सांकेतिक तस्वीर
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टेक्नोलॉजी की दुनिया में आई क्रांति विशेषकर सोशल मीडिया ने भारत में चुनाव अभियान और पार्टी संगठनों को नया आकार दिया है। भाजपा ने ऑनलाइन अभियान में बाजी मारी है, लेकिन अन्य पार्टियां भी पीछे नहीं हैं। सोशल मीडिया का चुनाव में काफी हस्तक्षेप बढ़ गया है। बावजूद इसके घर-घर प्रचार करना अब भी राजनीतिक दलों के लिए अचूक हथियार है।
बीते एक दशक में भारत ग्लोबल कम्युनिकेशन टेक्नॉलजी क्रांति का प्रतीक बन गया है। आज, स्मार्टफोन को काउंटर पर मिनटों में खरीदा जा सकता है। 2022 के अंत तक, दो-तिहाई भारतीय स्मार्टफोन उपयोग कर रहे थे और साल 2026 तक भारत में एक अरब स्मार्टफोन ग्राहक होंगे।
40 % पोस्ट पक्षपातपूर्ण थे
2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा के आधिकारिक एक्स हैंडल पर 9,300 ट्वीट्स के विश्लेषण से पता चला कि औसतन 40% ट्वीट्स पक्षपातपूर्ण थे।
फेसबुक और व्हाट्सएप से भी प्रचार
मध्य प्रदेश के 2023 के विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान इन हैंडलों से सामने आए लगभग 3,100 ट्वीट्स के विश्लेषण से एक समान पैटर्न का पता चला। लगभग 35% ट्वीट्स में रैली कंटेंट था। उनमें से 70% में रैली के बाद का कंटेंट था। 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी में भाजपा और सपा के लगभग 400 पार्टी पदाधिकारियों के सर्वेक्षण में से 90% ने कहा कि उन्होंने व्हाट्सएप और फेसबुक पर अपनी पार्टी की रैलियों की तस्वीरें और वीडियो पोस्ट किए थे। वहीं, 2,000 मतदाताओं में से 53% ने बताया कि उन्होंने चुनाव से पहले दिन में कम से कम एक बार अपने फोन पर कैम्पेन रैलियों की तस्वीरें और वीडियो देखे थे।
73 % मतदाताओं ने घर-घर प्रचार अभियान और रैलियों को बताया ज्यादा प्रभावी
2022 में उत्तर प्रदेश में 4,000 मतदाताओं के साथ आमने-सामने के सर्वेक्षण से पता चला कि मतदाता उन तक पहुंच के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रचार करने को ज्यादा सही मानते हैं। सर्वेक्षण में शामिल 73% मतदाताओं ने व्यक्तिगत प्रचार, जैसे कि घर-घर जाकर प्रचार करना और सामूहिक रैलियों को मतदाताओं तक पहुंचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अभियान माना।
यहां तक कि भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों के लिए भी सर्वेक्षण में शामिल लगभग 54 फीसदी मतदाताओं ने व्यक्तिगत रूप से चुनाव प्रचार को सबसे महत्वपूर्ण माना। 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा और कांग्रेस ने सभी रैलियों पर किए गए खर्च का एक-चौथाई से एक-तिहाई के बीच खर्च व्यक्तिगत रैलियों पर किया। वहीं, रैलियों में भाग लेने वाले मतदाताओं की हिस्सेदारी लगभग 20% पर स्थिर रही है।
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