<p style="text-align: justify;">समय का पहिया 360 डिग्री घूम कर एक चक्र पूरा कर चुका है. और यह वक्त बिहार के एक युवा नेता चिराग पासवान के लिए अतीत से, अपने पिता से सीखने का भी है. अब वो सीखे न सीखें, उनकी मर्जी, मैं बस याद दिला रहा हूँ. 2016 का साल था और संसद में तब स्वर्गीय राम विलास पासवान ने पहली बार एक मांग रखी थी. 5 फरवरी 2016 को पीटीआई के हवाले से एक खबर आई थी. खबर के मुताबिक़, तब राम विलास पासवान ने तत्कालीन केंद्र सरकार से ये मांग की थी की “केंद्र सरकार एक ऐसा क़ानून ले कर आएं, जिससे पिछड़ों, अति पिछड़ों, अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण का लाभ मिल सके.” जाहिर है, तब उस मांग पर किसी का ध्यान न जाना था, न गया.</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन कहते हैं, राजनीति में कभी कोई मुद्दा जलाया नहीं जाता, दफ़न कर दिए जाते है और जरूरत पड़ने पर उसे फिर से सामने ले आया जाता है. अब, जब बिहार में जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए जा चुके हैं और जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा फिर से भारतीय राजनीति में गूंजने लगा है, तब एक बार फिर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जिस मांग को कभी स्वर्गीय राम विलास पासवान ने वैचारिक तौर पर उठाया था, वो मांग एक बार फिर सुनने को मिल जाए और इसकी वजहें भी है. फिलहाल, जब चिराग पासवान बिहार के कास्ट सर्वे रिपोर्ट पर सवाल उठाते हैं तब उन्हें अतीत के इस पन्ने को भी देख लेना चाहिए, शायद उन्हें इसका कुछ राजनीतिक फायदा मिल जाए. </p>
<p><iframe title="YouTube video player" src="https://www.youtube.com/embed/R8qKCdngFYM?si=nnmzhk5HON-2A8AL" width="560" height="315" frameborder="0" allowfullscreen="allowfullscreen"></iframe></p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;"><strong>संख्या भारी, कहां मिलेगी हिस्सेदारी </strong></span></p>
<p style="text-align: justify;">यह ठीक बात है कि 63 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी अनुसूचित जाति और करीब 2 फीसदी अनुसूचित जनजाति की संख्या भारी है. लेकिन, इसका फायदा क्या मिलेगा? बिहार जैसे राज्य में राजनैतिक रूप से तो 1991 से ही पिछड़ों-दलितों की भागीदारी वाली सरकारें रही हैं. सामान्य वर्ग के लोग बमुश्किल अपनी राजनैतिक भागीदारी को बचाए हुए है, जो निश्चित ही इस कास्ट सर्वे रिपोर्ट के आने के बाद और घटने वाली है. लेकिन, 27 फीसद आरक्षण के बाद भी कितने पिछड़ों/दलितों का आर्थिक सशक्तिकरण हुआ, कितने उच्च शिक्षा में जा सके, कितने सरकारी नौकरी पा सके. अब राहुल गांधी के हालिया बयान को ही देख लें. “मात्र 3 ओबीसी सेक्रेटरी” वाले बयान को ही देख लें तो स्थिति का आकलन कर सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">केंद्र सरकार की नौकरियों में सालाना दर पर ओबीसी की हिस्सेदारी बड़ी तो जरूर है, लेकिन यह महज 23-24 हजार के आसपास है. अब करोड़ों की जनसंख्या, 63 फीसदी आबादी और सरकारी नौकरी हजारों में, चलिए इसमें राज्य सरकारों की भी कुछ नौकरियों को जोड़ लिया जाए तो भी एक बहुत बड़ी, बहुत बड़ी आबादी ओबीसी, दलितों की ऐसी है जिन्हें सरकारी नौकरियों में अकोमडेट कर पाना संभव नहीं दिख रहा है. ऐसे में क्या होगा? फिर वहीं, राम विलास पासवान वाली मांग की प्राइवेट सेक्टर आखिर आरक्षण से अछूता क्यों रहे? </p>
<p><iframe class="audio" style="border: 0px;" src="https://api.abplive.com/index.php/playaudionew/wordpress/1148388bfbe9d9953fea775ecb3414c4/e4bb8c8e71139e0bd4911c0942b15236/2506970?channelId=3" width="100%" height="200" scrolling="auto"></iframe></p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;"><strong>सरकार और इंडस्ट्री असोसिएशन का रूख </strong></span></p>
<p style="text-align: justify;">21 दिसंबर 2021, प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो का एक प्रेस रिलीज कहता है कि निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए अफर्मेटिव एक्शन पर एक समन्वय समिति 2006 में प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा बनाई गयी थी. अब तक समन्वय समिति की 9 बैठकें हो चुकी हैं. पहली समन्वय समिति की बैठक में, यह कहा गया कि अफर्मेटिव एक्शन के मुद्दे बेहतर परिणाम पाने का सबसे अच्छा तरीका इंडस्ट्री द्वारा स्वैच्छिक कार्रवाई ही है. इस रिलीज के मुताबिक़, निजी क्षेत्र में आरक्षण के संदर्भ में, उद्योग प्रतिनिधियों का मानना है कि आरक्षण कोई समाधान नहीं है, लेकिन वे हाशिये पर खड़े वर्ग, विशेषकर एससी और एसटी के लिए वर्तमान भर्ती नीति को विस्तारित करने में सरकार और एजेंसियों के साथ साझेदारी करने के इच्छुक हैं और साथ ही कौशल विकास और प्रशिक्षण को प्रोत्साहित किया जाएगा.</p>
