मनीष अस्थाना@नवभारत
एंटी स्मोग गन आखिर है क्या
एंटी स्मॉग गन को स्प्रे गन, मिस्ट गन या वाटर कैनन के नाम से भी जाना जाता है। ‘एंटी-स्मॉग गन’ पानी के साथ धूल और अन्य प्रदूषक कणों को जमीन पर लाती है। इससे वायु प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है। भारी वाहनों के पीछे ‘एंटी-स्मॉग गन’ लगाई जाती है और यह पानी की टंकी से जुड़ी होती है। बड़े शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण को कम करने के अलावा ‘एंटी स्मॉग गन’ का इस्तेमाल कुछ अन्य कारणों से भी किया जाता है। इसका उपयोग खदानों में, कोयला और पत्थर पीसने के दौरान उत्पन्न धूल को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है।
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एंटी स्मॉग गन काम कैसे करता है
‘एंटी स्मॉग गन’ से पानी का छिड़काव किया जाता है। धूल के कण महीन पाले से चिपक जाते हैं और जमीन पर बैठ जाते हैं। इस प्रणाली से वर्षा जैसा प्रभाव प्राप्त होता है। उच्च दबाव छिड़काव वाले पानी का एक परत बनती है, जो धूल और प्रदूषण के बारीक कणों को सोख लेता है। ‘एंटी स्मॉग गन’ करीब 150 फीट की ऊंचाई तक पानी का छिड़काव कर सकती है और एक मिनट में करीब 30 से 100 लीटर पानी का छिड़काव कर सकती है।
क्या ‘एंटी-स्मॉग गन’ एक स्थायी समाधान है
पर्यावरणविदों के मुताबिक इन उपकरणों का असर सीमित समय के लिए ही होता है। यह कभी भी प्रदूषण कम करने का स्थाई समाधान नहीं हो सकता। जब इस उपकरण से पानी का छिड़काव किया जाता है तो इसका प्रभाव एक विशिष्ट क्षेत्र या स्थान तक ही सीमित होता है। विशेषज्ञों की राय है कि यह स्थिति को तत्काल नियंत्रण में लाने का एक अस्थायी समाधान है न कि दीर्घकालिक समाधान।
इस उपकरण का प्रयोग सबसे पहले कहाँ किया गया था
फिलहाल मुंबई में नगर पालिका ने प्रमुख निर्माण स्थलों पर ‘एंटी-स्मॉग गन’ लगाना अनिवार्य कर दिया है। लेकिन नवी मुंबई में अभी इस तरह के कोई आदेश नहीं दिए गए हैं। जबकि नवी मुंबई पत्थरों के उत्खनन का काम साल भर चलता रहता है। इसलिए नवी मुंबई में सर्वाधिक वायु प्रदूषण की शिकायतें मिलती रहती है।
कितनी होती है कीमत
धुआं अवशोषक की कीमत एक से पचास लाख तक होती है। अलग-अलग प्रकार के हिसाब से उनकी कीमत अलग-अलग होती हैं। ये कई प्रकार की होती हैं जैसे ‘ट्रक माउंटेड एंटी स्मॉग गन’, ‘टेरेस एंटी स्मॉग गन’, ‘ऑटोमेटिक एंटी स्मॉग गन’। ‘एंटी स्मॉग गन’ की तरह ‘एंटी स्मॉग टॉवर्स’ भी हैं। वे धुएं को अवशोषित करते हैं और स्वच्छ हवा छोड़ते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसका इस्तेमाल स्माल स्केल पर किया जा रहा है। इसकी कीमत 22 करोड़ रुपये से शुरू होती है। वर्तमान में भारत में विभिन्न स्थानों पर आठ टावर हैं।