Bharatiya Nyaya Sanhita: कानून में सुधार को लेकर लाए जा रहे तीन प्रमुख विधेयकों को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है. इस बीच गृह मंत्रालय की संसदीय पैनल में शामिल विपक्षी सांसदों ने विधेयकों को लेकर असहमति नोट देते हुए कहा कि ये कॉपी पेस्ट है. साथ ही विधेयकों के हिंदी नाम को लेकर भी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई.
भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक का कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने हिंदी नाम रखे जाने को लेकर विरोध करते हुए कहा कि ये असंवैधानिक है. दरअसल, ये तीन विधेयक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने के लिए लाए गए हैं.
किन लोगों ने जताई असहमति?
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ को पैनल में शामिल कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, रवनीत सिंह, पी चिदंबरम, टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन, काकोली घोष दस्तीदार, दयानिधि मारन, दिग्विजय सिंह और एनआर ऐलानगो अलग-अलग असहमति नोट देते हुए विधेयक में शामिल कई विधेयकों का विरोध किया.
विपक्षी सांसदों ने क्या कहा?
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कानून पहले जैसा ही है, लेकिन नाम बदल दिया गया. वहीं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि चेयरमैन को रिपोर्ट जमा करने की जल्द ही लगी है.
साथ ही न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, ने कहा कि विधेयक आपत्तिजनक और संविधान के अनुसार नहीं है. इसके अलावा डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने कहा कि भारत राज्यों का संघ है. अलग-अलग राज्यों में अलग भाषा-भाषा बोली जाती है. बिल की बॉडी तो अंग्रेजी में है, लेकिन नाम हिंदी में है, जो कि संविधान के अनुच्छेज 348 के तहत नहीं है.
सरकार क्या तर्क दे रही है?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक को पेश किया था. इस दौरान शाह ने कहा था कि ये भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदल देगा.
विधेयकों को पेश करने के दौरान शाह ने कहा था कि ये भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदल देंगे. उन्होंने कहा था कि ये बदलाव त्वरित न्याय प्रदान करने तथा एक कानूनी प्रणाली बनाने के लिए किए गए हैं जो लोगों की समकालीन जरूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा करती है.
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