19 घंटे पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी
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मेरा नाम कुमार सुशांत है। साल 2022 में पहले ही अटेंप्ट में मैंने 122वीं रैंक के साथ UPSC क्रैक किया और IPS ऑफिसर की सर्विस मिली। इसके बाद मसूरी में मेरी ट्रेनिंग हुई। साल 2021 में दिल्ली विश्विद्यालय से इंग्लिश लिट्रेचर में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद कोविड महामारी के चलते घर पर रहना पड़ा। इस दौरान सोचा घर पर रहकर ही UPSC की तैयारी की जाए। मैंने बिना किसी कोचिंग के एग्जाम क्रैक किया। इस दौरान फैमिली और दोस्तों का सपोर्ट हमेशा मेरे साथ रहा।
भारत-नेपाल बॉर्डर के सुपौल से हैं सुशांत
मैं भारत-नेपाल बॉर्डर के जिले सुपौल के बीरपुर शहर का रहने वाला हूं। ये जिला बिहार राज्य में पड़ता है। पास ही के स्कूल से मैंने 12वीं तक पढ़ाई की और उसके बाद ग्रेजुएशन के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया। इंग्लिश लिट्रेचर में 2021 में ग्रेजुएशन पूरा किया। उसके बाद कोविड आ गया तो सोचा घर से UPSC की प्रिपेरेशन करनी चाहिए।
लेक्चर्स के दौरान आती है नींद
मैंने बिना कोचिंग के एग्जाम क्लियर किया है। बस टॉपर्स की गाइडलाइन फॉलो की। मेरा पर्सनल एक्सपीरियंस था कि लेक्चर में मुझे बहुत नींद आती है। ब्लैक कॉफी ले लेकर लेक्चर कंप्लीट किए हैं। लेक्चर में अच्छे से समझ भी नहीं पाता। लेकिन जब बुक पढ़ने बैठता हूं तो चीजों पर ज्यादा फोकस कर पाता हूं। बहुत अच्छी तरह चीजें समझ आती हैं। इसलिए UPSC की तैयारी के लिए सेल्फ स्टडी ही की थी। हां, टेस्ट सीरीज ली थी कोचिंग सेंटर्स से। बाकी मॉक इंटरव्यू देने के लिए भी कोचिंग सेंटर्स का सहारा लिया था।
पढ़ाई मैनेज कर लेते हैं, इमोशन्स मैनेज करना मुश्किल
मेरे घर में मम्मी-पापा और एक बड़े भाई हैं। बड़े भाई चैन्नई में पोस्टेड हैं, तो उनके साथ मैं फोन और टेक्स्ट के जरिए कनेक्टेड रहता हूं। मैं खुद को बहुत प्रिवेलेज्ड महसूस करता हूं कि अपने घर में बैठकर बस तैयारी करता था। बिना किसी चिंता के मैं बस आपको अपनी तैयारी पर ध्यान देना है। इसके लिए मैं फैमिली, भाई और दोस्तों के लिए बहुत ग्रेटफुल हूं। ये अनअकाउंटेड चला जाता है, लेकिन किसी भी एस्पिरेंट के लिए फैमिली और फ्रेंड्स का सपोर्ट सबसे ज्यादा जरूरी है। इंटेलेक्चुअली तो आप मैनेज कर ही लेते हो, लेकिन इमोशनली मैनेज करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में दोस्तों या फैमिली से बात करें। स्ट्रेस और परेशानी में जिस लेवल का सोक इन आपके पेरेंट्स कर सकते हैं, वो शायद ही कोई और कर सकता है। इस दौरान मैं सोशल मीडिया से बिल्कुल ऑफ था, लेकिन रूममेट्स, कॉलेज फ्रेंड्स और बड़े भाई से कनेक्टेड था।
UPSC एक रिस्क है
UPSC एक ऐसा एग्जाम है जो रिस्की है। हर दिन लगता था कि होगा तो ठीक, नहीं हुआ तो क्या करेंगे। लेकिन मुझे लगता है कि किसी भी प्रोफेशन में रिस्क तो होता ही है। कोई भी एग्जाम हो जैसे JEE, NEET रिस्क है।
इसलिए हमेशा एक ऐसा प्लान हो जहां बाउंस बैक कर सके। क्योंकि सीटें बहुत कम होती हैं, हर कैंडिडेट को सिलेक्ट नहीं किया जा सकता। तो आपके पास प्लान B होना ही चाहिए। अक्सर कैंडिडेट्स बहुत कंफर्टेबल हो जाते हैं, वो दूसरा कुछ करना ही नहीं चाहते। लेकिन ये ठीक नहीं, दूसरा प्लान जरूर रखें।
