बीते 11 मई को संविधान पीठ ने याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. संविधान पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति एस नरसिम्हा शामिल हैं. 20 से अधिक याचिकाओं में से ज्यादातर समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई थी.
#WATCH मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं जिसमें उन्होंने समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी है: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल, दिल्ली pic.twitter.com/QKixKIEQ9o
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 17, 2023
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने फैसला पढ़ते हुए बताया कि कुल चार फैसले हैं. कुछ बातों पर सहमति है तो कुछ पर नहीं. मैं अपने फैसले के अंश पढ़ रहा हूं. CJI का कहना है कि एक सामाजिक संस्था के रूप में विवाह को विनियमित करने में राज्य का वैध हित है और अदालत विधायी क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती है और उसे एक कानून के माध्यम से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का निर्देश नहीं दे सकती है.
CJI ने समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. साथ ही उन्होंने अपने फैसले में समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया है. साथ ही उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिया है. समलैंगिक विवाह पर फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है. सीजेआई ने कहा कि हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह खुद को किस तरह से पहचानता है.
- केंद्र और राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि समलैंगिक जोड़ों के साथ कोई भेदभाव न हो
- लोगों को उनके प्रति जागरूक करें.
- उनकी सहायता के लिए हेल्पलाइन बनाएं
- किसी बच्चे का सेक्स चेंज ऑपरेशन तभी हो, जब वह इसके बारे में समझने योग्य हो
- किसी को जबरन सेक्स प्रवृत्ति में बदलाव वाला हॉरमोन न दिया जाए.
- पुलिस ऐसे जोड़ों की सहायता करे
जस्टिस संजय किशन कौल ने भी सीजेआई के फैसले का पक्ष लेते हुए कहा कि कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव नहीं कर सकता है, यह सरकार का काम है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि समलैंगिक समुदाय की सुरक्षा के लिए उपयुक्त ढांचा लाने की जरूरत है. साथ ही यह भी कहा कि समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव रोकने के लिए सकारात्मक कदम उठाएं जाएं. समलैंगिकों से भेदभाव पर अलग कानून बनाने की जरूरत है. जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि समलैंगिकता प्राचीन काल से मौजूद है. ऐसे जोड़ो को कानूनी अधिकार मिलने चाहिए. सरकार इसके लिए कमिटी बनाए.
जस्टिस रवींद्र भट्ट सीजेआई के फैसले से असहमत हुए. उन्होंने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आदालत के पास समलैंगिक जोड़ों के लिए कोई कानूनी ढांचा बनाने का अधिकार नहीं है. यह संसद का काम है. क्योंकि एक कानून बनाने पर कई पहलुओं पर विचार करना पड़ता है. सभी समलैंगिक व्यक्तियों को अपना साथी चुनने का अधिकार है. लेकिन इसके लिए सरकार को उनको ऐसा अधिकार देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.