<p style="text-align: justify;">इसके अलावा, शीर्ष उद्योग संघों ने समावेशन के लिए अपनी सदस्य कंपनियों के लिए स्वैच्छिक आचार संहिता (वीसीसी) भी तैयार की है. बहरहाल, अभी तक सरकार या निजी क्षेत्र ने सीधे प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण को स्वीकार तो नहीं किया है, लेकिन इस दिशा में बात आगे बढ़ती दिख रहे है. 2016 में जो मांग राम विलास पासवान ने रखी थी, वो मांग खत्म नहीं हुई है और न ही उसे पूरी तरह नकार दिया गया है. बल्कि उस मांग पर धीरे-धीरे ही सही लेकिन सकारात्मक रूख के साथ बात आगे बढ़ रही हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">ऐसे में, जब इस वक्त विपक्षी गठबंधन “इंडिया” कास्ट सर्वे ले कर आता है, आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी की बात करता है, तब ये हिस्सेदारी केवल राजनैतिक हिस्सेदारी तक सीमित हो कर रह जाएगी, मेरा ऐसा मानना नहीं है. बल्कि यह मांग एक कदम आगे बढ़ते हुए आरक्षण की सीमा बढाने और साथ ही प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण तक पहुंचेगा. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मांग राहुल गांधी उठाते हैं, नीतीश कुमार उठाते है, लालू प्रसाद यादव उठाते है या चिराग पासवान, जिनके पिता ने कमोबेश इस मांग की नींव रखी थी. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>निजी क्षेत्र में आरक्षण के क़ानून </strong></p>
<p style="text-align: justify;">हरियाणा का उदाहरण हमारे सामने है, जहां मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने हरियाणा में लगाने वाले इंडस्ट्री में 75 फीसदी स्थानीय लोगों को आरक्षण देने का क़ानून बनाया है. यह क़ानून तीस हजार रूपये से कम के पदों के लिए लागू होता है. शुरू में इस क़ानून पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने रोक लगाई लेकिन सुप्रीम कोर्ट से यह रोक हट गया, लेकिन मामला अभी भी हाई कोर्ट में चल रहा है और इस क़ानून के पास होने के बाद भी इसका क्रियान्वयन अब तक नहीं शरू हो सका है. हाई कोर्ट द्वारा पूछे जाने पर भी केंद्र ने अपनी तरफ से इस मुद्दे पर कोइ जवाब नहीं दिया है (12 जुलाई, 2023 तक की स्थिति).</p>
<p style="text-align: justify;">बहरहाल, इस क़ानून से कुछ सवाल उठाते हैं. मसलन, जब निजी क्षेत्र में 75 फीसद आरक्षण की बात होगी तब इसमें सभी जातियों के लोग शामिल होंगे. फिर जब एक राज्य में निजी क्षेत्र अगर आरक्षण देता है तब केंद्र पर भी यह दबाव बनेगा या यानी राज्य भी ऐसे क़ानून बनाना शुरू कर देंगे. तो कहने का अर्थ इतना भर है कि किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में रातों-रात कोई बड़ा बदलाव नहीं आता है. लेकिन अगर उस बदलाव के चर्चे शुरू हो गए, उस पर कहीं थोड़ा भी काम शुरू हो गया तो एक समय के बाद उसे मुक्कमल स्वरुप अख्तियार करने में ज्यादा वक्त नहीं लगता. जैसे, ईडब्लूएस आरक्षण हो या कास्ट सर्वे जैसा ही मुद्दा. एक बार चर्चा हुई तो एक न एक दिन वह अमलीजामा पहन ही लेता है. कम से कम भारतीय राजनीति में ऐसे सकैदों उदाहरण देखने को मिल जाएंगे. </p>
<p style="text-align: justify;">ऐसे में, यह भविष्यवाणी कि बिहार से निकला कास्ट सर्वे का नतीजा पॉलिटिकल मोनोपोली के अलावा भविष्य में निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग को बढ़ावा देगा, सच साबित हो सकता है. बस, इतना भर इंतज़ार कीजिये कि इस मांग को अब कौन उठाता है. “इंडिया” गठबंधन के नेता या “एनडीए” गठबंधन. यानी चिराग पासवान, जो इस मांग के जरिये अपने पिता की जन-राजनीति को श्रद्धांजलि दे सकते हैं. </p>
<div class="article-data _thumbBrk uk-text-break">
<p style="text-align: justify;"><strong>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]</strong></p>
</div>
Source link
I am the founder of the “HINDI NEWS S” website. I am a blogger. I love to write, read, and create good news. I have studied till the 12th, still, I know how to write news very well. I live in the Thane district of Maharashtra and I have good knowledge of Thane, Pune, and Mumbai. I will try to give you good and true news about Thane, Pune, Mumbai, Education, Career, and Jobs in the Hindi Language.