मंगल पांडेय, शाहनवाज हुसैन और संजय पासवान पर टिकीं सबकी निगाहें।
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भारतीय जनता पार्टी ने बिहार की सत्ता में वापसी के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड का दोबारा साथ स्वीकार किया। यह दरअसल लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की जरूरत थी। लेकिन, इस जरूरत के लिए फैसला लिए जाने के साथ ही लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे का गणित फंसा। भाजपाई दिग्गजों के सरकार में शामिल होने के बाद संगठन का गणित फंसा। अब विधान परिषद् की खाली हो रही सीटों के नाम पर भी बहुत कुछ फंस गया दिख रहा है। कई चीजें एक साथ फंसने के नाम पर इस समय गहरी खामोशी है और कहा जा रहा है कि यह भूचाल से पहले की शांति है।
कौन जाएगा संसद, कौन परिषद्… कोई रिटायर!
बिहार भाजपा के दिग्गज और राज्य के उप मुख्यमंत्री पद का लंबा अनुभव रखने वाले सुशील कुमार मोदी को जिस तरह से राज्यसभा से भी किनारे लगा दिया गया, उसके बाद पार्टी में कोई कुछ भी कहने-बोलने से बच रहा है। यह चुप्पी गहरी है और इसका डर उससे भी ज्यादा गहरा है। क्योंकि, लोकसभा चुनाव सामने है। भाजपा की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक इस नाम पर हो गई, लेकिन अब भी इस हिसाब से पार्टी के नेता क्षेत्र में ताकत झोंकते नजर नहीं आ रहे हैं। क्यों? इस सवाल के जवाब में तीन मसले सामने आते हैं, लेकिन उससे पहले आता है राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दलों के बीच सीट बंटवारा। यह सीट बंटवारा हो जाता तो भाजपा कोटे की सीटों के लिए दौड़ लगाने वाले भी कुछ हद तक निश्चिंत हो जाते। फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए नया चेहरा तय करना भी मुश्किल नजर आ रहा है और इसी कारण बिहार विधान परिषद् की सीटों के लिए नामों की घोषणा का मसला भी अटका हुआ है।
विधान परिषद् के तीनों नाम संशय में अटके हैं
लोकसभा चुनाव की अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है, लेकिन राज्यसभा के बाद अब बिहार विधान परिषद् की 11 सीटों पर चुनाव की तारीखें आ गई हैं। 11 मार्च को नामांकन की अंतिम तारीख है और भाजपा के तीन बड़े चेहरे इस इंतजार में हैं कि उनका क्या होगा? इनमें सबसे बड़ा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन का है। वह राष्ट्रीय राजनीति में थे, लेकिन फिर परफॉर्मेंस खराब होने पर राज्य की राजनीति में विधान परिषद् के रास्ते सक्रिय हुए। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद बनी सरकार में उन्होंने उद्योग मंत्री का पदभार संभाला तो काम की बदौलत चर्चा में रहे। वह राष्ट्रीय राजनीति में थे और निश्चित तौर पर भागलपुर लोकसभा सीट पर इस बार उनका दावा है। फिलहाल चूंकि वह विधान परिषद् के सदस्य हैं और उनकी सदस्यता खत्म होने का समय आ गया है तो बड़ा सवाल यह सामने है कि उन्हें लोकसभा का टिकट मिलेगा या विधान परिषद् में ही दोबारा मौका मिलेगा? दूसरा चर्चित नाम राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और बिहार भाजपा के भूतपूर्व अध्यक्ष मंगल पांडेय का है। मंत्रिमंडल विस्तार में उनका नाम आ जाता तो यह पक्का हो जाता कि उन्हें विधान परिषद् में वापस भेजा जाएगा। लेकिन, वह इस नाम पर संशय में अटके हैं। एक और नाम भाजपा से केंद्रीय मंत्री रह चुके डॉ. संजय पासवान का है। वह विधान परिषद् के सदस्य हैं, लेकिन यह कार्यकाल खत्म होने को है। इनके बेटे गुरु प्रकाश पासवान भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बन गए हैं और संगठन में सक्रिय है। ऐसे में डॉ. संजय पासवान के लिए संभव है कि भाजपा कुछ और सोचे।
मंत्रिमंडल और सीट शेयरिंग से होगा साफ
चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार तत्काल हो जाए तो साफ हो जाएगा कि शाहनवाज हुसैन या मंगल पांडेय के साथ क्या होने वाला है? इसके साथ ही राजग के दलों में सीट शेयरिंग की घोषणा हो जाए तो भी पक्का हो जाएगा कि भागलपुर की सीट पर हुसैन का दावा पक्का है या जदयू के नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल की घोषणा। सीट शेयरिंग के बाद भाजपा खाते की सीटों के लिए दौड़ लगा रहे प्रत्याशियों का नाम भी कुछ हद तक पक्का मान लिया जाएगा। इन दो बातों के बाद सामने आ जाएगा कि भाजपा के अंदर शांति है या भूचाल! जदयू के साथ आने के पहले भाजपा के कई नेता संसद जाने की तैयारी किए बैठे थे, लेकिन अब आधे तो वैसे ही हताश हैं। इसलिए, वक्त का इंतजार सभी को है।”