ऐप पर पढ़ें
इंडिया गठबंधन को अलविदा कहकर रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के एनडीए में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं। एक तरफ रालोद नेता अटकलों को खारिज कर रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अखिलेश यादव को उम्मीद है कि जयंत भाजपा को हराने के लिए उनके ही साथ रहेंगे। सियासी विश्लेषकों का मानना है कि जयंत चौधरी के सपा का साथ छोड़कर भाजपा से गठबंधन करने पर वेस्ट यूपी में बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा। इस गठबंधन से भाजपा और रालोद दोनों को फायदा हो सकता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक में रालोद का जाट वोटों के कारण मजबूत आधार है। 2009 के लोकसभा चुनाव में रालोद का भाजपा से गठबंधन हुआ था। रालोद के तब पांच सांसद बने थे। 2014 और 2019 में रालोद ने सपा के साथ गठबंधन किया लेकिन किसी सीट पर उसे सफलता नहीं मिली थी। 2019 में भाजपा ने मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, कैराना, बुलंदशहर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर सीटें जीती थीं। बसपा के पास बिजनौर, नगीना, सहारनपुर, अमरोहा सीटें आई थीं। सपा ने मुरादाबाद, संभल और रामपुर सीटें जीतीं लेकिन आजम खान के इस्तीफे के बाद रामपुर को भाजपा ने उपचुनाव में जीत लिया था।
रालोद को फायदा नहीं लेकिन भाजपा को नुकसान हुआ था
अगर पिछले चुनाव की बात करें तो वेस्ट यूपी में रालोद को कोई फायदा भले नहीं हुआ लेकिन उसने भाजपा को नुकसान जरूर पहुंचाया था। रालोद ने सपा और बसपा के साथ गठबंधन किया था। मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल की 14 सीटों में से भाजपा केवल सात सीटें ही जीत सकी थी। सात सीटें सपा-बसपा गठबंधन के पास चली गई थीं। ऐसे में माना जा रहा है कि अब यदि भाजपा और रालोद की दोस्ती पक्की हो गई तो दोनों पार्टियों को लाभ होगा। रालोद का लोकसभा में खाता खुल जाएगा। भाजपा को हारी हुई सीटों पर भी जीत नसीब हो सकती है।
रालोद के लिए अच्छा नहीं रहा 2014 और 2019 का अनुभव
पश्चिमी यूपी में 2014 में रालोद आठ सीटों पर चुनाव लड़कर भी एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई थी। इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में 14 सीटों में भाजपा ने सात और सपा-बसपा ने तीन-चार सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में सपा और बसपा के साथ गठबंधन में तीन सीटों पर चुनाव लड़ने वाली रालोद को एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई थी। इस तरह विधानसभा में तो सपा गठबंधन में रालोद को लाभ हुआ, लेकिन लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन में रालोद को नुकसान हुआ है। अब ऐसी स्थिति में भाजपा-रालोद की बात बन जाती है तो पश्चिमी यूपी की राजनीति में भारी उलट-फेर होना तय है।