2 घंटे पहले
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आधुनिक हिंदी की मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा ने कहा था जिसने लिखा हो, ‘मैंने हंसना सीखा है, मैं नहीं जानती रोना’ ये कहने वाले की हंसी निश्चित तौर पर असाधारण होगी। महात्मा गांधी के साथ सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लेने वाली पहली भारतीय महिला थीं। महात्मा गांधी के साथ देश प्रेम की भावना के साथ उन्होंने साज शृंगार भी छोड़ दिया और खद्दर की साड़ी पहनना शुरू कर दिया था।
हम बात कर रहे हैं, आठ साल की उम्र में कविताएं लिखने वाली कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की। पढ़ने की बहुत शौकीन थीं। 15 बरस की उम्र में शादी हुई और शादी के बाद से ही देश में आजादी की लड़ाई में शामिल हो गईं।
117वें जन्मदिन पर गूगल ने बनाया डूडल
गूगल ने सुभद्रा कुमारी को उनके 117वें जन्मदिन पर डूडल बनाकर याद किया।
सुभद्रा कुमारी देश की पहला महिला सत्याग्रही थीं। उन्होंने शादी के बाद अपना आधे से ज्यादा जीवन सत्याग्रह और आजादी आंदोलन में शामिल होकर बिताया।
9 साल की उम्र में लिखी पहली कविता
सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी पहली कविता नीम 9 साल की उम्र में लिखी थी। उनकी ये कविता 1913 में मर्यादा पत्रिका में छपी थी।
इन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सी कविताएं लिखीं हालांकि सबसे ज्यादा फेमस कविता ‘झांसी की रानी’ है, जिसमें महारानी लक्ष्मीबाई के पूरे जीवन को बताया गया है।
गिरफ़्तारी से नुक्कड़ सभाओं तक
जब भारत गुलाम था, तब इन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए आंदोलनों में अपनी अहम भूमिका निभाई। इनकी रचनाओं में देश प्रेम का भाव था।
उसके साथ ही समाज में फैली कुरीतियों और स्वदेशी समान का बहिष्कार करने के लिए नुक्कड़ सभाओं को भी वो करती थीं।
1921 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था, तो उन्होंने अपने पति के साथ इस आंदोलन का समर्थन करते हुए इसमें हिस्सा लिया था।
इसमें हिस्सा लेने के लिए इन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्यता भी ली। जब गुजरात कि कांग्रेस अधिवेशन में सुभद्रा महात्मा गांधी से मिली तब इनके अंदर राष्ट्र के प्रति प्रेम और ज्यादा बढ़ गया था।
1922 में जब जबलपुर में झंडा सत्याग्रह किया गया था तब उस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद उन्होंने नागपुर में प्रारंभ किया इसके कारण उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था।
सुभद्रा कुमारी और महादेवी वर्मा की मैत्री
महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान
आधुनिक समय की मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान सहेली थीं।
सुभद्रा कुमारी चौहान को जानना हो तो महादेवी वर्मा को पढ़ना चाहिए। महादेवी ने अपने संस्मरण ‘पथ के साथी’ में महादेवी वर्मा ने लिखा है कि सुभद्रा का चित्र बनाना कुछ सरल नहीं, क्योंकि चित्र की साधारण जान पड़नेवाली हर रेखा के लिए उनकी भावना की दीप्ति ‘संचारिणी दीपशिखेव’ बनकर उसे असाधारण कर देती है।
महादेवी और सुभद्रा कुमारी महादेवी स्कूल की सहेली थीं। जब सुभद्रा आठवीं क्लास में थीं, तब उनकी शादी हो गई थी। महादेवी ने से छिपा नहीं था कि नई दुल्हन के रूप में उन्हें जो मिलना चाहिए वो उन्हें न उनके पति दे पा रहे हैं और न उन्हें छुट्टी लेने का समय है।
सुभद्रा कुमारी कोई भी कविता लिखती थीं तो महादेवी वर्मा को ही सुनाया करती थीं।
जेल में फूल मालाओं को तकिया बनाकर सोई
महादेवी वर्मा बताती थीं कि उन्होंने अपनी गृहस्थी जेल में ही बसाई थी। मध्य प्रदेश के खंडवा में ठाकुर लक्ष्मण सिंह से उनकी शादी हुई थी, उनके पति लक्ष्मण सिंह पहले से ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे। दोनों ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। सुभद्रा की कई रचनाओं में आजादी का उन्माद और वीर रस का मिलता है।