ओवररेटेड है मोटीवेशन
कितना भी आप ट्राय कर लो मोटीवेशन शॉर्ट टर्म ही होती है। कितने टाइम तक ही कोई चीज आपको मोटीवेटेड रख सकती है। इसके अलावा जब चीजें कॉम्प्लीकेटेड होने लगती हैं तो लोग डीमोटीवेट होने लगते हैं। चाहे आप किसी ऐसी चीज की बात कर लें जो आपका पैशन है, जैसे म्यूजिक। उसमें भी जब आप आगे बढ़ते हैं तो चीजें कॉम्प्लीकेटेड होती हैं। तब आप पैशन के लिए भी डीमोटीवेटेड महसूस करेंगे। पैशन होने के बावजूद एक सैचुरेशन पॉइंट आ ही जाता है। ऐसे में आपका सेल्फ कंट्रोल काम आता है। खुद को सिर्फ और सिर्फ आप ही मोटीवेट कर सकते हैं।
तैयारी के दौरान आता है एक डिप्रेस्ट फेज
UPSC की तैयारी के दौरान आप डिप्रेस्ड या अंडर कॉन्फिडेंट फील करोगे। कभी मॉक टेस्ट में नंबर कम आएंगे, तो कभी टॉपिक बार-बार पढ़ने पर भी समझ नहीं आएगा। ये सब होता ही है और इससे कोई बच नहीं पाएगा। आपको बस ये सोचना है कि ये फेज है। पार्ट ऑफ प्रिपेरेशन है। अच्छा टाइम देखा है तैयारी के दौरान, तो बुरा समय भी आएगा। ऐसे में सेल्फ कंट्रोल और डिसिप्लिन ज्यादा जरूरी है।
50 प्लान बनाने से कुछ नहीं होगा
बहुत से एस्पिरेंट्स क्या करते हैं, एक प्लान बनाते हैं फिर थोड़ी सी भी गड़बड़ होती है तो प्लान बदल देते हैं। यही सबसे बड़ी गड़बड़ है। अगर आपने एक प्लान बना लिया है, तो सबसे पहले उसे एग्जीक्यूट करे। 50 प्लान बदलने से कुछ नहीं होता। 100 लोग 100 तरह की बातें बताते हैं। लेकिन खुद को उनसे अफेक्ट न होने दें। इसके अलावा आपको खुद के अंदर झांकने की भी जरूरत है। खुद से पूछे कि कहां सही किया और कहां गलती की। एग्जाम को, प्रोसेस को या फैमिली को ब्लेम करने से बेहतर है कि एक बार खुद के अंदर झांककर देखें।
प्रिपेरेशन के लिए एक साल काफी
10वीं और 12वीं में बहुत से लोग बोलते हैं कि सिविल सर्विसेज की तैयारी करना चाहते हैं। मुझे लगता है वो बहुत जल्दबाजी कर रहे हैं क्योंकि वो टाइम नहीं है। UPSC के लिए एक पर्टिकुलर लेवल ऑफ समझ और अंटरस्टैंडिंग चाहिए। आप क्वेश्चन्स भी उठाकर देखोगे तो एक साल के करेंट अफेयर्स ही आते हैं। तो UPSC ऐसा डिमांड भी नहीं कर रहा कि आप 7-8 साल तैयारी करो।
कॉलेज लाइफ एंजॉय करना जरूरी
UPSC की तैयारी के लिए या किसी और चीज के लिए कॉलेज टाइम स्किप नहीं करना चाहिए। वो एक्सप्लोर करने का बेस्ट टाइम होता है। इंटेलेक्चुअल ग्रोथ के लिए कॉलेज जरूरी है। क्या पता कॉलेज में आप कुछ ऐसा सीखें जिससे आपको करियर की नई राह मिल जाए। ऐसे वक्त में मैं पेरेंट्स को भी कहूंगा कि प्लीज बच्चों को उस वक्त प्रेशराइज मत करिए। UPSC करने के लिए बहुत टाइम है।
प्रीलिम्स-मेन्स का बेसिक सिलेबस एक जैसा होता है
प्रीलिम्स में सबके लिए सभी सब्जेक्ट्स सेम होते हैं। मेन्स के समय आपको ऑप्शनल सब्जेक्ट चुनना होता है। मेरा ऑप्शनल सब्जेक्ट पॉलिटिकल साइंस एंड इंटरनेशनल रिलेशन था।
ये एक मिसकंसेप्शन है कि प्रीलिम और मेन्स दोनों बहुत अलग होते हैं। बेसिक सिलेबस दोनों ही एग्जाम्स के लिए ऑलमोस्ट सिमिलर है। मेन्स में कुछ टॉपिक्स एक्स्ट्रा जरूर होते हैं। लेकिन मेजरली कंटेंट सिमिलर होता है। कोर बेस एक ही तरह से प्रिपेयर करना होता है। बस नेचर ऑफ प्रिपरेशन अलग हो जाता है।
