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बात 1989 की है। पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद से बिहार विधानसभा में नेता विपक्ष का पद खाली था लेकिन दो दिग्गज यादव नेताओं (लालू यादव और अनूप लाल यादव) में आपसी खींचतान की वजह से विरोधी दल का नेता तय नहीं हो पा रहा था। आखिरकार करीब साल भर बाद मार्च 1989 में लालू यादव इस पद पर बाजी मारने में कामयाब रहे। लालू ने अनूप लाल यादव को उनके ही भतीजे (पप्पू यादव) के सहयोग से हराया था।
हैरत की बात ये रही कि अगले ही साल जब 1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव होने लगा तब लालू यादव ने उसी पप्पू यादव को टिकट नहीं दिया। इसके बाद पप्पू यादव ने लालू को चुनौती देते हुए सिंघेश्वर स्थान से निर्दलीय चुनाव जीत लिया। वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने अपनी किताब ‘कितना राज, कितना काज’ में बकौल राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव लिखा है, “मैंने लालू यादव को नेता विपक्ष बनने में मदद की जबकि उनके खिलाफ मेरे फूफा अनूप ला खड़े थे लेकिन लालू ने मुझे 1990 के चुनाव में टिकट नहीं दिया।”
किताब में बकौल पप्पू यादव कहा गया है, “मैं सिंघेश्वर विधानसभा सीट से निर्दलीय लड़ा और जीता भी। लालू भी कम चतुर नहीं थे। चुनाव बाद उन्होंने मुझे मना लिया और मैंने भी उनकी अल्पमत सरकार को समर्थन दे दिया।” इसी किताब में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि कैसे लालू यादव ने उभरते पप्पू यादव को यादवों का नेता नहीं बनने की चेतावनी दी थी।
पुस्तक में पप्पू के हवाले से कहा गया है, “…लेकिन 1990 में जब नौगछिया नरसंहार हुआ और जब मैं वारदात के बाद मौके पर पहुंचा तो लालू को ये बात बुरी लग गई और लालू ने मुझसे कहा कि मैं यादवों का नेता बनने के बारे में सोचूं भी नहीं।” पप्पू यादव ने आगे बताया कि जह 1991 में लोकसभा चुनाव होने थे, तब तक लालू यादव से उनका मनमुटाव बढ़ चुका था। जनता दल से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने तब पूर्णिया से निर्दलीय ताल ठोक दिया और चुनाव जीत गए लेकिन चुनावों में धांधली का आरोप लगा ये चुनाव रद्द कर दिया गया। जब दोबारा चुनाव हुए तब फिर से पप्पू यादव जीतने में कारगर रहे और दसवीं लोकसभा के सदस्य बन गए। 1996 में फिर पप्पू ने पूर्णिया से ही समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते।
1999 के चुनाव में पप्पू यादव फिर से निर्दलीय चुनाव लड़े और पूर्णिया सीट से तीसरी बार सांसद चुने गए। इसके बाद पप्पू यादव ने लालू यादव की पार्टी राजद की लालटेन थाम ली और लालू द्वारा छोड़ी गई मधेपुरा लोकसभा सीट से उपचुनाव में विजयी हुए। 2009 में पटना हाई कोर्ट ने पप्पू यादव को हत्या के मामले में दोषी करार दिया और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी।
बाद में सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद 2014 में पप्पू ने शरद यादव को मधेपुरा सीट से राजद के टिकट पर शिकस्त दी लेकिन एक साल बाद ही राजद ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। फिर उन्होंने अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी बना ली लेकिन कुछ खास नहीं कर पाई। 2024 में एक बार फिर पप्पू यादव ने राजद में एंट्री को कोशिश की लेकिन लालू ने दाल गलने नहीं दिया और अब कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी राह में रोड़े अटका रहे हैं।