मूर्ति बनाने वाली कारीगर लाडो ने जानकारी देते हुए बताया है कि इको फ्रेंडली मूर्ति बना रहे हैं, यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं, गणेश चतुर्थी का त्यौहार है, इन मूर्तियों में पांच तरीके की दाल, गेहूं, चावल डाले हैं और जो पीओपी की मूर्तियां हैं. उनसे पर्यावरण को नुकसान होता है.मिट्टी की मूर्ति पानी में गल जाती है और पीओपी नहीं गल पाती है, पीओपी से काफी नुकसान है. इससे गंगा नदी में जलचर मर जाते हैं, इन मूर्तियों से यह फायदा होता है कि मिट्टी गल जाती है और अनाज को जलचर खा लेते हैं. बचपन से मूर्ति का कारोबार करते आ रहे बुजुर्ग कारीगर छोटेलाल ने जानकारी देते हुए बताया है कि हम गणेश जी की मूर्ति बचपन से बनाते हैं. इन मूर्तियों में हम दाल, चावल मिलते हैं, यह मूर्तियां गंगा में जब विसर्जन होती है तो मिट्टी बह जाती है और दाल मछलियों के काम आ जाती है, जल में जो जानवर हैं . वह चावल, दाल खा जाते हैं, इको फ्रेंडली गणेश बना कर बेचते हैं, इस तरह की मूर्तियां लंबे अरसे से बनाते आ रहे हैं. दिवाली के साथ-साथ अन्य त्योहारों के लिए भी मूर्तियां बनाते हैं. अब गणेश चतुर्थी को देखते हुए गणेश की मूर्तियां तैयार कर रहे हैं, इन मूर्तियों को बनाने के लिए हमारा पूरा परिवार लगा रहता है.