जदयू तोड़ना आसान नहीं। सामने आकर किया प्रयास तो नीतीश भंग कर देंगे विधानसभा।
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अपनी बेटी रोहिणी आचार्या की सोशल मीडिया टिप्पणियों को हटवा कर राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव चुप बैठ गए? वह नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन सरकार बचाने के लिए आपदा प्रबंधन कर रहे हैं? अगर आप ऐसा कुछ समझ रहे हैं तो शायद आप लालू प्रसाद को भूल गए हैं। राबड़ी आवास में जिस तरह राजद नेताओं का आना-जाना दिनभर जारी रहा और अब भी मंथन जारी है, उसमें से एक नई बात सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि वहां नया गणित तैयार हो रहा है। ऐसी नीति कि लालू प्रसाद अपने लाल तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी दिला दें।
क्या सचमुच राजद तोड़ने वाला है जदयू को
इसका गणित समझने के पहले, यह ध्यान देना होगा कि पिछले दिनों नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को इस पद से हटाए जाने के पहले उनपर यही आरोप लगाया गया। उन्होंने इन आरोपों को नकारते हुए इस लाइन पर खबर चलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का एलान किया। ललन सिंह गुरुवार को बनी राजनीतिक परिस्थितियों के बीच नीतीश के आसपास थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के बनने के बाद भी ललन सिंह लगातार उनके आसपास रह रहे हैं। मतलब, नीतीश यह मान रहे हैं कि जदयू को तोड़ने में ललन की भूमिका अफवाह थी। लेकिन, क्या जदयू में टूट की खबर भी अफवाह है? अगर अफवाह होती तो राजद गुरुवार को इतना मंथन करता ही नहीं। वह सिर्फ नीतीश कुमार के आगे-पीछे कर उन्हें मनाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तो, कैसी खिचड़ी पक रही राबड़ी आवास में?
अंदर से जो बात निकल रही, वह ऐसी है
बिहार विधानसभा में 243 सीट है। यहां बहुमत के लिए 122 विधायकों का समर्थन चाहिए। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में महागठबंधन के अंदर जदयू छोड़ बाकी वही दल थे, जो अब भी उसके साथ हैं। जुड़े ही हैं। फिर भी जादुई आंकड़ा से वह दूर है। राजद ने चुनाव में 75 सीटों पर जीत हासिल की थी। फिर कुढ़नी सीट उप चुनाव में पार्टी हार गई और बोचहां उपचुनाव में नई सीट हासिल की। इस बीच पार्टी ने असद्दुदीन ओवैसी के एआईएमआईएम के पांच में से चार विधायक तोड़कर मिला लिया। इस तरह उसके पास 79 विधायक अपने हैं। इसके अलावा, कांग्रेस के 19 विधायक साथ हैं ही। सीपीआईएमएल, के 12, सीपीआई के दो, सीपीआईएम के दो विधायक मिलाकर 16 वामपंथी विधायक तो राजद के साथ रहेंगे ही। इसके अलावा, ओवैसी की पार्टी के इकलौते विधायक विपरीत परिस्थिति में राजद को बाहर से समर्थन दे दें तो अजूबा नहीं। इस तरह 79+19+16+1= 115 विधायक पूरे हो रहे। यह आंकड़ा बहुमत से सात अंक कम है। इसके लिए दल-बदल कानून की कार्रवाई से बचते हुए जदयू को तोड़ना ही राजद के लिए एकमात्र विकल्प है। नीतीश कुमार अगर राजद का साथ छोड़ने का फैसला लें तो जदयू को इसी तरह तोड़ना होगा कि दल-बदल कानून के आधार पर टूटे विधायकों की सदस्यता रद्द नहीं हो। इसके लिए जदयू के 45 में से 30 विधायकों को तोड़ना होगा। यह तोड़ना आसान काम नहीं, इसलिए तमाम जद्दोजहद के बाद राजद के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि सरकार स्थिर है, रहेगी। ऐसा कहना इसलिए भी मजबूरी है कि जदयू को तोड़ने की साजिश बाहर आ गई तो नीतीश कुमार के लिए विधानसभा भंग करना आसान होगा और वह धोखाधड़ी बताते हुए चुनाव में भाजपा के साथ जा भी सकेंगे।