कर्पूरी ठाकुर का जन्म आज से 100 साल पहले भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया में नाई जाति के परिवार में हुआ था।
– फोटो : Amar Ujala
विस्तार
सामाजिक न्याय के प्रतीक जननायक कर्पूरी ठाकुर को “भारत रत्न” देने का एलान कर मोदी सरकार ने भारतीय राजनीति में शुचिता और ईमानदारी की भावना को सम्मानित किया है। दो बार बिहार का मुख्यमंत्री रहने के बावजूद गरीब नाई परिवार में जनमे कर्पूरी ठाकुर का न मन बदला और न जीवन। वे फटा कुर्ता धोती पहनकर रिक्शे से मुख्यमंत्री कार्यालय से अपने घर आते-जाते दिख जाते थे।
दरअसल, उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके पिता गोकुल ठाकुर ने नाई का अपना पारंपरिक पेशा नहीं छोड़ा। जब उन्हें लोग टोकते तो वे कहते-
ले मेरा बेटा मुख्यमंत्री बन गया हो लेकिन मेरे लिए वह अब भी बेरोजगार है। वह मुझे पैसे नहीं भेजता। कर्पूरी ठाकुर की फकीरी के कई किस्से हैं जो आज भी राजनीति में एक मिसाल हैं।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म आज से 100 साल पहले भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया में नाई जाति के परिवार में हुआ था। अब कर्पूरी ठाकुर की जन्मस्थली होने के कारण इस गांव को कर्पूरीग्राम कहा जाता है। कर्पूरी ठाकुर समाजवाद के सच्चे सिपाही थे। केवल सत्रह साल की उम्र में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल गए। देश की आजादी वे लोकनायक जेपी और समाजवादी चिंतक डॉ.राम मनोहर लोहिया के सच्चे चेले थे। तब बिहार के लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी जैसे छात्र नेता राजनीति का ककहरा पढ़ रहे थे। इन सब ने कर्पूरी ठाकुर को राजनीतिक गुरु माना।
बिहार में उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि आजादी का बाद बिहार का पहला विधानसभा चुनाव जीतकर वह विधायक बने। इसके बाद वह जीवनभर इस सीट से चुनाव नहीं हारे। सारी जिन्दगी विधायक और बीच में एक बार डिप्टी सीएम और दो बार बिहार का मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उन्होंने अपने या अपने परिवार के लिए धन नहीं जुटाया। यही नहीं उन्होंने गांव के अपने पुराने घर में एक नया छप्पर तक नहीं डलवाया। जब तक वह जिन्दा रहे उन्होंने अपने बाप के लिए न कुछ किया न बेटे के लिए। उनकी ईमानदारी और सादगी से पूरा देश प्रभावित था।
मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने अपने परिवार से साफ कह दिया था कि वह जनसेवा कर रहे हैं इसलिए उनसे कोई उम्मीद न रखी जाए। कहते हैं उनका कोई रिश्तेदार जब उनसे नौकरी मांगने आता तो वह उसे उस्तरा खरीदने के लिए कुछ रुपए थमा देते और कहते घर जाकर अपना परंपरागत पेशा शुरू करो। इसलिए दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके पिता ने नाई का काम नहीं छोड़ा।
अमर उजाला ने 14 जनवरी 1978 के अंक में कर्पूरी ठाकुर के पिता गोकुल ठाकुर की एक तस्वीर प्रकाशित की जिसमें वह किसी की हजामत बना रहे थे। अमर उजाला ने शीर्षक दिया-“एक मुख्यमंत्री और उनके पिता का गौरव।” -चित्र परिचय में अखबार ने लिखा-“गोकुल ठाकुर ने अपने पुत्र के बारे में कहा-जहां तक मेरा संबंध है। मेरे लिए वह बेरोजगार है। वह मुझे कभी पैसा नहीं भेजता और मुझे अपना पुराना रोजगार करने में कोई संकोच नहीं।” अमर उजाला ने लिखा-“यर्थाथ में कर्पूरी ठाकुर अपना वेतन या तो पार्टी को देते हैं या दानार्थ कार्यों के लिए।”
उनके बारे में एक और किस्सा बहुत मशहूर रहा। पटना में 1977 में जेपी के घर पर उनका जन्मदिन मनाया जा रहा था। इसमें जनता के पार्टी के चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख जैसे सभी दिग्गज नेता मौजूद थे। कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे। यह उनका दूसरा टर्म था। कर्पूरी ठाकुर अपनी चिर-परिचित वेशभूषा- फटा कुर्ता, पुरानी चप्पल, आंखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा पहने कमरे में दाखिल हुए।