधान के निर्माण और अपनाने तक रहने का अनुमान लगाया गया था।
धारा 370 का खात्मा
5 अगस्त, 2019 को सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी द्वारा अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया गया था। अनुच्छेद 370 के ख़त्म होने के साथ, जम्मू-कश्मीर के लोगों के पास अब दोहरी नागरिकता नहीं है और उनके साथ अन्य भारतीय नागरिकों के समान व्यवहार किया जाता है। भारतीय संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त प्रस्ताव ने आदेश की नींव के रूप में कार्य किया।
इसके अतिरिक्त, संसद ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को मंजूरी दे दी, जिसने जम्मू और कश्मीर राज्य का विभाजन केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में स्थापित किया। पुनर्गठन 31 अक्टूबर, 2019 को हुआ। निर्णय की घोषणा के साथ ही जम्मू-कश्मीर के नेताओं पर प्रतिबंध लगा दिए गए, स्कूलों को बंद करने की घोषणा की गई और इंटरनेट बंद कर दिया गया। यह कदम घाटी में तालाबंदी की स्थिति से पहले उठाया गया था।
इसमें क्या मुद्दे शामिल हैं?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की केंद्र सरकार की मंशा को चुनौती देने वाली कुल 23 याचिकाएँ प्राप्त हुईं, जिसके परिणामस्वरूप पाँच-न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया गया। याचिकाएं अगस्त 2019 के राष्ट्रपति आदेशों के साथ-साथ जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती देती हैं।
इसके अलावा, 2019 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम ने जम्मू-कश्मीर राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया और इसे भी चुनौती दी जा रही है। इसके अलावा कुछ याचिकाएं अनुच्छेद 370 और 35ए की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती देती हैं।
विभिन्न याचिकाओं में लोगों की सहमति के बिना राज्य को विभाजित करके कर्फ्यू लगाने और भारत की अनूठी संघीय संरचना को खत्म करने के केंद्र के कदम को चुनौती दी गई है। उन्होंने दिसंबर 2018 में राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा को भी चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट कल, 11 जुलाई, 2023 को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली 20 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए तैयार है।
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