प्रीलिम्स में रीडिंग स्किल्स, मेन्स में राइटिंग स्किल्स
प्रीलिम्स में आपकी रीडिंग स्किल्स चेक होती हैं कि आप कितने अच्छे से उसे पढ़कर समझ पाए। वहीं मेन्स एग्जाम में आपकी राइटिंग स्किल्स चेक की जाती हैं। कंटेंट लेकिन एक जैसा ही होता है। अगर आपने प्रीलिम में अच्छे से पढ़ाई की हुई है, तो आप आसानी से मेन्स पर स्विच कर सकते हो। इसलिए कोर सब्जेक्ट्स पर ही फोकस होना चाहिए।
इंटरव्यू में ‘न’ कहने की पूरी छूट
मेरा इंटरव्यू का एक्सपीरियंस काफी अच्छा था। आपको बहुत कंफर्टेबल किया जाता है। चाहे आप सही बोले चाहे गलत बोलें, आपको बोलने का, अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाता है। वो आपको पता नहीं लगने देंगे कि कितना सही जा रहे कितना गलत जा रहे हो। ताकी आप आगे के इंटरव्यू में में अफेक्ट न हों। आपको वहां ना बोलने की पूरी आजादी होती है। 30-40% क्वेश्चन्स में मैंने कहा कि नहीं आता है। ऑप्शनल में मेरे पास इंटरनेशनल रिलेशन्स था सब्जेक्ट- लेकिन इसके मैक्सिमम सवाल का जवाब नहीं दे पाया था। तो मैंने बोल दिया था कि नहीं आता। इसका कोई नेगेटिव असर नहीं पड़ा। बस आप झूठ न बोलें। क्योंकि पैनल में बहुत पढ़े-लिखे लोग होते हैं।
कोई नहीं पूछता कि आपके पीछे की दीवार का क्या रंग है
सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले सवाल ना मेरे से और ना ही मेरे कलीग्स से पूछे गए। हो सकता है एक्सेप्शनल कंडीशन्स में ऐसे सवाल पूछे जाते हो। लेकिन ऐसा कोई नॉर्म तो नहीं है। हां, आपके स्टेट, बैकग्राउंड वगैराह से रिलेटेड सवाल पूछ सकते हैं। मुझसे बिहार की लिकर पॉलिसी पर सवाल किया था। इसके अलावा पूछा कि आप एडमिनिस्ट्रेटर हो तो टूरिज्म कैसे डेवलप करोगे।
लिकर लॉ को लेकर बहुत सवाल किए गए
मुझसे पूछा कि लिकर लॉ पर कि आप सपोर्ट में है या क्या सोचते हैं आप उस बारे में। फिर फॉलो अप क्वेश्चन्स भी किए गए। पूछा कि लिकर को लेकर रेस्ट्रिक्टिव लॉ भी बना दें लेकिन वो सफल न हो तो क्या करोगे या आपका विजन क्या होगा। इसे लेकर मेरी सोच थोड़ी रेस्ट्रिक्टिव थी। मैंने कहा कि कनाडा कि तरह लिकर कंजप्शन की लिमिट तय कर देंगे कि पर्टिकुलर इंसान को एक लिमिट के ऊपर लिकर नहीं दी जाएगी। तो पैनल ने कहा कि फिर तो वो इंसान फैमिली या आसपास के दूसरे इंसान को लेकर आ जाएगा ज्यादा लिकर खरीदने के लिए। तो मैंने कहा कि अवेयरनेस अमंग वुमन बहुत जरूरी है, तो मैम ने पॉइंट आऊट किया कि सिर्फ अवेयरनेस अमंग वुमन ही क्यों, अवेयरनेस एज ए होल क्यों नहीं।
एग्जाम क्लियर होने की कोई गारंटी नहीं
किसी के पास भी UPSC एग्जाम क्लियर करने का सर्टेन पाथ नहीं होता। सभी अपना-अपना रास्ता ढूंढने की कोशिश ही करते हैं। कोई गारंटी देकर आपको ये नहीं कह सकता कि ये चीजें हैं, इन्हें फॉलो करो तो हो जाएगा एग्जाम क्लियर। लेकिन एक बार जब आपने प्लान बना लिया, आपको पता है आपका स्ट्रांग पॉइंट क्या है या आपकी वीकनेस क्या है। उसी हिसाब से आपको प्लान बनाना है। और कोई भी प्लान है उसे सिर्फ बनाना नहीं है, एग्जीक्यूट भी करना है। कोई भी प्लान बिना एग्जीक्यूट किए सफल नहीं हो सकता।