महादेवी वर्मा हंसते-हंसते बताती थीं कि जेल जाते समय उन्हें इतनी ज्यादा फूल-मालाएं मिल जाती थीं कि वो उन्हीं का तकिया बना लेती थीं और बिस्तर का सुख महसूस करती थीं।
स्कूल के रास्ते में लिखती थीं कविता
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के पास निहालपुर गांव में हुआ था। सुभद्रा बचपन से ही कुशाग्र होने के साथ विद्रोही स्वभाव की थीं। स्कूल के लिए वो कविताएं घर से आते-जाते तांगे में लिख लेती थीं, ऐसी रचनाओं स्कूल की वजह से उनकी ख्याति ज्यादा थी।
15 फरवरी 1948 को 43 वर्ष की आयु में कार एक्सीडेंट में उनका निधन हो गया था।
सुभद्रा कुमारी का रचना संसार
सुभद्रा कुमारी ने कई सारी कविताएं और कहानियां लिखीं, इनमें झांसी की रानी इनकी सबसे फेमस कविता थी।
सुभद्रा के दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए। उनकी कविता संग्रहों के नाम ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं और कहानी संग्रह- पंद्रह कहानियों वाली बिखरे मोती-1932 व 1934 में प्रकाशित 9 कहानियों वाली उन्मादिनी 1947 में प्रकाशित 14 कहानियों वाली सीधे साधे चित्र हैं।
कुल मिलाकर उन्होंने 46 कहानियां लिखीं। उस वक्त लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव को उन्होंने नारी की मानसिक तकलीफ को भी अपनी रचनाओं में उतारा।
सुभद्रा कुमारी की 5 कविताएं
मेरा जीवन
मैंने हंसना सीखा है
मैं नहीं जानती रोना
बरसा करता पल-पल पर
मेरे जीवन में सोना।
मैं अब तक जान न पाई कैसी होती है पीड़ा
हंस-हंस जीवन में कैसे करती है चिंता क्रीड़ा।
जग है असार सुनती हूं मुझको सुख-सार दिखाता
मेरी आंखों के आगे सुख का सागर लहराता।
कहते है होती जाती खाली जीवन की प्याली
पर मैं उसमें पाती हूं प्रतिपल मदिरा मतवाली।
उत्साह, उमंग निरंतर रहते मेरे जीवन में उल्लास विजय का हंसता मेरे मतवाले मन में।
आशा आलोकित करती मेरे जीवन को प्रतिक्षण है
स्वर्णसूत्र से वलयितमेरी असफलता के धन
सुख-भरे सुनहले बादल रहते हैं
मुझको घेरे,विश्वास, प्रेम, साहस हैं जीवन के साथी मेरे।
कोयल
देखो कोयल काली है पर, मीठी है इसकी बोली, इसने ही तो कूक कूक कर, आमों में मिश्री घोली। कोयल कोयल सच बतलाना, क्या संदेसा लायी हो? बहुत दिनों के बाद आज फिर, इस डाली पर आई हो। क्या गाती हो किसे बुलाती? बतला दो कोयल रानी, प्यासी धरती देख मांगती, हो क्या मेघों से पानी? कोयल यह मिठास क्या तुमने, अपनी मां से पायी है? मां ने ही क्या तुमको मीठी,बोली यह सिखलायी है? डाल डाल पर उड़ना गाना,जिसने तुम्हें सिखाया है, सबसे मीठे मीठे बोलो,यह भी तुम्हें बताया है। बहुत भली हो तुमने मां की,बात सदा ही है मानी, इसीलिये तो तुम कहलाती,हो सब चिड़ियों की रानी। |
चलते समय तुम मुझे पूछते हो ’जाऊं’? मैं क्या जवाब दूं तुम्हीं कहो! ’जा…’ कहते रुकती है जबान,किस मुँह से तुमसे कहूं ’रहो’!! सेवा करना था, जहां मुझे कुछ भक्ति-भाव दरसाना था। उन कृपा-कटाक्षों का बदला,बलि होकर जहां चुकाना था॥ मैं सदा रूठती ही आई,प्रिय! तुम्हें न मैंने पहचाना।वह मान बाण-सा चुभता है,अब देख तुम्हारा यह जाना॥ प्रियतम से
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साहित्यिक सम्मान से डाक टिकट
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं हिंदी साहित्य के लिए धरोहर हैं, इसलिए इन्हें कई पुरस्कारों और सम्मान दिए गए।
- सुभद्रा को 1948 में हिंदी साहित्य सम्मेलन की तरफ से काव्य संग्रह ‘मुकुंद’ के लिए केसरिया पुरस्कार दिया गया था।
- हिंदी साहित्य सम्मेलन में इन्हें ‘बिखरे मोती’ के लिए केसरिया पुरस्कार दिया था।
- भारतीय डाक विभाग ने 1976 में सुभद्रा के नाम पर ‘डाक टिकट’ जारी किया था।
- 28 अप्रैल 2008 को भारत में एक कोस्ट गार्ड शिप का सुभद्रा के नाम पर रखा गया।