Chief Election Commissioner Bill: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ा विधेयक मंगलवार (12 दिसंबर) को राज्यसभा से पास हो गया. बिल पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने इसके कई प्रावधानों का जिक्र कर कड़ा विरोध जताया और सदन से वॉकआउट कर गए.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त ( नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं पदावधि ) विधेयक 2023 पर राज्यसभा में में चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, ” बिल चुनाव के आधारस्तंभ निष्पक्षता, निर्भीकता, स्वयात्तता और शुचिता को बुलडोजर से कुचल देने वाला है.”
किस प्रावधान का विरोध किया?
सुरजेवाला ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति जो कमेटी करेगी, उसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री के तय किया गया कोई केंद्रीय मंत्री होगा. ऐसे में सरकार का नियंत्रण कायम हो जाएगा.
सुरजेवाला ने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 के विरूद्ध है. उन्होंने दावा किया कि सरकार निष्पक्ष और स्वतंत्र मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्त नहीं चाहती. इस कारण वह एक जेबी चुनाव आयुक्त चाहती है जिसे वह अपनी मर्जी से चला सके.
कांग्रेस ने क्या सवाल उठाए?
सुरजेवाला ने कहा कि इस विधेयक के जरिये सरकार ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण कर दिया है. उन्होंने कहा कि विधेयक में प्रावधान है कि इस पद पर कोई नौकरशाह या पूर्व नौकरशाह ही नियुक्त किया जा सकता है. उन्होंने सवाल किया कि इस पद पर कोई कानूनविद् क्यों नियुक्त नहीं हो सकता?
उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिये मुख्य निर्वाचन आयुक्त से निर्वाचन आयोग के नियमन का अधिकार छीना जा सकता है. उन्होंने कहा कि एक समय ईसी का मतलब ‘इलेक्टोरल क्रेडिबिलिटी (चुनावी विश्वस्तनीयता)’ हुआ करता था जो अब ‘इलेक्शन कंप्रोमाइस (चुनावी समझौता)’ हो गया है.
राघव चड्ढा क्या बोले?
आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने कहा कि बिल सुप्रीम कोर्ट का अपमान करने वाला है. उन्होंने कहा, ”ये बिल नहीं है, बुलडोजर है. इसके जरिए केंद्र की बीजेपी सरकार ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता समाप्त कर दी है. ये बिल सुप्रीम कोर्ट का अपमान है. कमेटी में से सीजेआई को हटा दिया गया.”
टीएमसी ने जताई ये चिंता
चर्चा में भाग लेते हुए टीएमसी के जवाहर सरकार ने कहा कि स्वतंत्र चुनाव लोकतंत्र का आधार होता है और सरकार इस विधेयक के माध्यम से उसी आधार को छूने का प्रयास कर रही है.
जवाहर सरकार ने दावा किया कि मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल में प्रधानमंत्री के विश्वस्त और नौकरशाह को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक बनाया गया है. उन्होंने कहा कि विपक्ष को इस बात की चिंता है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया के जरिये लोकतंत्र से छेड़छाड़ की जा रही है.
डीएमके ने भी किया विरोध
डीएमके ने कहा, ”सर्च एवं सेलेक्ट कमेटी में सरकार का दबाव बना रहेगा. उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग का कामकाज स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे, इसके लिए आवश्यक है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हस्तक्षेप नहीं हो.”’
बीजेपी ने दिया जवाब
चर्चा में भाग लेते हुए बीजेपी के घनश्याम तिवाड़ी कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला सहित अन्य विपक्ष नेताओं की आपत्तियों का जिक्र किया. उन्होंने कहा, ”70 वर्ष तक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति सरकार ही करती रही, तब किसी को आपत्ति नहीं हुई. जब चयन समिति बन रही है तो उस पर आपत्ति की जा रही है.”
तिवाड़ी ने कहा कि निर्वाचन आयोग के क्या अधिकार हैं और आचार संहिता क्या चीज होती है, इसका पता तो तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन के आने के बाद ही चला.
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल क्या बोले?
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि अगस्त 2023 में यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था. उन्होंने कहा कि मूल कानून में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान नहीं था.
उन्होंने कहा, ”यह सरकारी संशोधन विधेयक है. इसमें सर्च कमेटी और चयन समिति का प्रावधान है. इसमें वेतन को लेकर भी एक प्रावधान है. मुख्य निर्वाचन आयुक्त यदि कोई कार्रवाई करते हैं तो उन्हें अदालती कार्रवाई से छूट दी गयी है”
मेघवाल ने कहा कि जो बिल लाए हैं उसमें कोई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं है, हम उसके आदेश के मुताबिक बिल लाए हैं. ये एक प्रोग्रेसिव लॉ है.
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